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गरीबी में जी रहे हैं सीहोर के मछली पालक, जलाशयों पर अमीर दबंगों का कब्ज़ा

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गरीबी में जी रहे हैं सीहोर के मछली पालक, जलाशयों पर अमीर दबंगों का कब्ज़ा
गरीबी में जी रहे हैं सीहोर के मछली पालक, जलाशयों पर अमीर दबंगों का कब्ज़ा

सीहोर शहर के हनुमान फाटक के पास जगदीश केवट एक छोटे से मकान में अपने परिवार के साथ रहते हैं। पिछले कई माह से उनकी नांव घर के एक कोने में पड़ी हुई है, जिस तालाब से वो मछली पकड़ते थे अब वहां पर बड़े मछुआरों का कब्ज़ा हो चुका है। बेरोज़गारी की वजह से अब जगदीश आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, पास की नदी से वो कुछ मछली पकड़कर लाए हैं, जिसे बाज़ार में बेचकर वो 300 रुपए ही कमा पाएंगे। कोने में पड़े जाल से उनके बच्चे खेल रहे हैं और उनकी पत्नी घर के आंगन में मिट्टी का चूल्हा बना रही हैं। जगदीश अपनी स्थिति बयां करते हुए गुस्से में कहते हैं कि

“हम केवट समुदाय के लोग पीड़ियों से मछली पालन का काम कर रहे हैं, लेकिन अब हमारे समुदाय के ज्यादातर लोग बेरोज़गार हो चुके हैं। हमारी सुनने वाला कोई नहीं है।”

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जगदीश केवट अपनी नांव पर बैठें हैं और अपनी समस्याएं गिना रहे हैं, स्थान सीहोर, फोटे ग्राउंड रिपोर्ट
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जगदीश केवट की पत्नी आंगन में मिट्टी का चूल्हा बना रही हैं, उनके लिए महंगी गैस भरवाना आसान नहीं है, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

आपको बता दें ढीमर, भोई, कहार, कहरा, धीवर, मल्लाह, नावड़ा, तुरहा, केवट, कीर, ब्रितिया, सिंगहारा, जालारी, जालारनलु जाति के लोग परंपरागत रुप से मछली पकड़ना, पालकी ढोना, सिंघाड़ा व कमल गट्टे उगाना, पानी भरना और नांव चलाने जैसे काम करते आए हैं। लेकिन रोज़गार के अभाव में इन लोगों को मज़दूरी करना पड़ता है।

जिसके पास पैसा उसका तालाब

कोने में बैठे जगदीश पिता हेमराज कहते हैं

“केवट नदी को मां मानता है, वो हमारा पेट भरती है। हम उसे साफ रखते हैं। लेकिन आज मेरे बच्चे भूखा मरने की स्थिति में आ चुके हैं, क्योंकि जलाशयों पर उन दबंगों का कब्ज़ा है जो व्यापार के लिए यह काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी हमारे विकास के लिए कई काम कर रहे हैं, लेकिन यहां के स्थानीय नेता हमारा हक मार रहे हैं”।

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जगदीश के पिता हेमराज, मछली पकड़ने वाले जाल को तैयार करते हुए, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

सीहोर के मांझी समुदाय के लोगों ने मई के महीने में कलेक्टर प्रवीण सिंह को अपनी समस्या बताई थी, इस दौरान मांझी आदिवासी समाज संघ के अध्यक्ष ओम प्रकाश रायकवार ने कहा था

“मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मछुआरों को तालाबों, जलाशयों पर मछली पालन के लिए हक देने की बात कही थी, इसके बाद भी दूसरे लोगों को ठेके दिए जा रहे हैं, जिससे मांझी समाज के सैकड़ों नागरिक बेरोज़गार हो गए हैं।”

कैसे होता है तालाब का आवंटन?

मध्यप्रदेश शासन की नीति के अनुसार एक हेक्टर तक के जल क्षेत्र वाले तालाबों पर कहार, बिंद, मल्लाह, केवट आदि समुदायों को मछली पालन हेतु पट्टा देने में प्राथमिकता दी जाती है। इन जाति ममुदाय द्वारा पट्टे के लिए आवेदन न दिए जाने पर ही सामान्य श्रेणी को चयनित किया जाता है। यह आवंटन 10 वर्षों के लिए किया जाता है। इस दौरान सरकार की ओर से मछलीपालन के लिए सरकार की ओर से आर्थिक अनुदान भी दिया जाता है। लेकिन मध्यप्रदेश में तालाबों के आवंटन में नियमों को ताक पर रखने के मामले सामने आते रहे हैं।

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सीहोर का हनुमान फाटक जहां सीवन नदी बहती है, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

तालाब में करंट छोड़ मार देते हैं सारी मछली

जगदीश बताते हैं कि शहर के ज्यादातर तालाबों पर दूसरे लोग उन्हें मछली पकड़ने नहीं देते, कई बार तालाब में करंट छोड़कर बड़े मछुआरे सारी मछली मार देते हैं, जिसकी वजह से हम जैसे छोटे मछली पालक महीने भर बेरोज़गार रहते हैं। कई बार उन्हें मज़दूरी कर घर चलाना पड़ता है।

महंगाई ने भी मछुआरों की ज़िंदगी को कठिन बनाया है। जगदीश बताते हैं

“मछली पालन के लिए ज़रुरी चीज़ें बहुत महंगी हो गई हैं। जो जाल कभी 100-200 रुपयों में मिलता था उसकी कीमत 1000 रुपए हो गई है। घर में इस्तेमाल होने वाला ज़रुरी समाना जैसे आटा दाल महंगा हुआ है, जिससे गृहस्थी की गाड़ी पटरी से उतर चुकी है।”

Sehore Machli Bazar, Fish Market
सीहोर का मछली बाज़ार जहां अब मछली पालकों को व्यवसाय करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

मछली बाज़ार बनने में देरी

मछुआरों के लिए सीहोर शहर में एक समस्या स्थाई मार्केट न होना भी है। मौजूदा बाज़ार को प्रशासन ने तोड़ दिया है अब यहां पर मुर्गा और मटन बेचने वालों का कब्ज़ा हो गया है। शहर में मछली मार्केट के लिए अलग से प्रशासन ने जमीन आवंटित की है लेकिन अभी तक इसका निर्माण पूरा नहीं हो सका है। मछली बेचने के लिए जगह नहीं होने की वजह से अब सीहोर के मछुआरों को भोपाल जाकर मछली बेचना पड़ता है।

जगदीश केवट बताते हैं कि “पहले तो मछली मिलती नहीं, अगर मिलती भी है तो समझ नहीं आता कि कहां बैठकर उसे बेचें, न बाज़ार है न आमदनी।”

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भगवानपुरा तालाब के किनारे रखी केवट की नांव, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

सीहोर में मछलीपालन में असीम संभावनाएं

नैशनल फिशरीज़ डेवलपमेंट बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक सीहोर जिले में 3827 हेक्टेयर क्षेत्र में तालाब और जलाशय हैं। यहां सालाना 2695 मीट्रिक टन इनलैंड मछली का प्रोडक्शन होता है, प्रति व्यक्ति ग्रामीण आबादी पर यह 2.39 किलोग्राम है। जबकि भोपाल में 6312 हेक्टेयर क्षेत्र में जलाशय हैं जहां सालाना 1350 मीट्रिक टन मछली उत्पादन होता है। सीहोर में मछलीपालन रोज़गार के कई अवसर पैदा कर सकता है। लेकिन प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है।

साल 2022 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हर स्थानीय निकाय में एक स्मार्ट फिश पार्लर स्थापित करने की घोषणा की थी जहां से विभिन्न प्रकार की स्वच्छ और ताज़ी मछली लोगों को उपलब्ध होनी थी और मछुआरों को रोज़गार मिलना था। इसके साथ ही उन्होंने मछुआरों के आर्थिक उन्नयन, परिवार के सदस्यों के विवाह, शिक्षा, सहायता, बीमा योजना का लाभ दिलवाने का वादा किया था। लेकिन इन वादों पर जगदीश कहते हैं कि उन्हें किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला है। रही बात स्मार्ट फिश पार्लर की तो ग्राउंड रिपोर्ट की टीम को सीहोर शहर में स्मार्ट फिश पार्लर का नामों निशान नहीं मिला।

ग्राउंड रिपोर्ट की टीम ज़मीन पर नेताओं के उन वादों और दावों को टटोल रही है जिनकी घोषणा तो हुई लेकिन उनका लाभ उन्हें ही नहीं मिला जिनके लिए यह घोषणाएं की गई थी। तो वर्षों से कमल के निशान पर वोट करता आया जगदीश केवट का परिवार आज खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। आज तालाब में कमल तो है लेकिन उसी तालाब में पलते आये केवट को वहां से बेदखल कर दिया गया है।

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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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