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Farmers Protest 2024: स्वामिनाथन की ये सिफारिशें लागू होते ही किसान भाईयों की हो जाएगी बल्ले-बल्ले! 4 खास बातें…

Farmers Protest 2024: स्वामिनाथन की ये सिफारिशें लागू होते ही किसान भाईयों की हो जाएगी बल्ले-बल्ले! 4 खास बातें...
Farmers Protest 2024: स्वामिनाथन की ये सिफारिशें लागू होते ही किसान भाईयों की हो जाएगी बल्ले-बल्ले! 4 खास बातें...

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Farmers Protest 2024: मोदी सरकार ने हाल ही में कृषि वैज्ञानिक एम. एस. स्वामीनाथन (MS Swaminathan) और किसान नेता चौधरी चरण सिंह(Chaudhry Charan Singh) को भारत रत्न से सम्मानित किया। लेकिन ऐसा लगता है की सरकार का यह प्रयास बैकफायर कर गया है क्यूंकि, किसान एमएसपी सहित अन्य मांगों को लेकर एक बार फिर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की ओर कूच करने लगे हैं। वहीं सरकार नें पिछली बार के किसान आंदोलन से सबक लेते हुए पहले से कड़े इंतजाम किये हैं। दिल्ली की सीमायें छावनी में तब्दील कर दी गई है और उन्हें सील कर दिया गया है।

किसानों की सबसे बड़ी मांग MSP लागू हो

संयुक्त किसान मोर्चा और किसान मजदूर मोर्चा ने एक बार फिर दिल्ली घेराव के लिए किसान आंदोलन का आह्वान किया है। इसके चलते राजधानी दिल्ली की सभी सीमाएं सील कर दी गई हैं। किसानों की मांग है की सरकार स्वामीनाथन आयोग की सभी सिफारिशों को जल्द से जल्द अमल में लाये और MSP को कानूनी रूप दें।  

क्या है स्वामीनाथन आयोग

साल 2004 में सरकार ने भारत में हरित क्रांति लाने वाले एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई। इस पर भारत में कृषि में आने वाली समस्याएं व उसके समाधान खोजने का दायित्व था। स्वामीनाथन कमेटी ने 2004 से 2006 के बीच 5 रिपोर्ट्स पेश की। इनमें भारत के किसानों की समस्याएं और उनके लिए कुछ सिफारिशें की गई थीं।

1- इस आयोग ने C2 +50% की बात की थी। यह C2 से तात्पर्य किसान की फसल में लगने वाली पूरी लागत से है। इसमें नकदी और गैर नकदी खर्चे दोनों शामिल है जैसे कि खाद, बीज, ईंधन, सिंचाई, परिवार के व्यक्तियों का श्रम, जमीन का किराया और ब्याज, इत्यादि। अगर सरकार फसल की लागत से 50 फीसदी अधिक राशि MSP में शामिल करके दे तो इसके लागू होने से MSP में कितना अंतर आएगा।   

उदाहरण के तौर पर गेंहूं की कीमतों को ले तो MSP निर्धारित करने वाली संस्था CACP ने अपनी रिपोर्ट में  2023-24 में गेंहू की कीमतों के निर्धारण में  शामिल लागतें बताई हैं। 

तो सीधे एक क्विंटल पर 353 रुपये का फायदा

इसके मुताबिक, नकदी खर्च (A2) के आधार पर गेंहू की लागत 903 रुपये है, इसमें परिवार के व्यक्तियों के श्रम मूल्य और अन्य गैर नकदी खर्चों (A2+FL) को जोड़ने के बाद यह लागत 1,128 रुपये होती है।  इनमे जमीन का किराया और ब्याज और अन्य खर्चे (C2) जोड़ने पर यह कीमत 1,652 रुपये हो गई। इन सबको योग करने के बाद CACP ने गेंहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य  2,125 रुपये तय किया। अगर स्वामीनाथन आयोग द्वारा प्रस्तावित C2+50% वाले फॉर्मूले का प्रयोग करते तो MSP 2,478 रुपये होता। इस प्रकार से हमें MSP में सीधे सीधे 353 रूपये प्रति क्विंटल का फायदा देखने को मिलता।

MSP के अलावा स्वामिनाथन की किसानों के लिए अन्य सिफारिशें:

  • कृषि को संविधान की समवर्ती सूची में शामिल किया जाए। 
  • प्राकृतिक आपदाओं से किसानों के पुनर्वसन हेतु एक कृषि राहत फण्ड बनाया जाए। 
  • एक राज्य स्तरीय आयोग के गठन का सुझाव दिया गया है जो की किसानों के वित्त और बीमा की व्यवस्था सुनिश्चित करे। 
  • BPL जनता के लिए National Food Guarantee Act बनाया जाये। 
  • आयोग ने कृषि के सुचारू वित्तीयन के लिए Rural Insurance Development Fund बनाने की बात कही थी, ताकि खेती के लिए सुलभ वित्त की व्यवस्था हो सके। 
  • आयोग ने किसानों को कर्ज के बोझ से बचाने के लिए व्याज की दरों को काम करने का सुझाव दिया था। आयोग ने सुझाया की व्याज की दरें साधारण ब्याज के अनुसार 4 फ़ीसदी तक सीमित रखीं जाएं। 
  • आयोग ने महिला किसानों को भी किसान क्रेडिट कार्ड देने की बात की। 
  • कृषि उत्पादकता का विकास करने के लिए आयोग ने सरकार को कृषि सम्बंधित अवसंरचना का विकास, सॉइल टेस्टिंग, साइल कंज़र्वेशन और इन सब के लिए लैबों का एक नेटवर्क बनाने का सुझाव दिया था, ताकि मिट्टी की उर्वरता बानी रहे और किसान टिकाऊ कृषि करने में सक्षम हो।  
  • आयोग ने भूमि सुधारों को सही तरीके से लागू करने की बात कही थी। आयोग ने कहा था की कृषि और वनभूमियों का औद्योगिक उपयोग के लिए अधिग्रहण रोका जाना चाहिए। 
  • आयोग ने कहा था की सरकार को सिंचाई के क्षेत्र में पर्याप्त निवेश और प्रयास करना चाहिए ताकि किसानों को खेती के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध हो सके। साथ ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग और वाटरशेड जैसी तकनीकों का प्रसार किया जाए। 

इसके साथ कई अन्य सुझाव भी है जिनका लक्ष्य साफ़ है, भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और भारत के छोटे और सीमांत किसानों को प्रतिस्पर्धा की स्थिति में ला खड़ा करना।  

सिफारिशें लागू करने से क्यों डर रही मोदी सरकार?

सरकार की इस टालमटोल की बड़ी वजहों में से एक है की MSP उपज की गुणवत्ता के आधार पर अर्थात ‘फेयर एवरेज क्वालिटी’ के आधार पर दिया जाता है। अगर उपज अच्छी क्वालिटी की है तभी MSP पर उसकी खरीद की जाती है, वहीं अगर MSP पर गारंटी होगी तो यह कैसे निर्धारित किया जायेगा की फसल की क्वालिटी कैसी है और खराब उपज होने पर उसके साथ क्या करना है।

MSP पर गारंटी से हमारा निर्यात और ट्रेड बैलेंस भी प्रभावित हो सकता है, क्यूंकि किसी निजी व्यापारी को MSP पे खरीद के लिए राजी करवा पाना टेढ़ी खीर है। इसके साथ ही सरकार के पास के ऐसी उपयुक्त अवसंरचना का अभाव है जिससे इतनी बड़ी मात्रा में उपज की खरीदी और भण्डारण किया जा सके। इन्हीं सब कारणों को देखते हुए मोदी सरकार MSP पर कानून लाने से कतरा रही है।

राहुल गांधी ने फेंका ‘तुरुप का इक्का’

वहीं किसानों के आंदोलन पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकाल रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि अगर इंडिया गठबंधन के नेतृत्व में सरकार बनीं तो कुछ ही दिनों में स्वामिनाथन की सभी सिफारिशें लागू की जाएगी।

सिफारिशें लागू करना इस वक्त कितना मुश्किल

अब किसान फिर से मांग कर रहे है की इन सिफारिशों को लागू करने के साथ ही  MSP को कानून बनाकर लागू किया जाए और गन्ने की फसल को भी इसके दायरे में लाया जाए। हालांकि किसानों की मांगे तो जायज है लेकिन वर्तमान लोकसभा अपने आखिरी सत्र में है अर्थात इसके पास बहुत कम दिनों का कार्यकाल ही शेष है, और जैसा की हम सब जानते हैं की कानून का निर्माण एक लम्बी प्रक्रिया है। इसके अलावा कुछ ही समय बाद आचार संहिता भी लागू हो जाएगी। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा की सरकार स्वामिनाथन की सिफारिशें लागू कर भी पाती है या नहीं।

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