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चारागाह की ज़मीन पर अतिक्रमण, कलेक्टर से कारवाई की मांग 

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प्रदेश की राजधानी में चारागाह के लिए आरक्षित भूमि में अवैध निर्माण करने का मामला सामने आया है। भोपाल के पर्यावरण कार्यकर्ता राशिद नूर खान ने जिला कलेक्टर को इसकी शिकायत करते हुए कहा कि खुद ग्राम पंचायत द्वारा ऐसी भूमि पर निर्माण की गतिविधियां करवाई जा रही है जहां स्थानीय लोग सालों से अपने पशुओं को चराते आए हैं।   

मामला हुजूर तहसील के समसगढ़ गांव का है। यहां खसरा नंबर 63/364 की भूमि स्थानीय लोगों के लिए चारागाह (चरनोई) भूमि के तौर पर आरक्षित है। इसके अलावा ग्राम की लगभग 20-22 एकड़ भूमि (खसरा नंबर 1), वन क्षेत्र से सटी हुई है। इस भूमि को राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) को आवंटित किया गया है जिससे चराई योग्य क्षेत्र में भारी कमी हुई। एक रिपोर्ट के अनुसार यहां मध्य प्रदेश की पहली एनसीसी अकादमी बनायी जा रही है।

राशिद खान बताते है कि प्रत्येक गांव के लिए एक भूमि आवंटित की जाती है, जो गांव की चारागाह भूमि होती है। इस भूमि का उपयोग गोवंश और अन्य पशुओं के चारे के लिए किया जाता है। ग्राम समसगढ़ में खसरा नंबर 63/364 की ज़मीन चारागाह भूमि के लिए आरक्षित है, जिसका जिक्र सरकार के एक ऑर्डर में किया गया है । 

सरकारी नोटिस के अनुसार इस भूमि पर नईम अहमद नाम के व्यक्ति ने अतिक्रमण कर रखा था। 24 जनवरी 2025 को जारी नोटिस में स्पष्ट रूप से लिखा है कि ‘भोपाल की भूमि खसरा क्रमांक 63/364 रकबा 1.210 हेक्टेयर भूमि शासकीय मध्य प्रदेश शासन नोईयत चरागाह मद की भूमि में से 0.180 हेक्टेयर भूमि पर तार फेंसिंग तथा 600  वर्ग फीट भूमि पर टीन शेड व 900 वर्ग फीट अतिक्रमण किया गया है।’

इसके विरुद्ध मध्य प्रदेश भू – राजस्व संहिता 1959 की धारा 248 के तहत कार्यवाही करने का आदेश दिया गया था। जिसके बाद कार्यवाही करते हुए यह अतिक्रमण हटाया गया है।

यहां ध्यान देने योग्य है कि मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 राज्य की भूमि व्यवस्था और राजस्व प्रशासन से संबंधित एक प्रमुख कानून है। इसे 1959 में लागू किया गया था ताकि जमीन के स्वामित्व, उपयोग, हस्तांतरण, सीमांकन, और भू-राजस्व वसूली की प्रक्रिया को एक समान बनाया जा सके। 

इस संहिता का उद्देश्य किसानों और भूमिधारकों के अधिकारों की रक्षा करना तथा भूमि विवादों का समाधान करना है। इसके तहत पटवारी, तहसीलदार और कलेक्टर जैसे अधिकारियों के अधिकार निर्धारित किए गए हैं। यह कानून भूमि रिकॉर्ड के रखरखाव और पारदर्शिता सुनिश्चित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

खान ने कहा कि भारत सरकार के पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, के अंतर्गत पर्यावरण संतुलन बनाए रखने हेतु हरित क्षेत्र और वृक्षों की रक्षा आवश्यक है। ऐसे में उन्होंने अपनी शिकायत में कहा है कि उपर्युक्त खसरा नंबरों की जांच कराई जाए और अवैध निर्माण कार्य को तत्काल रोकने का काम किया जाए। उन्होंने मांग करते हुए कहा कि जो भूमि ग्राम की चरनोई के रूप में दर्ज है, उसका यथास्थान राजस्व अभिलेखों में सत्यापन कराया जाए और उसे संरक्षित किया जाए। 

उन्होंने कहा कि अतिक्रमणकर्ता द्वारा यहां मौजूद वृक्षों को काटा या सुखाया जा रहा है। इसकी जांच की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि दोषियों पर वन अधिनियम 1927 के तहत कार्रवाई की जाए।

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