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Delhi Floods: “हमको डर लगता है, घर के अंदर जाएँगे तो घर गिर जाएगा”

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Delhi Floods: "हमको डर लगता है, घर के अंदर जाएँगे तो घर गिर जाएगा"
Delhi Floods: "हमको डर लगता है, घर के अंदर जाएँगे तो घर गिर जाएगा"

Delhi floods Ground Report | दिल्ली के मयूर विहार इलाके में कुछ लोग रिक्शे और अन्य साधनों से अपना सामान पानी से निकाल कर सूखी जगह में ले जा रहे हैं. वह जल्दबाज़ी में दिखाई देते हैं और हमसे रुक कर बात करने से मना कर देते हैं. वह सिर्फ इतना कहते हैं, “पानी फिर से बढ़ रहा है. हमारा घर पूरा डूबा हुआ है. हम सामान निकाल रहे हैं ताकि ज़्यादा नुकसान न हो.” इनकी तरह बहुत से लोग पानी में डूबकर अपना सामान निकाल रहे हैं. सभी इस आशंका से घिरे हुए हैं कि वापस बाढ़ सब कुछ उजाड़ देगी. 

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यमुना विहार में अपने डूबे हुए घरों से सामान निकालते लोग

दिल्ली में यमुना एक बार फिर ख़तरे के निशान (205.33) से ऊपर 205.45 m पर बह रही है. इसके अलावा आने वाले 4-5 दिनों में यहाँ भारी बारिश की संभावना भी है. ऐसे में राहत कैम्प और वापस घर लौट चुके लोगों को वापस से बाढ़ का डर सताने लगा है. जो लोग राहत कैम्प में रह रहे हैं उन्हें अपना बचा हुआ घर और सामान खो देने का डर है. जिन इलाकों में लोग पानी उतरने के बाद अपने घर लौट चुके हैं उन्हें वापस बाढ़ में अपना घर खो देने का डर सता रहा है.

post delhi floods ground report
बाढ़ के चलते लोगों को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है जिसने उन्हें अपने गांव लौटने पर मजबूर कर दिया है
post delhi floods ground report

पिंकी (45) बीते 15 सालों से दिल्ली में यमुना किनारे रह रही हैं. मगर बीते दिनों जब यमुना का पानी बढ़ने लगा तो उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा. अब बीते 15 दिनों से वह एक अर्धनिर्मित फ्लाईओवर में बने सरकारी राहत कैम्प में रह रही हैं. वह कहती हैं,

“हम लोग उस दिन बहुत जल्दबाज़ी में घर से निकले हमारा बहुत सारा सामान वही रह गया. गैस-चूल्हा और कागज़ भी सब वही रह गए.” 

बीमारियों का बढ़ता ख़तरा

बाढ़ की चिंता के अलावा धूप और तेज़ गर्मी ने खुले में रह रहे बाढ़ पीड़ितों की मुश्किलों को और भी बढ़ा दिया है. एक खाट पर बैठीं कलावती (65) हमें दवाइयाँ दिखाते हुए कहती हैं कि वो बाढ़ से पहले से बीमार थीं मगर अब खुले में होने के कारण उनकी तकलीफ बढ़ गई है. अलग-अलग राजनीतिक दलों और गैरसरकारी संस्थाओं की ओर से डॉक्टर बाढ़ पीड़ितों का इलाज कर रहे हैं. डॉक्टरों के अनुसार बाढ़ के बाद बीमारियों का खतरा और भी बढ़ गया है. डॉ. प्रीतम अहरावत कहते हैं,

“बाढ़ के बाद एलर्जी डिसऑर्डर और आईफ्लू के मरीज़ सबसे ज़्यादा आ रहे हैं. यहाँ गन्दगी बहुत ज़्यादा है जिसकी वजह से यह बीमारियाँ ज़्यादा फ़ैल रही हैं. आने वाले दिनों में इस तरह की बिमारी और बढ़ेगी ही.” 

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बाढ़ के बाद बीमारियों के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से मेडिकल सुविधाएं दी जा रही हैं
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मयूर विहार के जिस इलाके में हम लोगों से बात कर रहे थे वहां काफी संख्या में गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा खाना और दवा की व्यवस्था की जा रही है. मगर यहाँ से आगे मयूर विहार एक्सटेंशन की ओर बढ़ने पर नज़ारा बदल जाता है. यहाँ बाढ़ पीड़ित फ्लाईओवर के नीचे रहने को मजबूर हैं. पानी और खाने की दिक्कत झेल रहे ये लोग भी यमुना के बढ़ते पानी से चिंतित हैं. चिल्ला खादर में रहने वाले संजय बताते हैं कि उन्हें जो थोड़ा-बहुत सुविधा मिल रही है वह केवल गैर सरकारी संस्थाओं (NGO) से मिल रही हैं.पानी की समस्या का ज़िक्र करते हुए वह कहते हैं,

“सुबह 2 टैंकर पानी आता है. इसमें जिनको मिल गया तो ठीक है जिन्हें नहीं मिला उनकों नल से पानी भरना पड़ता है.”

वह बताते हैं कि नलों से गन्दा पानी आता है मगर मजबूरी में उसी का उपयोग करना पड़ता है. इसी तरह बच्चों के बारे में बात करते हुए रेशमवती कहती हैं, “बच्चे सुबह से भूखे हैं. हमने केवल नाश्ता बस किया है अब रात में कुछ मिल जाएगा तो खा लेंगे.”   

खेत के साथ आजीविका भी डूब गई 

मयूर विहार एक्सटेंशन के इस इलाके में रहने वाले ज़्यादातर लोग पेशे से किसान हैं. संजय भी 4 बीघा ज़मीन पर खेती कर रहे थे. करीब 30 हज़ार रुपए खर्च करके उन्होंने ख़रीफ़ की फ़सल बोई थी मगर वह कहते हैं कि बाढ़ में खेत के साथ आजीविका का यह साधन भी डूब गया. संजय की ही तरह रेशमवती भी पेशे से किसान हैं. उनकी 10 बीघा ज़मीन पर बोई फसल पर भी बाढ़ ने पानी फ़ेर दिया. संजय के पास 2 भैंस हैं. वह बताते हैं कि इन्हें खिलाने के लिए हर दिन करीब 2 सौ रूपए का भूसा लगता है इस हालत में यह जुगाड़ करना बेहद मुश्किल है. 

delhi floods 2023 victims
“ना हमारे पास बच्चों को खिलाने का पैसा है ना अपने जानवरों का पेट भरने का”

वापस लौटने को मजबूर पीड़ित

जब हम संजय और रेशमवती से बात कर रहे थे उस दौरान कुछ लोग अपना सामान एक लोडिंग वाहन में डालते हुए दिखे. अपना परिचय देते हुए वीरेंद्र बताते हैं कि वह अपने परिवार के साथ बीते 12 साल से दिल्ली में रह रहे थे. यहाँ चिल्ला खादर में वह 5 बीघा ज़मीन में खेती करते थे. मगर “बाढ़ ने सब बर्बाद कर दिया” है. वीरेन्द्र कहते हैं,

“यहाँ न खाने को कुछ है और न पीने का पानी है. हम खुद को दिल्ली में मरने नहीं दे सकते इसलिए मैं अपने परिवार के साथ वापस जा रहा हूँ.”

वीरेन्द्र की पत्नी हमसे बात करते हुए कहती हैं, “हमारा घर भी बह गया, खेत में जो पैसा लगाये थे वो भी डूब गया अब जो पैसा बचा है उससे घर जाएँगे वहीँ कमाए-खाएँगे.” वीरेन्द्र बताते हैं कि इससे पहले 3-4 लोग पहले ही अपने-अपने घर जा चुके हैं.

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सराय काले खां में अपनी टूटी हुई झुग्गी दिखाते बानो और अली
life after delhi floods

हमें डर है हमारा घर वापस डूब जाएगा  

सराय काले खां में स्थित श्मशान से सटी हुई झुग्गी में शाहर अली अपने परिवार के साथ वापस लौट गए हैं. 2 दिन हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद उनकी झुग्गी में रहने-सोने की गुंजाईश तो बनी है मगर पूरा घर अब भी अस्त-व्यस्त और गन्दा पड़ा हुआ है.

“मैं साल 2001 से इस घर में रह रहा हूँ मगर कभी भी मेरे घर में पानी नहीं भरा था. इस बार डेढ़ मीटर तक पानी भर गया था. उसके बाद हमारा घर पूरी तरह से डूब गया था. पानी उतरने के बाद हम यहाँ वापस आए हैं.” अली कहते हैं.

अली कबाड़ बेंचने का काम करते हैं. बाढ़ ने उनकी आजीविका को काफी प्रभावित किया है. वह कहते हैं कि उन्हें यह समझ नहीं आता है कि वह सब कुछ फिर से कैसे शुरू करेंगे. 

मुख्य सड़क से अन्दर स्थित इस झुग्गी में चारो ओर कबाड़ और गन्दगी नज़र आती है. इस बीच साफ़ पीने के पानी की उपलब्धता इनके लिए सबसे बड़ी समस्या है. “यहाँ पानी का एक टैंकर आता था मगर 9 जुलाई से वो भी नहीं आया है. हमें पानी भरने दूर हैण्डपम्प के पास जाना पड़ता है.” अली कहते हैं. यहाँ रहने वाले सभी लोग रोज़ाना क़रीब 10 लीटर पानी हाथ से ढोकर लाने को मजबूर हैं.

life after delhi floods
दहशत के चलते लोग अब भी झुग्गियों के बाहर सो रहे हैं।

यहाँ रहने वाले अन्य लोगों की तरह जमीला का घर भी बाढ़ में डूबने के बाद गिर गया था. वह अब भी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाया है. लोगों को डर है कि यदि फिर से पानी बढ़ता है तो उन्हें वापस अपना घर छोड़ना पड़ेगा. “हम लोग बाहर रहने को मजबूर हैं. घर इसलिए भी नहीं बना रहे हैं कि वापस पानी आएगा तो फिर गिर जाएगा.” जमीला कहती हैं. यहाँ की ही एक अन्य महिला बानो हमें उनका घर चलकर देखने को कहती हैं. वह बताती हैं कि वह अभी भी अपने घर नहीं जा रही हैं क्योंकि उनको डर है कि उनका घर गिर जाएगा. “हमको डर लगता है कि घर के अंदर जाएँगे तो घर गिर जाएगा. अपनी जान जोखिम में थोड़ा न डाल सकते हैं.” ग़ैरहिंदी भाषी बानो टूटी-फूटी हिंदी में हमें बताती हैं.            

मोहम्मद दिलशाद यमुना के बढ़ते हुए पानी से चिंतित हैं. वो कहते हैं, “आज नहीं तो कल यहाँ पानी आ जाएगा. तब फिर से अपना घर छोड़कर हमको तो जाना ही पड़ेगा.” वह बताते हैं कि थोड़ी ही दूर पर पानी अब भी भरा हुआ है. यहाँ भी जिन लोगों के घर डूबे हुए हैं उनको नंगली में स्थित स्कूल में शरण लेनी पड़ रही है.

दिल्ली के अलग-अलग इलाकों का दौरा करने के बाद हम यह समझ पाए कि अपने घरों से बाहर रह रहे और अपने घरों को लौट गए बाढ़ पीड़ितों में से किसी भी समस्या ख़त्म नहीं हुई है. साफ़ पानी और खाने का संकट दोनों ही जगह बना हुआ है. इस बीच बढ़ता हुआ जल स्तर दोनों ही लोगों में चिंता पैदा कर रहा है.   

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  • Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.

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