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सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है पुंछ शहर का दशनामी अखाड़ा

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सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है पुंछ शहर का दशनामी अखाड़ा
सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है पुंछ शहर का दशनामी अखाड़ा

जिस प्रकार से बौद्ध धर्म के भिक्षु जहां एकत्र होते हैं उसे मठ कहा जाता है, उसी प्रकार हिंदू धर्म में संतों के मठ को अखाड़ा कहा जाता है। साधु संतों के समूह को अखाड़ा शब्द से सबसे पहले आदि शंकराचार्य ने संबोधित किया था। शुरु में अखाड़ों की संख्या केवल चार थी, लेकिन बाद में साधु संतों में मतभेद के कारण कई अखाड़े अस्तित्व में आने लगे। जब हम जम्मू कश्मीर के पूंछ शहर गए तो वहां हमने दशनामी अखाड़ा (Dashnami Akhara Poonch) देखा, इसे देखकर मन में जिज्ञासा उठी, क्योंकि इससे पहले हमने इस अखाड़े का नाम तक नहीं सुना था।

dashnami akhara
दशनामी अखाड़ा का मुख्य द्वार

पुंछ शहर का नाम अक्सर सीमा पर होने वाली गोलीबारी के कारण खबर में रहता है। इसी वजह से यहां के इतिहास और संस्कृति के बारे में हमें कम ही पता है। तो जिज्ञासावश शहर घूमने हम निकले तो दशनामी अखाड़े (Dashnami Akhara Poonch) पर नज़र पड़ी, वहां मौजूद लोगों से हमने इसके बारे में जाना तो पता चला कि सन 1760 में जाने माने धार्मिक गुरु स्वामी जवाहर गिरी जी पहली बार जब यहां आए तो तबके राजा रुस्तम खान उनके दर्शन के लिए आए और उन्होंने यहां मंदिर निर्माण करने का निश्चय किया। स्वामी जवाहर गिरी अपनी समाधि तक यहीं रहे। उनकी छड़ी आज भी इस मंदिर में मौजूद है जिसके दर्शन के लिए देश भर से लोग यहां आते हैं। रक्षा बंधन के दिन यहां छड़ी मुबारक पर्व बड़ी धूम धाम से मानाया जाता है, जिसमें सभी धर्म के लोग हिस्सा लेते हैं।

dashnami akhara poonch
दशनामी अखाड़ा मंदिर प्रांगण

स्वामी जवाहर गिरी के बाद कई साधु संत यहां विराजमान रहे। मौजूदा समय में स्वामी विश्व आनंद जी महाराज मंदिर में विराजमान हैं।

शाम के समय मंदिर में काफी लोग दर्शन के लिए आते हैं, क्योंकि हम शिवरात्री के समय वहां पहुंचे थे तो कई श्रद्धालू मंदिर में मौजूद कुंड से शिवाभिषेक के लिए जल लेने पहुंचे थे। श्रवण पूर्णिमा के वक्त यहां काफी भीड़ होती है, देश भर से लोग यहां इकट्ठा होते हैं और छड़ी मुबारक यात्रा का हिस्सा बनते हैं। माना जाता है कि 1852 से 1892 तक यहां के शासक रहे राजा मोती सिंह ने दशनामी अखाड़ा (Dashnami Akhara Poonch) से बूढ़ा अमरनाथ तक की यात्रा की परंपरा शुरु की थी।

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मंडी स्थित बूढ़ा अमरनाथ मंदिर

रक्षा बंधन के 2 दिन पहले मंदिर के महंत इस यात्रा की शुरुवात करते हैं। पुलिस फोर्स की एक टुकड़ी चांदी की परत चढ़ी छड़ी को सलामी देती हैं उसके बाद ही यह यात्रा शुरु होती है। इसमें हज़ारों श्रद्धालु समेत देशभर से आए साधु संत भी हिस्सा लेते हैं। इस दौरान जगह-जगह श्रद्धलुओं का स्वागत किया जाता है, इसमें पुंछ के सभी धर्म के लोग हिस्सा लेते हैं। बरसों से दशनामी अखाड़ा (Dashnami Akhara Poonch) धार्मिक सद्भावना का केंद्र रहा है। क्योंकि इस मंदिर का निर्माण भी एक मुस्लिम शासक ने ही करवाया था। उसके बाद आए कई मुस्लिम शासकों ने भी इस अखाड़े के महत्व को ध्यान में रखते हुए इसका विस्तार करवाया।

dashnami akhara poonch
दशनामी अखाड़ा मंदिर प्रांगण

डोगरा राजाओं के समय दशनामी अखाड़ा शक्ति केंद्र माना जाता था। कोई भी जब राजा बनता तो पहले दशनामी अखाड़ा में उसका राज्याभिषेक होता फिर वह राजगद्दी संभालता था।

तो पुंछ की यात्रा के एक पड़ाव ने हमें दशनामी अखाड़े (Dashnami Akhara Poonch) से अवगत करवाया। अगर आप यहां आएं तो इस अखाड़े के दर्शन करने आ सकते हैं, यहां आपको यह एहसास होगा कि किस तरह बरसों से भारत ने अपनी सांस्कृतिक धरोहर और सांप्रदायिक सौहार्द को एक कोने में ही सही अभी तक बचाए रखा है।

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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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