मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने शुक्रवार, 3 सितंबर को भोपाल में वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए प्रदेश के किसानों को कुल 653 करोड़ रूपए की मुआवज़ा राशि वितरित की। इसमें अधिकतर लाभार्थी सोयाबीन की खेती करने वाले किसान थे। मगर इसी दौरान सीएम ने बुरहानपुर के केला उत्पादक किसानों को भी कुल 3.39 करोड़ रूपए का मुआवजा सिंगल क्लिक के माध्यम से वितरित किया। इस दौरान भोपाल से 344 किमी दूर बुरहानपुर जिला मुख्यालय में स्थानीय कलेक्टर, विधायक सहित केला उत्पादक पांडूरंग विट्ठल भी बैठे हुए थे। उन्हें 3,60,000 रूपए की राहत राशि वितरित की गई है जो जिले में सबसे ज्यादा है।
जिस वक़्त राजधानी में यह कार्यक्रम हो रहा था उस वक़्त बुरहानपुर जिला मुख्यालय से 17.8 किमी दूर खकनार तहसील के शिरपुर गांव में ममलेश्वर पाटिल लगभग 7 एकड़ में तैयार केले की फसल देख रहे हैं। वह कुल 14 एकड़ में इसकी खेती करते हैं मगर अगस्त से लेकर अब तक उनका आधा माल बिक चुका है। वह बचे हुए माल के लिए चिंतित हैं। दरअसल बुरहानपुर मंडी में केले का मौजूदा भाव 450-500 रूपए प्रति क्विंटल है। पाटिल का कहना है कि यह भाव उनकी लागत के बराबर भी नहीं है।
वह अकेले किसान नहीं हैं जो इससे प्रभावित हों। यहां एक ओर विट्ठल का नाम दोहरा कर स्थानीय विधायक द्वारा सरकार की पीठ थपथपाई जा रही है वहीं दूसरी ओर किसान संगठन केले के गिरते भाव, बीमा न होना और केले को मिड-डे मील में शामिल करने की मांग कर रहे हैं। प्रगतिशील किसान संघ द्वारा इन मांगों को लेकर स्थानीय कलेक्टर को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम का ज्ञापन भी सौंपा गया। किसान संगठनों की मांग है कि सरकार केले के लिए 2000 रूपए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करे।

सर्वाधिक केला उत्पादक जिला- बुरहानपुर
नेशनल हॉर्टीकल्चर बोर्ड के अनुसार मध्य प्रदेश देश का छठवां सर्वाधिक केला उत्पादक प्रदेश है। यहां 35314.24 हेक्टेयर में केले की खेती होती है। बुरहानपुर प्रदेश का सर्वाधिक केला उत्पादक जिला है। यहां लगभग 18,660 किसान 25,000 हेक्टेयर में 17 लाख टन केले का उत्पादन करते हैं। मध्य प्रदेश के अलग-अलग ज़िलों के अलावा इस फल का निर्यात गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली सहित ईराक, ईरान, दुबई, बहरीन और तुर्की में भी किया जाता है।
ममलेश्वर बताते हैं कि हर साल जून से अगस्त के बीच में केले के पौधों की बुवाई शुरू हो जाती है। यह 12 महीने की फसल है जिसकी 3 से 4 बार कटाई होती है। एक एकड़ के बाग़ में लगभग 1800 पेड़ आते हैं जबकि एक पेड़ में अधिकतम 25 किलो केले निकलते हैं। किसानों का कहना है कि कीटनाशकों के बढ़ते दाम और प्रबंधन में आने वाले खर्च के बढ़ने से केले की लागत हर साल बढ़ रही है। इस साल अगस्त में दाम बेहतर थे मगर सीजन के आखिर में अब दाम बहुत ही गिर चुके हैं।
“जून-जुलाई में जब मैंने केला बेचा तो मुझे 1000 से 1500 तक का रेट (प्रति क्विंटल) मिला था। अभी तो 350-400 ही मिल रहा है। केले के एक क्विंटल में तो खर्चा ही 450 रु से ऊपर हो जाता है।”
प्रगतिशील किसान संघ के प्रदेश अध्यक्ष और खुद 12 एकड़ में केले की कृषि करने वाले रघुनाथ पाटिल (72) भी मानते हैं कि किसानों को अच्छी फसल के बावजूद सही दाम नहीं मिल रहे हैं। दरअसल बीते दिनों में पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर जैसे बड़े उपभोक्ता राज्यों में बाढ़ और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदा के कारण निर्यात प्रभावित हुआ है। सितम्बर माह के पहले हफ्ते में जहां जिले से 25 से 30 गाड़ियां हर रोज़ निर्यात के लिए जाती थीं वहां एक गाड़ी का निर्यात भी नहीं हुआ।
रघुनाथ कहते हैं कि सरकार को केले का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2000 रुपए करना चाहिए। वह कहते हैं कि एमएसपी से कम दाम मिलने पर भावांतर योजना के तहत किसानों को लाभ दिया जाना चाहिए। ममलेश्वर भी मानते हैं कि अगर सरकार केले के लिए 2000 रूपए एमएसपी की घोषणा करती है तो स्थानीय व्यापारियों को इस भाव में केला खरीदना पड़ेगा। हालांकि केंद्र और राज्य सरकार का कोई भी कानून व्यापारियों को इसके लिए मजबूर नहीं करता।

तूफ़ान से ख़राब हुई थी फसल
बुरहानपुर के केले के किसानों के लिए यह साल बहुत अच्छा नहीं रहा है। इसी साल आंधी-तूफ़ान के कई दौर आए जब फसलें प्रभावित हुईं। सबसे पहले मई माह में फसल ख़राब हुई उसके बाद 27 और 28 अगस्त को, और फिर सीजन के सबसे पीक समय 16-17 सितंबर में भी आंधी-तूफ़ान के कारण ही केले की फसल प्रभावित हुई। एक न्यूज़ रिपोर्ट के अनुसार अतिवृष्टि के चलते सितंबर में लगभग 100 एकड़ में फसल प्रभावित हुई थी।
हालांकि यह पहला सीजन नहीं है जब मौसमी कारणों से फसल पर विपरीत असर न पड़ा हो। ममलेश्वर बताते हैं कि इस तरह का नुकसान लगातार होता रहता है। वह अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं, “लगभग 2 साल पहले मेरे एक प्लॉट के आधे पेड़ आंधी के बाद गिरकर ख़राब हो गए थे।” स्थानीय विधायक अर्चना चिटनिस ने भी बताया कि मुख्यमंत्री द्वारा इससे पहले भी मई-जून 2024 में ख़राब हुई केले की फसल के लिए 65 करोड़ रूपए का मुआवजा दिया गया था।
रघुनाथ कहते हैं कि केला उत्पादकों को सबसे ज्यादा नुकसान पनामा विल्ट से होता है। वह बताते हैं कि 45 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान होने पर केले की फसल में इस रोग का खतरा बढ़ जाता है। पनामा रोग एक प्रकार की फंगल बीमारी है जो मृदा जनित (soil-borne) होती है। यह रोग केले के पौधे के वैस्कुलर टिशूज को नुकसान पहुंचाता है, जिससे पौधे में पानी और पोषक तत्वों का संचार बाधित होता है। इससे प्रभावित पौधे के पत्ते धीरे-धीरे पीले पड़ने लगते हैं और अंततः मुरझा जाते हैं।

प्रदेश में इसका कोई बीमा नहीं
मगर ममलेश्वर सहित प्रदेश का कोई भी केला उत्पादक किसान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ नहीं उठा सकता। दरअसल मध्य प्रदेश में केला को इस योजना के तहत शामिल नहीं किया गया है। जबकि किसान और किसान संगठन इसके लिए लगातार मांग कर रहे हैं। रघुनाथ ने हमसे बात करते हुए बताया कि 2018 तक प्रदेश में केला की फसल का बीमा होता था मगर नई प्रदेश सरकार बनने के बाद 2019 से ही इसे बंद कर दिया गया। बकौल रघुनाथ इस बारे में स्थानीय अधिकारीयों से बात करने पर यह कहा गया कि कोई भी बीमा कंपनी केले के बीमा में रूचि नहीं ले रही है।
गौरतलब है कि 23 जुलाई 2019 को लोकसभा में दिए गए एक जवाब में बताया गया कि मध्य प्रदेश में वेदर बेस्ट क्रॉप इंशोरेंस स्कीम (WBCIS) के तहत कुल 7 फसलों को अधिसूचित किया गया है। इसमें केले की फसल को शामिल नहीं किया गया है। यह योजना प्राकृतिक आपदाओं से बागवानी फसलों को होने वाले नुकसान के लिए डिजाइन की गई है।
बुरहानपुर जिला मध्य प्रदेश को महाराष्ट्र से जोड़ता है। किसानों का कहना है कि जब कुछ ही किमी दूर महाराष्ट्र में इस योजना का लाभ किसानों को दिया जा रहा है तो उन्हें इसका लाभ क्यों नही दिया जा रहा? हालांकि शुक्रवार को हुई वीडियो कांफ्रेंसिंग में भी विधायक चिटनिस ने बताया कि उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलकर केले को पीएम फसल बीमा योजना में शामिल किए जाने की मांग उठाई थी। सीएम ने इस मांग को जल्द पूरा करने का आश्वासन दिया है।

मध्य प्रदेश की तरह देश के अन्य हिस्सों में भी इस बार केले के भाव में भारी गिरावट आई है। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी गोवर्धन वर्मा ने अपने 3 एकड़ के केले की कड़ी फसल पर ट्रैक्टर चला दिया। 2 एकड़ में लगी फसल के साथ ऐसा ही यहां के एक अन्य किसान मनजीत ने भी किया। इसका कारण बताते हुए बुरहानपुर के एक व्यापारी कहते हैं, “देश भर में केले का उत्पादन अधिक हुआ है जबकि मांग कम हुई है, बड़े-बड़े प्रदेश जहां गाड़ी जाती थीं वहां बाढ़-भूस्खलन के चलते माल नहीं जा रहा है ऐसे में कोई भी व्यापारी अधिक रेट देकर अपने जेब से नुकसान नहीं उठाना चाहता।”
रघुनाथ इस मसले पर कहते हैं कि अगर देश भर में मिड-डे-मील में केले को शामिल कर दिया जाए तो मांग को बनाए रखा जा सकता है। वह कहते हैं कि केला पौष्टिक होता है ऐसे में यह पोषण की समस्या और किसानों के संकट दोनों को दूर करेगा। हालांकि कर्णाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडू जैसे कुछ राज्यों में केला मिड डे मील का हिस्सा है। मगर मध्य प्रदेश में ऐसा नहीं है। शुक्रवार को हुए संवाद में इस बारे में कोई भी चर्चा नहीं की गई।
केला मध्य प्रदेश के बुरहानपुर के किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण फसल है। ममलेश्वर जैसे कई किसान सिर्फ इसी की खेती करके अपनी वार्षिक कमाई कर रहे हैं। ऐसे में यह ज़रूरी है कि मुआवजे के साथ ही सरकार इन किसानों की समस्या का कोई स्थाई हल निकाले।
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