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कूनो के चीतों की स्‍वतंत्र सैर या संरक्षण की नई चुनौतियां?

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Cheetahs vs Nilgai: Predators Turn Saviors for Farmers in Gandhi Sagar
Cheetahs vs Nilgai: Predators Turn Saviors for Farmers in Gandhi Sagar

कूनो के जंगलों से निकल चीता ज्‍वाला ने राजस्‍थान के सवाई माधोपुर तक का सफर किया। इस सफर के दौरान ज्‍वाला ने चंबल नदी को तैरकर पार किया। उसका यह साहसिक सफर सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि भारत की महत्‍वाकांक्षी चीता परियोजना का एक नया अध्‍याय है। यह परियाेजना मध्‍य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क से शुरू हुई है। जोकि चीतों को भारतीय जंगलों में फिर से बसाने का सपना दिखाती है। परंतु चीते अब कूनो से बाहर निकलकर मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान और उत्तर प्रदेश के विशाल 17000 वर्ग किलोमीटर के प्रस्‍तावित गलियारे में अपने लिए रास्‍ता बना रहे हैं। इससे सवाल उठता है कि क्‍या यह स्‍वतंत्र विचरण संरक्षण की कामयाबी है या नई मुश्किलों का आगाज़? 

चीतों का साहसिक सफर: 35 माह में 8 जिलों की सैर 

प्राेजेक्‍ट चीता को शुरू हुए 35 माह हो चुके हैं। इस दौरान चीते श्‍योपुर सहित आठ जिलों ( मुरैना, शिवपुरी, अशोकनगर, राजस्‍थान के बारां, सवाईमाधोपुर और करौली) का सफर कर चुके हैं।

पहली बार 17 सितंबर 2022 को नामीबिया से 8 और फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते कूनो लाए गए थे। सितंबर 2025 तक कूनो में 31 चीते हैं। इनमें 10 वयस्‍क और 21 शावक शामिल हैं। मादा चीता ज्‍वाला ने 11 अगस्‍त 2025 को चंबल नदी पार कर सवाई माधोपुर के करीरा गांव में बकरी का शिकार किया। अगले दिन उसे वापस लाया गया। इसी तरह 26 दिसंबर 2023 को नर चीता अग्नि‍ बारां जिले में पहुंचा और 4 मई 2024 को पवन करौली गया। ये घटनाएं बताती हैं कि चीते खुद अपने गलियारे बना रहे हैं। जो कि प्रस्‍तावित चीता कॉरिडोर लैंडस्‍केप का हिस्‍सा है। 

भारतीय वन्‍यजीव संस्‍थान (WII) के विशेषज्ञ डॉ. यदवेंद्र झाला कहते हैं,

”चीते स्‍वाभाविक रूप से 100-200 किलोमीटर तक घूमते हैं। उनका यह सफर गलियारे की जरूरत को साफ करता है।” 

चीतों का बार-बार पड़ोसी राज्‍यों में जाना उनकी अनुकूलन क्षमता दिखाता है, लेकिन बार-बार रेस्‍क्‍यू की जरूरत जैसे चुनौतियां भी उजागर करती है। यदि निर्धारित चीता कॉरिडोर लैंडस्‍केप तैयार होता। तो इस लैंडस्‍केप में प्रे-बेस (शिकार) सहित अन्‍य सुविधाएं और प्रशिक्षित टीमें तैयार होती। इससे बार-बार चीतों को रेस्‍क्‍यू की जरूरत नहीं होती। परंतु इस लैंडस्‍केप का काम अधूरा है और कागज़ी प्रक्रिया अटकी हुई है। 

प्रस्‍तावित गलियारा, कागजी प्रक्रिया में उलझा, पांच साल में तैयार होगा लैंडस्‍केप प्‍लान 

चीता कॉरिडोर 17000 वर्ग किमी मे प्रस्‍तावित है। इस परियोजना में मध्‍य प्रदेश के श्‍योपुर, शिवपुरी, ग्‍‍वालियर, मुरैना, गुना, अशोकनगर, मंदसाैर, नीमच, राजस्‍थान के बारां, सवाई माधोपुर, करौली, कोटा, झालावाड़, बूंदी, चित्तौड़गढ़ और उत्तर प्रदेश के झांसी व ललितपुर शामिल हैं। 

चीता कॉरिडोर प्रबंधन के संबंध में 04 नवंबर 2024 को मध्‍य प्रदेश और राजस्‍थान के बीच सहमति बनी। इसका उद्देश्‍य यह है कि चीतों की आवाजाही के लिए गलियारे का विकास किया जा सके और चीता संरक्षण के क्षेत्र में उनकी सुरक्षित आवाजाही का प्रबंधन किया जा सके। हालांकि मध्‍य प्रदेश और राजस्‍थान के बीच समझौता ( एमओयू) अभी रूका हुआ है। इससे गलियारे का काम प्रभावित हो रहा है।  

राजस्‍थान में भारतीय वन्‍यजीव देहरादून के विशेषज्ञों की मदद लेकर सर्वे कार्य किया जा रहा है। जबकि मध्य प्रदेश में कागज़ी कार्रवाई चल रही है। कूनो-गांधी सागर चीता कॉरिडोर कार्य के लिए पांच साल की टाइमलाइन तय की गई है। 

क्‍या यह अच्‍छा संकेत?

चीतों का बार-बार बस्तियों में जाना एक तरफ उनकी अनुकूलन क्षमता दिखाता है। दूसरी ओर यह प्रस्‍तावित गलियारे के महत्‍व को रेखांकित भी करता है। विशेषज्ञ चेताते हैं कि चीतों को स्‍वतंत्र विचरण के लिए बड़ा क्षेत्र चाहिए। समय रहते ज़रुरी कदम उठाने की आवश्कता है, नहीं तो मानव संघर्ष बढ़ सकता है। जुलाई 2025 में ज्‍वाला ने वीरपुर में गाय पर हमला किया। इसके बाद ग्रामीणों ने पथराव किया। दिसंबर 2024 में वायु को श्‍योपुर शहर में शिकार करते देखा गया। अब तक 8 वयस्‍क और 5 शावकों की मौत हुई, जिसमें पवन की अगस्‍त 2024 में नाले में डूबने से मृत्‍यु शामिल है। 

सफारी टूर ऑपरेटर और दक्षिण अफ्रीका के मेटा पॉपुलेशन इनिशिएटिव/चीता मेटा पॉपुलेशन प्रोजेक्‍ट के बोर्ड चेयरमैन केविन लियो-स्मिथ ने कहा,

”चीतों का नदियां तैरना उनकी ताकत दिखाता है, लेकिन प्रबंधन को डूबने जैसे खतरों के लिए तैयार रहना होगा।” 

कूनो में चीता शिकार की कमी से भी जूझ रहे है और वो बस्तियों की ओर रूख कर रहे हैं। भारतीय वन्‍यजीव संस्‍थान, देहरादून की रिपोर्ट में कूनो में चीतों के भोजन पर संकट का खुलासा किया जा चुका है।  

एक वन्यजीव अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कूनो में अभी आठ चीते ही स्‍वंतत्र विचरण कर रहे हैं। इनमें से कुछ चीते बार-बार राजस्‍थान की तरफ रूख कर रहे हैं। वहां उन्‍हें संभवत: शिकार आसानी से उपलब्‍ध हो रहा है। 

हालांकि शिकार की कमी को देखते हुए चीतों को गांधी सागर अभयारण्‍य में शिफ्ट किया जा रहा है। फिलहाल यहां दो चीतों को शिफ्ट किया जा चुका है, जबकि मादा चीता शिफ्ट करने की तैयारी चल रही है। 

कूनो के डीएफओ आर. थिरुकुराल कहते हैं,

”चीते भारतीय परिवेश और जलवायु के हिसाब से ढल रहे हैं और खुलकर घूम रहे हैं। चीता कॉरिडोर परियोजना पर काम जारी है।” 

वन्‍यजीव विशेषज्ञ सुझाते हैं कि शिकार की विविधता बढ़ाने, चीता मित्र कार्यक्रमों से ग्रामीणों को संरक्षण से जोड़ने के सुझाव दिए गए हैं। हालांकि कूनो में चीता मित्र सम्‍मेलन में भी रोजगार की मांग की गई थी। ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें पर्यटन गतिविधियों में शामिल किया जाए, ताकि रोजगार उपलब्‍ध हो सके। इसके अलावा एक्‍सपर्ट ने ड्रोन और एआई की मदद से निगरानी बढ़ाने का सुझाव दिया है। चीता ज्‍वाला को ड्राेन से ट्रैक कर ही राजस्‍थान से रेस्‍क्‍यू किया गया था। 

आगे की राह

चीतों का 35 माह में दो राज्‍यों और 18 जिलों का साहसिक सफर नई राहें खोल रहा है। यह प्रस्‍ताविक चीता कॉरिडोर की ज़रूरत को रेखांकित करता है। विशेषज्ञों की सलाह पर अमल कर ( ग्रामीणों को जागरूक कर, तकनीक का सहारा ले और राज्‍यों के बीच सहयोग बढ़ाकर) यह गलियारा चीतों का सुरक्षित ठिकाना बन सकता है। यह न केवल चीतों को नया जीवन देगा, बल्कि स्‍थानीय लोगों के लिए पर्यटन और रोजगार का सुनहरा अवसर भी खोलेगा। 

लेकिन यह देखने वाली बात होगी कि राज्‍यों के बीच सहमति कब बनती है। क्‍यों‍कि चीतों ने तो कई बार बता दिया कि जंगल में इंसानों द्वारा खींची गई लकीरों से उन्‍हें कोई लेना देना नहीं। अब यह जंगल उनका है, चाहे वे किसी भी राज्‍य की सीमा का हो। यह बात वन अधिकारियों को समझनी होगी।

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  • Based in Bhopal, this independent rural journalist traverses India, immersing himself in tribal and rural communities. His reporting spans the intersections of health, climate, agriculture, and gender in rural India, offering authentic perspectives on pressing issues affecting these often-overlooked regions.

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