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Bhopal BRTS Explained: शिवराज की 360 करोड़ की योजना पर CM मोहन का ‘बुलडोजर’!

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Bhopal BRTS Explained: शिवराज की 360 करोड़ की योजना पर CM मोहन का ‘बुलडोजर’!
Bhopal BRTS Explained: शिवराज की 360 करोड़ की योजना पर CM मोहन का ‘बुलडोजर’!

Bhopal BRTS: मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री मोहन यादव (CM Mohan Yadav Madhya Pradesh) की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय बैठक हुई. इस बैठक में राजधानी की पहचान बन चुके BRTS कॉरिडोर (Bhopal BRTS) को हटाने का निर्णय लिया गया। 20 जनवरी से इस कॉरीडोर पर बुलडोजर चलेगा. इस बीआरटीएस (Bhopal BRTS) का पहला खाका शिवराज सरकार (Shivraj Singh Chouhan Government) में वर्ष 2009 में तैयार किया गया था. 360 करोड़ रुपये की लागत से 24 किलोमीटर लंबा यह कॉरिडोर वर्ष 2013 में बनकर तैयार हुआ था. बीते 10 सालों में ऐसा क्या हुआ जो सरकार इसे अब तोड़ने पर आमादा है. पढ़ें इस रिपोर्ट में.

शिवराज सरकार में 360 करोड़ रुपये में बनकर तैयार हुआ था Bhopal BRTS

राजधानी भोपाल में ट्रैफिक के बेहतर प्रबंधन के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस प्रोजेक्ट को 2009-10 में शुरू किया। वर्ष 2013 में यह बनकर तैयार हुआ. इस परियोजना की लागत 360 करोड़ रुपये थी. यह 24 किलोमीटर लंबा था। देश भर में ऐसे कुल 13 BRTS कॉरिडोर हैं। लेकिन भोपाल का BRTS इकलौता नेट कॉस्ट पर चलने वाला प्रोजेक्ट था।

अपने लक्ष्य को पूरा करने में रहा असफल

भोपाल BRTS रेल्वे स्टेशन और शहर के 2 बस स्टैंड को आपस में जोड़ता था। बसें कॉरिडोर के अंदर और बाहर चलती थीं. BRTS बसों के अलावा अन्य बसें और एंबुलेंस भी इससे आ जा सकती थीं. लेकिन पिछले कुछ सालों में यह अपने मुख्य लक्ष्य, यातायात के कुशल प्रबंधन को पूरा करने में असफल रहा। लोगों को सबसे ज्यादा ट्रैफिक की समस्या से जूझना पड़ रहा था। प्रदेश की नई मोहन यादव सरकार ने इसे अब तोड़ने का फैसला लिया है. 20 जनवरी से इस पर बुलडोजर चलेगा।

PWD चलाएगा बुलडोजर, बैरागढ़ से शुरू

कॉरिडोर को हटाने का काम लोक निर्माण विभाग को सौंपा गया है। सीएम मोहन यादव ने बैठक में यह भी तय किया की इसे हटाने का काम रात में किया जाए। यह सबसे पहले वहां से टूटना शुरू होगा जहां ट्रैफिक का दबाव सबसे ज्यादा होता है इसलिए इसे बैरागढ़ से तोड़ना शुरू किया जायेगा। कॉरिडोरों को हटाने के बाद सड़कों के बीच में डिवाइडर बनाये जायेंगे।

कई सुझावों के बाद मोहन यादव का फैसला

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा, बीआरटीएस कॉरिडोर से कई तरह की दिक्कतें आ रही थीं। विभन्न मंत्रियों और विधायकों सहित भोपाल जिले की तमाम विधानसभा क्षेत्र के निर्वाचित प्रतिनिधियों से भी अनेक सुझाव मिले। जन प्रतिनिधियों ने इस बात पर सहमति जताई कि बीआरटीएस कॉरिडोर को हटाकर स्थानीय परिवहन व्यवस्था को और अधिक बेहतर बनाया जा सकता है।

कांग्रेस ने साधा निशाना

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विवेक तन्खा ने इस मामले में कहा कि, आपको बस समयबद्ध जांच करने की ज़रूरत है। यह सार्वजनिक असुविधा किस नौकरशाह ने पैदा की? और इससे किसको लाभ होगा? करोड़ों रुपयों की सार्वजनिक धन की बर्बादी है ये। आपसे अपेक्षा है कि आप जांच के आदेश देंगे।

BRTS ही बना बुनियादी दिक्कत

BRTS कॉरिडोर बनने के बाद भोपाल की सड़कें पहले की तुलना में और भी ज्यादा संकरी हो गई थीं, क्योंकि यह मुख्य सड़कों का 80 फीसदी हिस्सा घेर रहा था. और अन्य ट्रैफिक जिसमें कार, दोपहिया वाहन, और भारी वाहनों के आवागमन में बाधा हो रही थी। पार्किंग की समुचित व्यवस्था नहीं थी। इसके अलावा मेन रोड से सटे घरों में भी शोर शराबा बढ़ गया था।

करीब 50 दुर्घटनाओं की वजह बना

भोपाल BRTS की CEO निधि सिंह के अनुसार बीते एक साल करीब 50 सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं. इनमे से 3 गंभीर थीं। इन्हीं कारणों को देखते हुए लम्बे समय से जन प्रतिनिधि और जनता इसे हटाने की मांग कर रही थी। वहीं महापौर मालती राय ने बताया कि, 2021 से Bhopal BRTS को दिया बजट उपयोग में नहीं लाया गया है।

विश्व में सफल लेकिन भारत में असफल प्रयोग

BRTS जकार्ता, नागोया जैसे शहरो में सफल रहा है, इसका मुख्य उद्देश्य शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देना और लोगो की कार पर निर्भरता को कम करना है साथ ही कुशल यातायात प्रबंधन भी इसका मुख्य लक्ष्य है। विश्व के कई शहरों में यह सफल साबित हुआ लेकिन देश के कई शहरों में यह शुरू हुआ लेकिन उतनी ही तेजी से इसे बंद भी करना पड़ा. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में यह पहले ही बंद हो चुका है। अब भोपाल में भी इसे बंद करने का निर्णय ले लिया गया है, वहीं जयपुर BRT को भी बंद करने पर मंथन जारी है.

अहमदाबाद: भारत में एक सफल उदहारण

लेकिन अन्य शहरों की तुलना में अहमदाबाद अपने आप में एक अनूठी मिसाल पेश करता है. अहमदाबाद का 160 किलोमीटर लंबा BRTS कॉरिडोर सबसे सफल प्रयोग साबित हुआ। अहमदाबाद BRTS ने एजाइल मॉडल (Agile Model) अपनाया। इसमें मौजूदा चुनौतियों के देखते हुए समय-समय पर इसे अपग्रेड किया गया और स्थानीय लोगों को भी इसमें सुविधाजनक पाया गया।

अब आगे की राह

भोपाल में भी फंड के सही उपयोग, फुट ओवरब्रिज, जनता से बेहतर संवाद जैसे विकल्पों के माधयम से यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता था। लेकिन अब परिवहन का ऐसा विकल्प दिया जाये जो स्थानीय जनता की सुविधाओं, जरूरतों और पर्यावरण के अनुकूल हो।

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  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

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