मध्य प्रदेश के सीहोर जिला के छापरी गांव के किसान मोहन जाट ने अपनी सोयाबीन की खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चला दिया। इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि फसल का बाजार में जो दाम है उससे लागत तो छोड़िये सोयाबीन कटवाने का खर्च भी नहीं निकल रहा। इसी बीच गुरूवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने सागर जिले के सुरखी विधानसभा क्षेत्र के जैसीनगर (जय शिवनगर) में एक बड़ी घोषणा की। उन्होंने भावांतर योजना की घोषण करते हुए कहा कि अगर किसी भी किसान की सोयाबीन की फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम में बिकती है तो किसान को विक्रय मूल्य और एमएसपी के बीच का अंतर सरकार देगी।
केंद्र सरकार द्वारा इस साल मई के महीने में सोयाबीन की नई एमएसपी 5328 रूपए घोषित की गई थी। मुख्यमंत्री डॉ यादव ने उदाहरण देते हुए अपनी सभा में कहा कि अगर कोई किसान 5000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर सोयाबीन बेचता है तो सरकार उसे 328 रुपये का अतिरिक्त भुगतान करेगी।
मुख्यमंत्री डॉ यादव ने स्पष्ट किया कि किसानों को भावांतर योजना का लाभ लेने के लिए पंजीयन कराना अनिवार्य होगा। किसान पहले की तरह मंडियों में सोयाबीन बेचेंगे और बिक्री के बाद यदि एमएसपी और वास्तविक मूल्य में अंतर हुआ तो यह राशि सीधे किसानों के खातों में जमा होगी। इस घोषणा के बाद कई किसानों ने ख़ुशी ज़ाहिर की वहीं कुछ का कहना है कि यह घोषणा थोड़ी देर से की गई है अब अगर जल्द पंजीयन शुरू नहीं किया जाता तो योजना का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।

किसान कर रहे थे प्रदर्शन
मोहन जाट प्रदेश के अकेले किसान नहीं हैं जिनकी फसल ख़राब हुई हो। इससे पहले शनिवार, 20 सितंबर को जब केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के दौरे पर थे तब सीहोर जिले के ही कुछ किसानों ने उन्हें फसल ख़राब होने की जानकारी दी थी। इस पर केन्द्रीय मंत्री ने सीहोर के कलेक्टर और अन्य अधिकारियों को फोन करके फसल का सर्वे करवाने का निर्देश दिया था।
वहीं नीमच जिला में पीला मोजैक के कारण किसानो की फसलें ख़राब हुई हैं। व्हाइट फ्लाई (Bemisia tabaci) द्वारा फैलने वाली इस बिमारी में फसल के पत्ते पीले पड़ने लगते हैं और फसल का उत्पादन 100% तक भी कम हो सकता है। मंगलवार 23 सितंबर को किसान इसी बिमारी के चलते ख़राब हुई फसल का 100 मुआवजा देने की मांग करते हुए कलेक्ट्रेट पहुंचे। उन्होंने कहा कि अगर प्रशासन 7 दिनों में उनकी मांग नहीं मानता तो वह बड़ा प्रदर्शन करेंगे।
यही हाल रतलाम का भी रहा जहां किसानों ने बगैर सर्वे कराए 11 हजार रूपए प्रति बीघा के मुआवजे की मांग की। सोयाबीन प्रोसेसर एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (SOPA) द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार प्रदेश में लगभग 6% फसल अत्यधिक बारिश होने से ख़राब हुई है। वहीं 15% एरिया में फसल का उत्पादन प्रभावित हुआ है। एसोसिएशन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डीएन पाठक ने एक अंग्रेज़ी दैनिक को बताया कि जेएस-9560 जैसी वैराइटी में पीला मोजेक, छोटे दाने और खाली बालियों के कारण उत्पादन प्रभावित हुआ है। एसोसिएशन के अनुमान के अनुसार प्रदेश में इस बार पिछले साल की तुलना में 6।5% कम क्षेत्र में इस फसल की बोवाई हुई है।
सीएम ने भी नुकसान की बात स्वीकार करते हुए कहा कि प्रभावित क्षेत्रों का सर्वे करवाया जा रहा है और किसानों को मुआवजा दिया जाएगा। उन्होंने कहा किसानों को भावांतर योजना से बोनस तो मिलेगा ही, साथ ही फसल नुकसान की भरपाई भी की जाएगी।

2017: योजना का आना और जाना
भावांतर भुगतान योजना की शुरुआत 16 अक्टूबर 2017 को तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा की गई थी। पहले वर्ष में, राज्य सरकार ने आठ फसलों, मुख्यतः तिलहन और दलहन के लिए यह योजना शुरू की थी। वहीं 2018 में इस योजना का विस्तार कुल 13 खरीफ फसलों तक कर दिया गया। इस योजना का इसका मुख्य उद्देश्य मूल्य में गिरावट के समय किसान को मुआवजा देना और जोखिम को कम करना था।
सरकार ने इसे शुरू करने के पीछे यह तर्क दिया था कि मंडी में किसानों को सही मूल्य नहीं मिल पाता, बिचौलियों का दबाव रहता है, और किसान अक्सर मजबूरी में अपनी उपज सस्ते दाम पर बेच देते हैं। हालांकि योजना लागू होने के बाद इसमें कई गड़बड़ियां भी सामने आईं। जबलपुर के सीहोरा में दिसंबर 2017 को तीन किसान फर्जी दस्तावेज के साथ एक व्यापारी की फसल बेचते हुए पकड़े गए थे। वहीं राजधानी भोपाल की करोंद मंडी में अक्टूबर 2017 को किसानों ने शिकायत की के व्यापारी उन्हें फसल बिक्री का नगद भुगतान नहीं कर रहे हैं जबकि सरकार ने 50 हजार तक का भुगतान नगद करने का आदेश दिया था। किसानों का कहना है कि व्यापारी नगद मांगने पर कमीशन काट कर पैसा दे रहे हैं।
2017 में इस योजना के लागू होने के बाद न सिर्फ विपक्ष ने सरकार को घेरा बल्कि खुद सरकार के मंत्रियों और नेताओं में भी इस योजना को लेकर सहमती नहीं बनी थी। कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने उड़द के दाम गिरने पर इसे योजना से बाहर कर समर्थन मूल्य पर खरीदी की बात कही थी। वहीं ऊर्जा मंत्री पारस जैन ने व्यापारियों द्वारा नगद भुगतान न करने की शिकायत रखी थी मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि मंत्री अपने-अपने जिलों से फीडबैक लेकर बताएं कि योजना जारी रखी जाए या इसमें बदलाव की जरूरत है।
मगर इस निर्देश के बाद भी अनियमितता जारी रही आखिरकार 2019 के बाद योजना धीरे-धीरे ठंडी पड़ गई और अंततः इसे बंद कर दिया गया।

सोयाबीन को होता नुकसान
देश में सोयाबीन उत्पादन और बुवाई के मामले में मध्यप्रदेश पहले स्थान पर है, जिसकी हिस्सेदारी 55 से 60 प्रतिशत के बीच है। राज्य का मालवा और निमाड़ क्षेत्र (भोपाल, गुना, रायसेन, सागर, विदिशा, देवास, सीहोर, उज्जैन, शाजापुर, इंदौर, रतलाम, धार, झाबुआ, मंदसौर, राजगढ़, नीमच) सोयाबीन की खेती के लिए जाने जाते हैं। मगर बीते कुछ सालों में बारिश, खबर गुणवत्ता की दवा और मंडी में दाम न मिल पाने के कारण किसानों को भारी नुकसान हुआ है।
2024 में मालवा और निमाड़ क्षेत्र के किसानों की 80 फीसदी फसल बर्बाद हुई थी। उस दौरान ग्राउंड रिपोर्ट ने इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट भी की थी। मोहित मारन (30) सीहोर के लसुड़िया परिहार गांव में 20 एकड़ में सोयाबीन की खेती करते हैं। उन्होंने बीते साल अपनी कुल 80 क्विंटल फसल तत्कालीन एमएसपी रेट में बेची थी। मगर उस साल उन्हें कई घाटा भी उठाना पड़ा। उन्होंने अपने एक एकड़ खेत में क्लाइमेट रेजिस्टेंट वैराइटी RVSM 1135 लगाई थी। मगर यह फसल भी ख़राब हो गई। वहीं ख़राब क्वालिटी का फंजीसाईट डालने के चलते उनको अपनी कुछ फसल दोबारा बोनी पड़ी।
मध्य प्रदेश में यह एक या दो घटना नहीं है जब सोयाबीन के किसानों का किसी न किसी कारण नुकसान हुआ हो। इसी साल राजगढ़ के कई किसानों को ख़राब क्वालिटी बीज वितरित किए गए जिसके बाद उनको अपनी फसल दोबारा बोनी पड़ी। मगर किसानों को घाटे से बचाने के लिए सरकार सोयाबीन की खरीद एमएसपी पर कर रही थी।

मगर इसी माह सोपा के चेयरमैन डॉ दविश जैन ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर सोयाबीन की खरीदी से बढ़ते सरकारी घाटे पर चिंता जताई थी। सरकार ने पीएसएस के तहत 20 लाख टन सोयाबीन खरीदी। लेकिन सोपा (SOPA) ने कहा कि प्रशासनिक खर्च, लॉजिस्टिक्स, और माल ख़राब होने जैसे कारणों से खरीदी की लागत (procurement cost) बढ़ी है। एसोसिएशन के अनुसार सरकार को लगभग 2000 करोड़ रूपए का घाटा हुआ है। चूंकि इस साल एमएसपी बढ़ा दी गई है ऐसे में यह घाटा और बढ़ सकता है।
डॉ जैन ने अपने पत्र में सरकार से भावांतर योजना लागू करने की वकालत की थी। उन्होंने लिखा, “भावांतर यह सुनिश्चित करता है कि वास्तविक किसानों को खरीद, भंडारण और पुनर्विक्रय से जुड़ी भारी लागत के बिना समय पर मुआवजा मिल सके।”
ऐसे में जब मध्य प्रदेश सरकार पहले ही कर्ज और घाटे का सामना कर रही हो उसे भी यह योजना वापस से लाना ज्यादा उचित लगा। सीहोर के किसान मोहित मोरन सरकार की इस घोषणा से खुश तो हैं मगर वह कहते हैं कि सरकार ने घोषणा में देरी कर दी है। वह कहते हैं कि छोटी जोत के कई किसान अपनी फसल बेच चुके हैं वहीं कई किसान अब इस आशंका में हैं कि उनको फसल रोकनी है कि बेचनी है। वह कहते हैं कि अब कब पंजीयन शुरू होगा और कब फसल का भावांतर खाते में आएगा यह सब थोड़ा पहले होता तो ज्यादा अच्छा होता।
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