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भोपाल की आदमपुर कचरा खंती वन्य प्राणियों को कर रही बीमार, प्रवासी पक्षियों ने बदला ठिकाना!

भोपाल की आदमपुर कचरा खंती वन्य प्राणियों को कर रही बीमार, प्रवासी पक्षियों ने बदला ठिकाना!
  • आदमपुर छावनी की कचरा खंती (लैंडफिल साईट) वन्य प्राणियों के लिए बनी मुसीबत का सबब! समर्धा सर्किल से वन्य प्राणी पलायन करने को मजबूर हैं।
  • यह खंती साल 2018 से पर्यावरण विभाग की अनुमति के बिना संचालित हो रही है, यहां रोज़ाना 900 मैट्रिक टन कचरा जमा होता है।
  • जंगल की दिशा में जब हवा चलती है तो इस कचरा खंती की बदबू 23.8 किलोमीटर दूर प्रेमपुरा गांव तक पहुंचती है। 6.5 किलोमीटर के दायरे में शहर भी बदबू से बदहाल है।

आदमपुर छावनी लैंडफिल साइट (कचरा खंती) में साल 2018 से भोपाल शहर का कचरा इकट्ठा किया जा रहा है। अप्रैल 2023 में नैशनल ग्रीन ट्राई्यूनल ने इस बात की पुष्टी की थी कि यह पर्यावरण विभाग की अनुमति के बिना अवैध और अनधिकृत तरीके से संचालित की जा रही है, साथ ही नगर निगम की ग्रीन रिसोर्स सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी पर्यावरणीय नियमों को ताक पर रखकर यहां कचरे का निष्पादन कर रही है।

aadampur landfill site bhopal

42 एकड़ में बनी इस खंती में न तो ऊंची दीवारें हैं और न ही कचरे को ढककर रखा गया है। महज तार फेंसिंग के सहारे हजारों मीट्रिक टन कचरे के बड़े-बड़े पहाड़ यहां खड़े कर दिए गए हैं। पुराना कचरा खत्म होना तो दूर नए कचरे के पहाड़ भी यहां बन रहे हैं। हर दिन 900 मीट्रिक टन कचरा यहा आ रहा है। यह कचरा खंती वन्य प्राणियों के लिए भी नुकसानदेह साबित हो रही हैं। हवा के प्रवाह के साथ बदबू (प्रदूषित हवा) 24 किलोमीटर के दायरे में फैल रही है। वन्य प्राणी इस प्रदूषित हवा का शिकार होकर कई बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। कई वन्य प्राणियों ने अपना विचरण क्षेत्र ही बदल दिया हैं। ग्रामीणों का कहना हैं कि यहां पर वन्य प्राणियों की तादाद उतनी नहीं बची है, जितनी साढ़े तीन साल पहले तक थी।

आवेश में आकर कर रहे एक-दूसरे पर हमला

ग्राउंड रिपोर्ट को समरधा वनपरिक्षेत्र के वनरक्षक अश्शवी राजपूत ने बताया कि

“खंती से बहुत परेशानी हो रही है, क्योंकि बदबू 13 किलोमीटर दूर रेस्ट हाउस तक आती है। इससे वन्य प्राणी आवेश में आकर दूसरे जानवरों पर हमले भी कर रहे हैं और कई जानवर प्रदूषित हवा से बीमार होकर मर रहे है। आए दिन जानवरों की मौत की सूचना मिल रही हैं।”

वे कहते है कि “खंती से करीब 3 से 4 किलोमीटर दूर घोड़ापछाड़ डैम पर वन्य प्राणी अपनी प्यास बुझाने के लिए जाते हैं, लेकिन खंती की वजह से क्षेत्र में कुत्तों की तादात बढ़ गई है और वो वन्य प्राणियों जैसे हिरण, चीतल, सांभर आदि पर हमला कर रहे हैं।”

आदमपुर कचरा खंती में साइंटिफिक जांच के बाद शुरू हुए सुधार कार्य नाकाफी

पर्यावरणविद सुभाष सी. पांडे्य के मुताबिक मध्यप्रदेश पर्यावरण विभाग ने कचरे का साइंटिफिक तरीके से निष्पादन न होना, बार-बार खंती में आग लगना, और आग लगने से निकलने वाली फ्यूरन डॉईऑक्सिन, कार्बन मोनोऑक्साइड व कार्बन डाईऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों से मानव और वन्यप्राणियों को होने वाले नुकसान को लेकर शिकायत की। फिर प्रमुख सचिव पर्यावरण विभाग, अनिरुद्ध मुखर्जी ने खंती की वैज्ञानिक तरीके से जांच कराई। अब सुधार कार्य किए जा रहे हैं, जो नाकाफी है। खंती से लगी 14 एकड़ जमीन पर करीब चार हजार पौधे भी लागाए गए हैं। इनमें नीम, आंवला, पीपल, जामुन, सतपर्णी, सेमल और अमरूद आदि की प्रजाति शामिल हैं।

Samardha Circle

जंगली सुअर की संख्या में इज़ाफा

प्रेमपुरा गांव आदमपुर छावनी से 23.8 किलोमीटर दूर है, यहां के किसान सोगमन के मुताबिक अब जंगल और खेतों में पहले कि तरह जानवर नहीं दिखाई दे रहे हैं, जबकि जंगली सुअर की संख्या बढ़ रही है। इसकी वजह बताते हुए रिटायर्ड वन अधिकारी आरके दीक्षित कहते हैं

“जंगली सुअर शिकार नहीं करते हैं, लेकिन वन्य प्राणियों का मांस खाना पसंद करते हैं। जंगली सुअर ज़ख्मी, बीमार, मरे हुए और बाघ-तेंदुए द्वारा छोड़े गए शिकार को खाते हैं।”

लैंडफिल लिचेट से फट रही मवेशियों की त्वचा

खंती के कचरे के पानी और हवा के संपर्क में आने से ज़हरीला और हानिकारक लिचेड (Leachate) निकल रहा है। लिचेड हानिकारक रसायन जैसे माइक्रो प्लास्टिक, लैड, आयरन, निकिल, कैडमियन, जिंक, मैग्नीश, मर्करी, आर्सेनिक, कोबाल्ट, फिनॉल और अनेकों कीटनाशकों का मिश्रण है, जो भूरे काले रंग का होता है। ये सभी रसायन कैंसर कारक हैं, जो मिट्टी में मिलकर सब्जी-फसल को ज़हरीला और भूजल या नदी-तालाबों के पानी में मिलकर उन्हें प्रदूषित कर देते हैं। पर्यावरण कार्यकर्ता राशिद नूर खान बताते हैं कि

“लिचेड आदमपुर और हरिपुरा गांव के हैंडपंपों और बोरवेल तक पहुंच गया है। यहां पानी भी पीने योग्य नहीं बचा है। उन्होंने कहा कि पानी के रिसाव को रोकने के लिए मुंबई से लाया गया लाइनर (प्लास्टिक शीट) भी नहीं बिछाया गया है।”

“हरिपुरा गांव के जीवन बताते हैं ‌कि पहले साइट के आसपास के खुले मैदान में ही मवेशियों को चराते थे, लेकिन अब गांव से दूर मवेशियों को चराते हैं । उन्होंने कहा कि

“पशु चिकित्सकों ने मवेशियों की त्वचा फटने की वजह दूषित पानी बताया है।”

वन्यप्राणी बदल रहे अपना ठिकाना, नहीं आ रहे प्रवासी पक्षी

आदमपुर कचरा खंती ने वन्यप्राणियों को पलायन करने पर मजबूर कर दिया है। समरधा क्षेत्र में अच्छी तादाद में पाए जाने वाले मोर, हिरण, चीतल और सांभर जैसे वन्य प्राणी अब रायसेन के जंगलों में विचरण पसंद कर रह हैं। साथ ही बदबू के कारण प्रवासी पक्षियों ने भी अपना ठिकाना बदल दिया है। वाईल्ड लाईफ वार्डन आसिफ हसन कहते हैं कि

“खंती के पास ही रामगढ़ पहाड़ी है, यहां करीब 50 एकड़ से अधिक क्षेत्र सघन वन है। रामगढ़ शक्तिपीठ और अजनाल नदी के कारण यहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते थे, लेकिन खंती की गंदगी और बदबू के कारण पिछले साल पक्षियों की संख्या घट गई और इस साल तो प्रवासी पक्षी आए ही नहीं। पहले अजनाल नदी का पानी इतना साफ होता था कि लोग इसे पिया करते थे, अब इसका रंग बदल गया है।”

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Author

  • Sanavver Shafi

    Based in Bhopal, this independent rural journalist traverses India, immersing himself in tribal and rural communities. His reporting spans the intersections of health, climate, agriculture, and gender in rural India, offering authentic perspectives on pressing issues affecting these often-overlooked regions.


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