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पर्यावरण आज: कैल्शियम कार्बाइड गन जिसने छीन ली 292 बच्चों की आंखों की रौशनी

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यह पॉडकास्ट एपिसोड (ग्राउंड रिपोर्ट का डेली मॉर्निंग पॉडकास्ट) पर्यावरण से जुड़ी महत्वपूर्ण खबरें प्रस्तुत करता है, जिसे चंद्र प्रताप तिवारी होस्ट कर रहे हैं। आज गुरुवार 23 अक्टूबर है।

हेडलाइंस

मध्य प्रदेश में बच्चों की आँखें प्रभावित: मध्य प्रदेश में कैल्शियम कार्बाइड गन के कारण 292 बच्चों की आँखें प्रभावित हुई हैं। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से कई बच्चों की आँखें 70% तक प्रभावित हो गई हैं।


वन वृद्धि में भारत का प्रदर्शन: हाल ही में आई ग्लोबल फॉरेस्ट असेसमेंट रिपोर्ट भारत के वनों को लेकर काफी सकारात्मक अवलोकन (पॉजिटिव ऑब्जरवेशन) पेश कर रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, वनों की वृद्धि के मामले में भारत दुनिया भर में तीसरे स्थान पर है। वहीं, बांस के वनों के मामले में भारत शीर्ष स्थान पर मौजूद है।


गंगा नदी का सूखना: गंगा नदी को लेकर एक चिंताजनक शोध (PAS का एक शोध) सामने आया है। इस शोध के अनुसार, हाल ही में गंगा नदी का सूखना पिछले 1300 वर्षों में सर्वाधिक है और यह अप्रत्याशित है।


आइसलैंड में मच्छर: आइसलैंड में रिकॉर्ड हीट के बाद, वहां मच्छर मिलने शुरू हो गए हैं, जो इससे पहले वहां कभी नहीं मिले थे।


विस्तार से चर्चा

पॉडकास्ट में एडिटर पल्लव जैन और सहयोगी अब्दुल वसीम अंसारी के साथ दो मुख्य मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई है: आइसलैंड में मच्छरों का मिलना और मध्य प्रदेश में कार्बाइड गन का प्रभाव।

1. आइसलैंड में ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव

आइसलैंड में मच्छरों का मिलना एक बड़ी घटना मानी जा रही है। अब वहां के लोग मच्छरों का सामना कर रहे हैं। एक कीट उत्साही (इंसेक्ट एंथूजियास्ट) बोर्न हियाल्टेसन ने कपड़े पर चिपके एक अजीब से कीड़े को देखा, जिसकी जांच के बाद पुष्टि हुई कि वह मच्छर है।

मच्छरों का मिलना दुर्लभ क्यों है? आइसलैंड अंटार्कटिका के अलावा दुनिया का दूसरा ऐसा स्थान है जहां मच्छर और इस तरह के कीड़े नहीं पाए जाते। इसका कारण वहां का काफी ठंडा तापमान है, जहां इन कीड़ों को प्रजनन का आधार (ब्रीडिंग ग्राउंड) नहीं मिल पाता। हालांकि, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के असर के कारण अब वहां के तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि हो रही है। मच्छर अब आइसलैंड और ग्रीनलैंड जैसी जगहों पर पहुंच चुके हैं, जिन्हें कभी मच्छरों से मुक्त क्षेत्र (मच्छरों से फ्री जोन) या जन्नत माना जाता था।

तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि: आइसलैंड में पिछले कई बार तापमान का रिकॉर्ड टूटा है। सामान्यतः तापमान बहुत दुर्लभ रूप से ही 20 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाता है। मई के महीने में यदि यह 20 डिग्री से ऊपर जाता भी है, तो यह केवल दो या तीन दिनों तक ही रहता है। लेकिन इस बार अधिकतम तापमान 10 दिनों तक 20 डिग्री से ऊपर रहा। एक समय ऐसा भी आया जब यह तापमान 26 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था।

इकोसिस्टम पर प्रभाव: इतने लंबे समय तक तापमान अधिकतम रहने से पूरा इकोसिस्टम प्रभावित होने लगता है। आइसलैंड और ग्रीनलैंड में बुनियादी ढांचा (इंफ्रास्ट्रक्चर) और विकासात्मक गतिविधियां (डेवलपमेंटल एक्टिविटीज) एक निश्चित तापमान में रहने के लिए बनी हैं। तापमान में बदलाव से सार्वजनिक बुनियादी ढांचे (पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर) और वहां रहने वाली कम्युनिटीज के अनुकूलन (अडॉप्ट) पर असर पड़ता है।

ग्रीनलैंड के ग्रामीण क्षेत्रों में चुनौतियां: ग्रीनलैंड के ग्रामीण क्षेत्रों में गर्मी की लहरों (हीट वेव्स) से निपटने में कम्युनिटीज को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, 2022 में अत्यधिक गर्मी या बारिश के कारण पर्माफ्रॉस्ट (permafrost) पिघल गया, जिससे बहुत सारे लोहे के सामान (आयरन के मटेरियल), जैसे घरों के लोहे, आर्कटिक झील में चले गए। इससे पानी की गुणवत्ता खराब होने और पर्यावरण पर असर पड़ने के कारण पैदा हुए। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता (सैनिटेशन) भी एक बड़ी समस्या है। लोग शौचालय बैग (टॉयलेट बैग्स) का उपयोग करते हैं और खुले में डंप करते हैं। जब हीट वेव बढ़ती है, तो उस जमा हुए कचरे में बैक्टीरिया बहुत तेजी से बढ़ते हैं, जिससे संक्रमण (इंफेक्शन) का खतरा बढ़ जाता है।

संक्षेप में, यूरोप, अफ्रीका या एशिया जिस तरह के मच्छरों, कीड़ों और बैक्टीरिया का सामना करते रहे हैं, वही अब ग्लोबल वार्मिंग के कारण आइसलैंड और ग्रीनलैंड में भी देखने को मिल रहा है।


2. मध्य प्रदेश में कैल्शियम कार्बाइड गन का खतरा

सहयोगी अब्दुल वसीम अंसारी ने मध्य प्रदेश में कैल्शियम कार्बाइड गन के कारण बच्चों की आँखों पर पड़े गंभीर प्रभाव की जानकारी दी।

मामले की गंभीरता: दैनिक भास्कर के भोपाल एडिशन में छपी खबर के अनुसार, ₹200 की यह सस्ती गन (जिसे देसी जुगाड़ या कार्बाइड गन/आँख दो गन भी कहते हैं) का उपयोग लोग सोशल मीडिया पर ‘रील’ बनाने के चक्कर में कर रहे थे। इस गन के कारण 292 लोगों की आँखों की रोशनी प्रभावित हुई है। अकेले भोपाल में 150 मामले सामने आए हैं। अन्य प्रभावित जिले विदिशा (50), सिहोर (28), ग्वालियर (19), रायसेन (3), शिवपुरी (10), दतिया (2), शिवपुर (3), उज्जैन (15), रतलाम और इंदौर (कुल 12) हैं। भोपाल के अस्पतालों में लगभग 124 मामले इतने गंभीर हैं जिन पर आँखों पर ज्यादा प्रभाव पड़ा है।

गन की संरचना और उपयोग: कार्बन गन प्लास्टिक पाइप और कैल्शियम कार्बाइड से बनाई जाती है। जब कैल्शियम कार्बाइड पानी के संपर्क में आता है, तो वह एसिटिलिन गैस पैदा करता है और धमाके की आवाज़ करता है। रिपोर्टों के अनुसार, यह गन पहले खेत में जानवर भगाने के लिए उपयोग की जाती थी, लेकिन अब त्योहारों में इसे गलत तरीके से और सस्ते में इस्तेमाल किया जा रहा है।

बिक्री पर प्रतिबंध के बावजूद मामले: मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सभी कलेक्टर्स को आगाह किया था कि वे इस कार्बाइड गन की बिक्री न होने दें। हालांकि, इस प्रतिबंध (बैन) के बावजूद भी मध्य प्रदेश के अलग-अलग जिलों में इसकी बिक्री हुई और यह गंभीर मामले सामने आए हैं।



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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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