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रैन बसेरे: बेघरों का सहारा मगर महिलाओं के लिए थोड़ी और जगह की दरकार

रैन बसेरे: बेघरों का सहारा मगर महिलाओं के लिए थोड़ी और जगह की दरकार
रैन बसेरे: बेघरों का सहारा मगर महिलाओं के लिए थोड़ी और जगह की दरकार

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12 जून 2025, भोपाल के हबीबगंज स्थित आईएसबीटी (Inter State Bus Terminal) में मध्य प्रदेश के अलग-अलग शहरों और देश के अलग-अलग राज्यों से आई कई बसें खड़ी हैं। यहां से मात्र 200 मीटर की दूरी पर एक दो मंजिला मुख्यमंत्री आश्रय स्थल बना हुआ है। यह नगर निगम द्वारा दीनदयाल अन्त्योदय योजना-शहरी आजीविका मिशन (DAY-NULM) के तहत संचालित रैन बसेरा है जहां शहरी क्षेत्रों में रहने वाले बेघर लोगों के लिए रुकने की व्यवस्था की जाती है। ठंड के दिनों में ऐसे लोगों के लिए यह रैन बसेरे एक सुरक्षित जगह माने जाते हैं जहां शीत लहर से बचकर सोने के लिए गद्दे-कंबल की व्यवस्था की जाती है।

20 पुरुषों और 10 महिलाओं के लिए बनाए गए आईएसबीटी स्थित रैन बसेरे का संचालन चन्द्र प्रकाश पाण्डेय करते हैं। यहां महिलाओं और पुरुषों के लिए दो अलग-अलग हॉल में लोहे के फ्रेम पर नीले रंग के गद्दे बिछे हुए हैं जिसे ठंडा रखने के लिए एक कूलर है।

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चंद्र प्रकाश पाण्डेय के लिए रैन बसेरे का संचालन काम नहीं बल्कि उनके निजी जीवन का हिस्सा हो गया है। फोटो – शिशिर अग्रवाल/ग्राउंड रिपोर्ट

पाण्डेय 2012 से इस रैन बसेरे का प्रबंधन संभाल रहे हैं। वह यहां दोपहर 2 बजे आते हैं और रात के 10 बजे तक रहते हैं। पाण्डेय बताते हैं कि इस रैन बसेरे में ज़्यादतर ऐसे लोग आते हैं जिन्हें कुछ घंटों में आईएसबीटी से लंबी दूरी की बस पकड़नी होती है। इसके अलावा दूसरी संख्या उन छात्रों की होती है जो किसी तरह की प्रतियोगी परीक्षा देने के लिए भोपाल आए हैं। जून की दोपहर में जब शहर में हीटवेव का अलर्ट जारी किया गया था तब यहां के 20 में से 12 बेड भरे हुए थे। हालांकि यहां उस दिन कोई भी महिला नहीं थी।

मौसम और रैन बसेरे

गर्मी के बाद मानसून में यहां रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ जाती है। सर्दियां शुरू होते ही यहां भीड़ अपने चरम पर होती है। दरअसल पाण्डेय यह सुनिश्चित करते हैं कि सर्दी के मौसम में किसी भी यात्री और बेघर व्यक्ति को खुले में न सोना पड़े। इसके लिए वह नगर निगम के अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर ऐसे लोगों को भी रैन बसेरे में लेकर आते हैं जो भोपाल में सड़कों के किनारे सोते हैं। हालांकि यह करते हुए उन्हें अक्सर परेशानी का सामना करना पड़ता है।

“फुटपाथ पर उनको कंबल मिल जाते हैं इस लालच में बहुत से लोग यहां नहीं आना चाहते।”

सर्दियों में जब रैन बसेरे में भीड़ बढ़ती है तो पाण्डेय अतिरिक्त गद्दों का प्रबंध करके ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को यहां आश्रय देने का प्रयास करते हैं। इस बात को लेकर कोई भी स्पष्टता नहीं है कि कोई भी व्यक्ति कितने दिनों तक रैन बसेरे में रह सकता है।  फिर भी बकौल पाण्डेय लोग अधिकाधिक 7 से 10 दिन तक ही यहां रुकते हैं। ठंड के दिनों में यह अवधि बढ़ जाती है। तब फुटपाथ पर सोने वाले बेघर लोग यहां 2 से 4 महीने तक रहते हैं। इस दौरान प्रशासन द्वारा भी रैन बसेरा छोड़ने के लिए दबाव नहीं बनाया जाता।

शीतलहर में खुले में सोना कितना खतरनाक हो सकता है इसे ऐसे समझिए कि 2001 से 2019 के बीच भारत में शीत लहर के चलते 4712 लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि 2019 से 2022 के बीच मौत का आंकड़ा 2910 है। भारत मौसम विभाग के अनुसार,

“पिछले 38 वर्षों (1980-2018) में से 23 वर्षों में, भारत में शीत लहरों के कारण होने वाली मौतों की संख्या, गर्म लहरों के कारण होने वाली मौतों से अधिक थी।”

यानि जलवायु परिवर्तन के दौर में जब शीत लहर और हीटवेव और भी भीषण होती जा रही हैं तब इन रैन बसेरों की ज़रूरत और बढ़ती जा रही है।

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संजय मई 2014 के बाद से जब भी भोपाल आते हैं इसी रेन बसेरे में रुकते हैं। फोटो – शिशिर अग्रवाल/ग्राउंड रिपोर्ट

विद्यार्थियों और मज़दूरों का सहारा 

मूल रूप से उत्तर प्रदेश के देवरिया के रहने वाले पाण्डेय के लिए यह रैन बसेरा उनके जीवन का एक अहम हिस्सा हो चुका है।  वह उत्साह के साथ बताते हैं,

“मुझे लोगों का सहयोग करने का मन होता है इसलिए मैं ये काम करता हूं। यहां आने वाले कुछ लोग तो ऐसे हैं जो दो से तीन बार आए और अब मेरा उनके साथ व्यक्तिगत संबंध बन गया है।”

छिंदवाड़ा के रहने वाले संजय इसका एक उदाहरण हैं।  मई 2014 में पहली बार भोपाल के इस रैन बसेरे में रहने के लिए आए थे। एक सरकारी यूनिवर्सिटी से बीएड कर रहे संजय के पास बहुत सीमित पैसे थे। ऐसे में 15 दिन तक भोपाल में किसी होटल में रूककर परीक्षा देना उनके लिए आर्थिक रूप से संभव नहीं था। आवास की चिंता के बीच उन्हें बस स्टैंड के पास यह रैन बसेरा दिखाई दिया। वह कहते हैं,

“यहां आकर पूछने पर पता चला कि मैं यहां बिना पैसे दिए रह सकता हूं। मुझे सोने के लिए केवल एक बिस्तर ही चाहिए था। इसलिए यहां रुकने पर मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई।”

यह सुविधा उन्हें इतनी अच्छी लगी कि अब वह जब भी भोपाल आते हैं तो इसी रैन बसेरे में रहते हैं। संजय के लिए इस रैन बसेरे की ज़रूरत सिर्फ कुछ दिनों के लिए होती है। मगर 2011 की जनगणना के अनुसार 1,46,435 लोग बेघर हैं। इनमें से 66,055 लोग शहरी क्षेत्र में रहने वाले लोग हैं।  मध्य प्रदेश में ऐसे लोगों के लिए दीनदयाल अन्त्योदय योजना, राष्ट्रिय शहरी आजीविका मिशन के अंतर्गत 121 आश्रय स्थल बनाए गए हैं।

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डीआईजी बंगला चौक स्थित रैन बसेरा, यहां आने वाले ज़्यादातर लोग श्रमिक वर्ग के होते हैं। फोटो – शिशिर अग्रवाल/ग्राउंड रिपोर्ट

आईएसबीटी स्थित रैन बसेरे से लगभग 10 किमी दूर शहर के दूसरे हिस्से में डीआईजी बंगला चौक में सड़क के बीचों बीच भोपाल मेट्रो का निर्माण कार्य चल रहा। महर्षि वाल्मीकि ज़ोन क्र 03 के अंतर्गत आने वाले इस इलाके के नगर पालिक निगम के कार्यालय के ठीक ऊपर एक अन्य रैन बसेरा है। आईएसबीटी के उलट यह रैन बसेरा दोपहर में खाली पड़ा हुआ है। रैन बसेरे के दोनों हॉलनुमा कमरों पर ताला लगा हुआ है। इसके बारे में पूछने पर यहां के एक कर्मचारी बिलाल कहते हैं,

“इस रैन बसेरे में ज़्यादातर मजदूर रहते हैं। वह दिन में काम पर चले जाते हैं और रात को आकर सो जाते हैं।”

राजगढ़, झाबुआ, अलीराजपुर जैसे आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रों से भोपाल आकर काम करने वाले श्रमिकों के लिए शहर में इन रैन बसेरों का होना एक बड़ी राहत है। इसे देखते हुए प्रदेश सरकार ने श्रम विभाग के माध्यम से 16 नए मॉडल रैन-बसेरों के निर्माण को मंजूरी दी है। इसके लिए प्रति मॉडल रैन-बसेरा 6.10 करोड़ रूपए के मान से 100 करोड़ रूपए कि राशि स्वीकृत की गई है। भोपाल, इंदौर, उज्जैन, बुरहानपुर, खंडवा, देवास, रतलाम, सागर, रीवा, सिंगरौली, सतना, जबलपुर, कटनी, छिंदवाड़ा, मुरैना और ग्वालियर में इन रैन बसेरों का निर्माण किया जाना है। प्रत्येक रैन बसेरे में 100-100 बेड की सुविधा होगी।

महिलाओं के लिए कितने अच्छे रैन बसेरे

भोपाल के यह सभी रैन बसेरे अच्छी हालत में हैं। इनमें गर्मी के लिए कूलर है और खाने के लिए दीनदयाल रसोई। आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के अनुसार, यह रैन बसेरे महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और विकलांग लोगों जैसे कमजोर वर्ग के लोगों के लिए बनाए गए हैं। ग्राउंड रिपोर्ट की पड़ताल में ज़्यादातर रैन बसेरों में बने पुरुषों के कमरे तो ठीक दिखे मगर महिलाओं के लिए यहां उतनी बेहतर सुविधा नहीं है।

इस कर्मचारी ने हमने बताया कि यहां 20 बेड हैं जिनमें से 13 पुरुषों के लिए और शेष महिलाओं के लिए हैं। मगर पुरुषों के उलट महिलाओं का कमरा उजाड़ दिखाई देता है। यहां कमरे के एक हिस्से में लाइन से 3 बेड लगे हुए हैं जबकि दूसरे हिस्से में स्टोर रूम की तरह सामान भरा हुआ है। हमें इसकी फोटो खींचते देखकर एक महिला कर्मचारी कहती हैं,

“यहां महिलाएं कभी-कभी ही आती हैं। 6 महीने पहले एक महिला आई थी कुछ घंटे के लिए। ज़्यादातर पुरुष ही आते हैं।”

women in night shelters of MP
पुरुषों के उलट महिलाओं के लिए बनाए गए कमरे उजाड़ पड़े हुए हैं, इनका एक हिस्सा स्टोररूम बन चुका है। फोटो – शिशिर अग्रवाल/ग्राउंड रिपोर्ट

फ़िलहाल इस रैन बसेरे में रह रहे सभी 10 लोग पुरुष ही हैं। यही हाल आईएसबीटी के रैन बसेरे का भी है। यहां महिलाओं के लिए बनाया गया हॉल उस दौरान बंद पड़ा है।

हालांकि सरकार द्वारा ख़ास तौर पर महिलाओं और परिवार के लिए भी शेल्टर बनवाने की योजना है। मगर मध्य प्रदेश में ख़ास तौर महिलाओं के लिए केवल 2 ही शेल्टर्स बनाए गए हैं। इनकी कुल कैपेसिटी 70 ही है।

डीआईजी बंगला चौराहे पर स्थित रैन बसेरा तो दूसरी मंज़िल पर स्थित है। यहां जाने के लिए सीढ़ियां हैं। ऐसे में विकलांग लोगों के लिए इस रैन बसेरे तक पहुंचना कठिन है। वहीं ऐसे बेघर लोग जिनके पास किसी भी तरह का प्रमाण पत्र नहीं है उनके लिए इनमें रुकना मुश्किल है। हालांकि हबीबगंज के रैन बसेरे में जब ऐसे लोग आते हैं तो इसके प्रभारी पाण्डेय इसकी सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को देते हैं। उनके द्वारा पुलिस और कलेक्टर के सहयोग से ऐसे लोगों को रैन बसेरे में रहने की अनुमति दिलवाई जा सकती है।

प्रदेश में अभी भी ज़्यादातर लोगों के लिए आसमान ही छत है। प्रदेश के सभी शेल्टर्स की क्षमता को मिला भी दें तो इन रेन बसेरों में 4187 लोगों को ही आश्रय दिया जा सकता है। यानि बेघर लोगों और आश्रय स्थल की क्षमता के बीच अभी भी बहुत बड़ा अंतर है। इस तरह के रैन बसेरे अगर सही तरीके से संचालित किए जाए तो समाज के हाशिए के तबके के लिए एक बड़ा सहारा बनते हैं। ऐसे में ज़रूरी है ऐसे और भी रैन बसेरों के निर्माण की ताकि सर्द रातों में लोगों को आसमान के नीचे रात न गुज़ारनी पड़े।

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  • Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.

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