खरीफ सीजन के अंत और रबी सीजन की बोवनी के बीच मध्य प्रदेश पराली जलाने के मामले में टॉप पर पहुंच गया है। कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस यानि क्रिम्स (CREAMS) के 22 नवंबर तक के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 11,925 पराली जलाने के मामले आए हैं। यह आंकड़ा पंजाब (5,076) से दोगुना है। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब मध्य प्रदेश ने पंजाब को पछाड़ा हो। बीते साल भी प्रदेश में देश के सबसे ज्यादा पराली जलाने के मामले (16,360) दर्ज किए गए थे।
इस साल देश के 10 ज़िले जहां सबसे ज्यादा पराली जली है, में से 7 ज़िले मध्य प्रदेश के हैं। यानि मध्य प्रदेश का इस साल का प्रदर्शन पिछले वर्ष से भी ख़राब रहा है।
भोपाल से 428 किमी दूर श्योपुर के जिलाधिकारी अर्पित वर्मा प्रदेश में पराली जलने के आंकड़ों को नियमित रूप से देख रहे हैं। सुबह 10 बजे से ही उनके लिए मीटिंग्स का दौर शुरू हो जाता है। ज़िले के तमाम प्रशासनिक कामों के बीच वह खुद बार-बार इस बात को दोहराते हैं कि खेतों में आग नहीं लगानी है/लगने देनी है।
वर्मा की चिंता जायज़ है। बीते साल की तरह इस बार भी श्योपुर में देश की सबसे ज्यादा (1,930) पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गई हैं। 2024 में देश में सबसे अधिक 2508 पराली जलाने के मामले श्योपुर में ही दर्ज किए गए थे।

इस साल की तैयारी
श्योपुर अपना पुराना रिकॉर्ड न दोहराए इसके लिए प्रशासन तीन महीने पहले से ही तैयारी में लगा हुआ था। ग्राउंड रिपोर्ट से नवंबर के पहले हफ्ते में बात करते हुए वर्मा ने बताया,
“हमने जिले में 118 अधिकारियों को ट्रेनिंग दी। अभी उनकी 388 गांवों में ड्यूटी लगाकर पराली प्रबंधन के लिए प्रचार-प्रसार और निगरानी की जा रही है।”
वर्मा कहते हैं कि सितंबर में अधिकारियों ने लगभग 95 गांवों में जाकर किसानों से उनकी समस्या सुनी और उनके समाधान खोजने के लिए शोध शुरू किया। वर्मा ने बताया कि पराली जलाने के पुराने आंकड़ों का विश्लेषण करके ज़िले में हाईरिस्क, मोडरेट और लो फ़ार्म फायर की श्रेणियां बनाई गईं। इनमें क्रमशः 10, 81 और 165 गांव को शामिल किया गया। हाईरिस्क से लो रिस्क श्रेणी के आधार पर प्राथमिकता निर्धारित करके जागरूकता अभियान शुरू किया गया। जिलाधिकारी कार्यालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार अब तक 6555 से अधिक किसानों को जागरूकता शिविर के माध्यम से पराली न जलाने के लिए प्रेरित किया गया है।

सुपर सीडर कितना कारगर?
जिलाधिकारी ऑफिस के प्रांगण में घुसते ही सुपर सीडर के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए एक बड़ा सा होर्डिंग लगा हुआ है। इस होर्डिंग्स में सुपर सीडर के फायदे, उसकी अनुमानित कीमत और कार्यक्षमता का ज़िक्र किया गया है। सुपर सीडर ट्रैक्टर के साथ अटैच किया जाने वाला एक यंत्र है जो फसल के बचे हुए हिस्से को काटकर मिट्टी में मिला देता है, जिससे मिट्टी की बनावट बेहतर होती है और पराली जलाने की ज़रूरत कम हो जाती है।
श्योपुर के ज़िला प्रशासन द्वारा सब मिशन ऑन एग्रीकल्चर मैकेनाईजेशन (SWAM) के तहत किसानों को ऐसे कृषि यंत्र लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है जिससे पराली प्रबंधन किया जा सकता है। पीएम- राष्ट्रिय कृषि विकास योजना के तहत संचालित इस मिशन की गाइडलाइन के अनुसार कृषि यंत्रों के लिए एससी, एसटी, सीमान्त और महिला किसानों को 50% जबकि सामान्य वर्ग से आने वाले किसानों को 40% सब्सिडी दी जाती है। हालांकि यंत्र के प्रकार और क्षमता के अनुसार दी जाने वाली अधिकतम सब्सिडी कीमत भी अलग-अलग हैं।
इस साल श्योपुर को ख़ास तौर पर पराली प्रबंधन के लिए किसानों को सब्सिडी पर 61 सुपर सीडर, 06 स्मार्ट सीडर और 37 हैप्पी सीडर दिलवाने का लक्ष्य जिला प्रशासन को प्राप्त हुआ था। मगर इन 104 कृषि यंत्रों का लक्ष्य पूरा करना ज़िले के लिए एक कठिन काम था।
श्योपुर कृषि उप संचालक कार्यालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 2022 से 2024 तक कुल मिलाकर 24 सुपर सीडर ही किसानों ने खरीदे थे। मगर 04 नवंबर 2025 तक के आंकड़ों के अनुसार इस साल पराली प्रबंधन से सम्बंधित 8 यंत्रों के लिए कुल 426 आवेदन आए हैं। इनमें से 178 आवेदन सुपर सीडर के लिए हैं। वहीं कुल 135 कृषि यंत्र किसानों को मिल भी चुके हैं जिनमें 88 सुपर सीडर शामिल हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र, बड़ौदा (श्योपुर) के चीफ साइंटिस्ट लखन सिंह गुर्जर इसके फायदे बताते हुए कहते हैं कि सुपर सीडर से बोवाई करने पर धान की नमी का उपयोग किया जा सकता है। वह बताते हैं कि पराली जलाने के बाद खेत को तैयार करने में 10 दिन का समय जाता है। सुपर सीडर का उपयोग करके कम से कम 15 दिन पहले बोवाई की जा सकती है। इस तरह बिना पराली जलाए जल्दी बोवनी की जा सकती है।

फिर श्योपुर टॉप पर क्यों है?
श्योपुर के गोटा गांव के लक्ष्मण मीणा 40 बीघा में धान की खेती करते हैं। उन्होंने इसी साल सुपर सीडर खरीदा है फिर भी वो अपने खेत में आग लगाते हैं। इसका कारण पूछने पर वह कहते हैं, “मेरे खेत में काली मिट्टी है उसमें सुपर सीडर चलता ही नहीं है।”
श्योपुर मंडी में कई और किसान सुपर सीडर को लेकर इसी बात को दोहराते हैं। लक्ष्मण मीणा ने कुल 2.5 लाख रूपए में सुपर सीडर खरीदा है। इसमें से 1.30 लाख रूपए उन्होंने अपनी जेब से दिए हैं वहीं 1.20 लाख रूपए उन्हें सब्सिडी के रूप में मिले हैं। श्योपुर मंडी में अपनी फसल बेचने आए चांदीपुरा के नारायण गुर्जर केवल 6 बीघा में खेती करते हैं। वह बताते हैं कि उनके खेत में नीचे की ज़मीन पथरीली है जिस पर यह यंत्र काम नहीं करता। हालांकि उन्होंने अब तक इसे आज़मा कर नहीं देखा है। वह कहते हैं,
“मुझे धान की फसल के लिए 1800 प्रति क्विंटल का भाव मिला है। इसमें लागत के बाद मुनाफा निकालना मुश्किल है मैं सीडर कहां से खरीदूंगा?”
गुर्जर इस यंत्र के फायदों के साथ सीमाएं भी बताते हैं। वह कहते हैं कि इस यंत्र के लिए कम से कम 60 हॉर्सपॉवर का ट्रैक्टर होना चाहिए। मगर छोटे और सीमान्त किसानों के लिए इसके लिए अलग से ट्रैक्टर खरीदना एक महंगा सौदा है। कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा भी पराली प्रबंधन के लिए इन यंत्रों को बहुत कारगर नहीं मानते। वह कहते हैं,
“सरकार इन यंत्रों पर सब्सिडी तो दे रही है मगर पहले जो मशीन 50,000 की आती थी अब वह 1.5 लाख से ज़्यादा की आती है।”
श्योपुर के रन्नौद के किसान धर्मेन्द्र रावत कहते हैं, “सीडर का इस्तेमाल केवल कटाई के समय पर 3 हफ्ते के लिए होगा इतने से समय के लिए कोई भी किसान इतना खर्च क्यों करेगा?” शर्मा भी रावत के इस तर्क से सहमत हैं।
गौरतलब है कि अभी किसानों द्वारा बोवाई के लिए सीड ड्रिल मशीन का उपयोग किया जाता है। इसकी अनुमानित कीमत 50,000 रु से लेकर 70,000 रु तक होती है। जबकि हैप्पी सीडर की कीमत 2 लाख रूपए से अधिक है।
फिर अन्य विकल्प क्या हैं?
शर्मा सरकार को यंत्रों पर सब्सिडी देने के बजाए पराली पर प्रति एकड़ 2000 रूपए देने की बात कहते हैं। वहीं नेशनल सेंटर फॉर ह्यूमन सेटेलमेंट एंड एनवायरनमेंट (NCHSE) के डायरेक्टर जनरल डॉ। प्रदीप नंदी कहते हैं कि अगर सरकार यह चाहती है कि पराली न जले तो उसके लिए पराली को वैल्यू देना पड़ेगा। वह कहते हैं,
“सरकार को ऐसे उद्योगों से संपर्क करना पड़ेगा जो इस पराली का उपयोग करके कोई उत्पाद बनाते हैं। इसकी खरीदी गांव के पास ही हो सके ताकि किसानों को दूर-दूर जाकर लम्बी लाइन में न लगना पड़े।”
इसी साल अप्रैल में प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने यह घोषणा की थी कि अगर कोई भी किसान पराली जलाता है तो उसे किसान सम्मान निधि और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी से वंचित कर दिया जाएगा। इसके बाद भोपाल और इंदौर सहित कई जगहों में किसानों पर जुर्माना भी लगाया गया। 19 अप्रैल को प्रकाशित एक खबर के अनुसार कम से कम 50 एफआईआर दर्ज की गईं। लेकिन 22 नवंबर को प्रकाशित एक खबर के अनुसार इस सीजन में अब तक एफ़आईआर दर्ज नहीं की गई हैं।
शर्मा किसानों पर एक तरह कार्रवाई करने का विरोध करते हैं। वह कहते हैं, “अगर प्रदूषण के लिए एफ़आईआर करनी है तो शहर में जिन लोगों के पास एक से अधिक गाड़ियां हैं उन पर यह कार्रवाई क्यों नहीं होती?”

हालांकि श्योपुर कलेक्टर ने हमें बताया कि प्रशासन द्वारा किसानों पर शख्त कार्रवाई करने के बजाए समझाइश ही दी जा रही है। पराली खरीदने की बात पर वर्मा कहते हैं,
“हमने ऐसे उद्योगों से संपर्क किया जो सरसों, या गेहूं के फसल अवशेष से पैलेट और ब्रिकेट बनाने का काम करते हैं। हमने किसानों को यह भी कहा कि अगर वो अपना खेत खाली नहीं करना चाहते हैं तो प्रशासन को थोड़ा समय दें और जो उद्यमी खुद अपने खर्च पर खेत से पराली को काटकर ले जाना चाहते हैं उनको अपने खेतों में जाने दें।”
यानि ऊपर शर्मा और डॉ नंदी जो उपाए सुझा रहे हैं लगभग वैसे हल यहां ज़िला प्रशासन अपना रहा है। फिर भी यह तरीके काम क्यों नहीं कर रहे? जसवंत सिंह मीणा किसान कांग्रेस, श्योपुर के ज़िला अध्यक्ष हैं। वह इस सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं, “सरकार या प्रशासन जो भी उपाए ला रहा है किसान न तो उनसे परिचित हैं ना ही इस बारे में उनसे बात की गई है। इसलिए यह उपाए कागजों में तो अच्छे लगते हैं मगर धरातल पर इसका परिणाम नहीं दिखता।”
हालांकि श्योपुर के अलग-अलग गांवों और कृषि उपज मंडी में जब हम प्रशासन द्वारा पराली प्रबंधन के लिए किए जा रहे कार्यों के बारे में किसानों से पूछते हैं तो ज़्यादातर किसान इसके बारे में जागरूक नहीं नज़र आते है। कुछ किसान यह जानते हैं कि सुपर सीडर के लिए सरकार द्वारा सब्सिडी दी जा रही है। मगर उद्योगों को पराली देने या फिर किसी के द्वारा खुद बेलिंग करके पराली ले जाने जैसी बातों से किसान पूरी तरह अनजान हैं। शायद यही कारण है कि ज़िले में सुपर सीडर खरीदने वाले किसानों की संख्या तो बढ़ी है मगर यह उपलब्धी भी श्योपुर को फिर से पराली जलाने के मामले में नंबर वन बनने से नहीं रोक सकी।
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