...
Skip to content

नर्मदा किनारे बसे इमलिया गांव में आदिवासी बरसात में भी नाले का पानी पीने को मजबूर

REPORTED BY

mandla water crisis
सर पर पानी रख कर जाती हुई इमलिया की लड़कियां

मंडला जिले के बिछिया जनपद में आने वाला आदिवासी बाहुल्य गांव इमलिया साफ़ पेयजल की समस्या का सामना कर रहा है। सुबह होते ही यहां की महिलाएं खाली मटके लेकर नाले की ओर बढ़ जाती हैं। इस गांव में दो साल पहले पाइपलाइन बिछाई गई थी और घर-घर नल से पानी पहुंचाने का वादा किया गया था। आज उन नलों पर धूल और जंग की परत है, गांव वालों तक पानी नहीं पहुंच रहा है। 

mandla water crisis
नाले से पानी भरतीं इमलिया की महिलाऐं

अधूरी पाइपलाइन और निष्क्रिय कनेक्शन

नर्मदा नदी किनारे बसे इमलिया माल गांव में तकरीबन 986 लोग रहते हैं। यहां के लोग बरसात के दिनों में छिवला टोला के पास नाले पर बनी पुलिया से बहते पानी पर निर्भर हैं। इमलिया की महिलाएं यहीं से गंदा पानी छानकर घर ले जाती हैं। इन्हीं महिलाओं में अपनी पुरानी बाल्टी लेकर नाले के किनारे खड़ी, 35 वर्षीय ज्योति चंद्रोल भी शामिल हैं। यहां का पानी भूरे रंग का और कीचड़ से भरा हुआ था। आसपास मच्छरों का झुंड मंडरा रहा था और दुर्गंध हवा में तैर रही थी। 

mandla water crisis
दूषित जल भरती हुई इमलिया की एक महिला

ज्योति ने बताया, “यही हमारी जिंदगी है, क्योंकि गांव में पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। दो साल पहले पाइप तो बिछाए गए, लेकिन आज तक एक बूंद पानी नसीब नहीं हुआ। दूषित पानी से मेरे दो बच्चे बीमार भी हो चुके हैं।”

उनके पास खड़ी प्रेमवती बाई ने कहा, “मजबूरी में हमें गंदा पानी पीना पड़ रहा है। घर के बाहर लगे नल जंग खा रहे हैं। साफ पानी की उम्मीद छोड़ दी है। जनसुनवाई से लेकर सीएम हेल्पलाइन तक कई बार शिकायत कर चुके हैं, लेकिन हालात जस के तस हैं।”

आंकड़ों से अलग देश के गांवों की हकीकत 

भारत सरकार के आंकड़े गर्व से कहते हैं कि 19.36 करोड़ ग्रामीण परिवारों में करीब 15 करोड़ (लगभग 80 प्रतिशत) को नल-जल का कनेक्‍शन मिल चुका है। मगर इन चमत्कारी आंकड़ों में इमलिया जैसे गांवों की स्थिति छिप जाती है। इमलिया में अब भी कई कनेक्‍शन निष्क्रिय हैं, पानी की आपूर्ति अनियमित है और रखरखाव की कमियां इन आंकड़ों की हकीकत बताने के लिए काफी है। 

कुछ ऐसी ही स्थिति मध्‍य प्रदेश में भी बनी हुई है। राज्‍य में 111.77 लाख ग्रामीण परिवारों में से 77 लाख (69 प्रतिशत) तक नल-जल की पहुंच कागजों और आंकड़ों में दिखाई देती है। वहीं मंडला जिले के 9 ब्लॉक की 490 पंचायतों में 1211 गांव शामिल हैं। इनमें 2,37,918 परिवार रहते हैं। नल-जल योजना के तहत 1,65,686 यानी लगभग 70 प्रतिशत घरों तक नल से पानी पहुंचाने का दावा किया जाता है। लेकिन जमीनी हकीकत इसके विपरीत है। 

मंडला जिले की “Functionality Assessment” रिपोर्ट बताती हैं कि हर घर जल की कार्यशीलता आदिवासी इलाकों में काफी सीमित है, जहां भूजल स्रोत अस्थिर हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि जिले 1211 ग्रामों में से केवल 35 गांव (करीब 3 प्रतिशत) ही ऐसे हैं, जिन्हें वास्‍तविक रूप से हर-घर-जल का दर्जा मिला है। शेष ग्रामों में नल कनेक्शन मौजूद होने के बावजूद जल आपूर्ति की स्थिति अविश्वसनीय है। 

mandla water crisis
नल जल योजना के बंद पड़े नल के साथ खड़ी इमलिया की ग्रामीण

कहीं पानी रोजाना नहीं आता, तो कहीं दबाव और मात्रा इतनी कम है कि दैनिक ज़रूरतें भी पूरी नहीं हो पातीं। कई गांवों में घर-घर कनेक्‍शन होने बावजूद रोजाना पानी न मिलने की शिकायतें आम है। कई रिपोर्ट्स में भी यह बात उभर कर आई है कि कवरेज के दावों के बावजूद कार्यशीलता की कमी से ग्रामीणों को बुनियादी परेशानी झेलनी पड़ रही है। 

वहीं अगर इमलिया की जाए तो जेजेएम डैशबोर्ड के अनुसार यहां की कुल 982 आबादी है। गांव के 218 घरों में से 186 (85.32 प्रतिशत) घरों को नल से साफ पानी पहुंचाया जा रहा है। वहीं बचे 32 घरों को नल-जल कनेक्‍शन देना का काम प्रस्‍तावित है। डैशबोर्ड के अनुसार इन 186 घरों में साफ पानी की सप्‍लाई  दो बोरवेल की जाती है। हालांकि जमीनी स्थिति इन आंकड़ों के विपरीत नजर आती है। ग्रामीणों का कहना है कि नल कनेक्‍शन तो दो साल पहले ही दिए जा चुके है, लेकिन आज तक नल से पानी की एक बूंद भी नहीं आई है। पहले बिजली कनेक्‍शन नहीं था, अब वॉटर टैंक नहीं होने का हवाला दिया जा रहा है।

दूषित जल बन रहा बीमारियों की जड़ 

दूषित जल का ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव आंकड़ों में स्पष्ट दीखता है। ग्रामीण इलाकों में जलजनित बीमारियों की दर 36 प्रतिशत तक है। इनमें से डायरिया, टाइफाइड और जोड़ों का दर्द जैसी बीमारियां प्रमुख हैं। 

जुलाई 2024 में मंडला जिले के आदिवासी गांवों में जलजनित बीमारी का बड़ा प्रकोप हुआ था। सात लोगों की मौत हुई और 150 लोग बीमार पड़े थे। इस साल भी मानसून के दौरान मंडला सहित तीन जिलों में कुल 17 मौतें दर्ज हुईं, जिनमें छह मौतें मंडला में हुईं हैं। सितंबर में सिमरिया गांव में एक ही परिवार के चार सदस्यों की डायरिया से मौत की खबर भी आई है।

इमलिया ग्राम पंचायत के उपसरपंच बलराम यादव ने बताया, “गांव में दर्जनों बच्चे और बुजुर्ग दूषित पानी से बीमार हुए हैं। स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों में दस्त के मामलों में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। प्रशासन को कई बार शिकायत की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई।” प्रेमवती बाई का कहना है कि बच्चों को पेट दर्द और दांतों की समस्या हो रही है, और स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचना भी मुश्किल है क्योंकि गांव की सड़क कीचड़ से लबालब है।

mandla water protest
साफ़ पानी के लिए प्रदर्शन करते इमलिया के ग्रामीण

बलराम आगे कहते हैं,

सालों से ग्रामीणाों और बच्‍चों को साफ पानी नहीं मिल पा रहा है। मजबूरी में कुएं और नाली का गंदा पानी पानी पड़ता है। प्रशासन हमारी कोई सुनवाई नहीं कर रहा, अनेकों बार आवेदन, निवेदन और शिकायतें कर चुके हैं। लेकिन इस ओर किसी का ध्‍यान नहीं है।

प्रेमवती बाई, जो अपने पोते को स्‍कूल भेजली हैं, कहती हैं, ” बच्‍चों काे पेट दर्द होता है, दांत पीले पड़ रहे है। स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों तक पहुंचना भी मुश्किल है, क्‍योंकि गांव की मुख्‍य सड़क कीचड़ से लबालब हैं।”

हालांकि राज्‍य सरकार ने ट्रैकिंग और शिकायत निवारण के लिए कदम उठाए है। सरकार ने हाल में ही ‘जल दर्पण’ और राज्य स्तरीय शिकायत निवारण कॉल सेंटर की शुरुआत की है। इसका उद्देश्य पारदर्शिता और सेवा में सुधार बताया गया है। लेकिन ये सभी सुविधाएं इमलिया जैसे गांवों में रहने वाले आदिवासियों की पहुंच से काफी दूर हैं।

बार-बार आश्वासन, समाधान नहीं

ग्रामीण कई बार जिला प्रशासन तक गुहार लगा चुके हैं। जून 2025 में यहां की महिलाएं विरोध करने के लिए खाली मटके लेकर कलेक्टरेट पहुंचीं थीं। पीएचई विभाग के एसडीओ ने ट्यूबवेल मरम्मत और पानी की टंकी बनाने का आश्वासन भी दिया था। लेकिन तीन महीने बाद भी कोई बदलाव नहीं हुआ है। 

 सितंबर में फिर आवेदन दिया गया, जिसके बाद अधिकारियों ने गांव का दौरा किया। जांच में सामने आया कि दो ट्यूबवेल और एक कुआं है, लेकिन एक ट्यूबवेल की मोटर खराब है। फिलहाल डायरेक्ट ट्यूबवेल से सप्लाई शुरू करने की योजना है। अधिकारी कहते हैं कि बारिश खत्म होने के बाद वॉटर टैंक निर्माण होगा, ग्रामीणों का धैर्य जवाब देता जा रहा है।

गांव के पूर्व उपसरपंच रियाज अली ने कहा, “दो साल से यही आश्वासन सुन रहे हैं। अब तो उम्मीद भी टूट रही है कि हमें कभी साफ पानी मिलेगा।”

इमलिया ग्राम पंचायत में आने वाले तीनों गांव इमलिया माल, इमलिया रायत और डूंगरिया में कुल 1263 मतदाता हैं। बीते लोकसभा चुनाव 2024 में ग्रामीणों ने चुनाव का बहिष्कार कर अपनी समस्याओं पर ध्यान खींचने की कोशिश की थी, लेकिन स्थायी समाधान अब तक नहीं मिला है।

इमलिया की यह कहानी बताती है कि सरकारी आंकड़े और ग्रामीण जीवन की हकीकत में कितना अंतर है। कागजों पर कवरेज के दावे बड़े-बड़े हैं, मगर जमीनी स्थिति “नल है पर जल नहीं” जैसी बनी हुई है। सवाल यही है कि प्रशासन कब इस स्थिति को बदलेगा और कब ग्रामीणों को वास्तव में अपने मटकों में साफ पानी मिलेगा।

भारत में स्वतंत्र पर्यावरण पत्रकारिता को जारी रखने के लिए ग्राउंड रिपोर्ट को आर्थिक सहयोग करें।

यह भी पढ़ें

दस वर्षों से मूंडला बांध बंजर बना रहा किसानों के खेत, न मुआवज़ा, न सुनवाई

बरगी बांध: “सरकार के पास प्लांट के लिए पानी है किसानों के लिए नहीं”


ग्राउंड रिपोर्ट में हम कवर करते हैं पर्यावरण से जुड़े ऐसे मुद्दों को जो आम तौर पर नज़रअंदाज़ कर दिए जाते हैं।

पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुकट्विटर,और इंस्टाग्राम पर फॉलो करें। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें। रियल-टाइम अपडेट के लिए हमारी वॉट्सएप कम्युनिटी से जुड़ें; यूट्यूब  पर हमारी वीडियो रिपोर्ट देखें।


आपका समर्थन अनदेखी की गई आवाज़ों को बुलंद करता है– इस आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए आपका धन्यवाद।

Author

  • Based in Bhopal, this independent rural journalist traverses India, immersing himself in tribal and rural communities. His reporting spans the intersections of health, climate, agriculture, and gender in rural India, offering authentic perspectives on pressing issues affecting these often-overlooked regions.

    View all posts

Support Ground Report

We invite you to join a community of our paying supporters who care for independent environmental journalism.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins

LATEST