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सोशल मीडिया के शिकार, दिखावे के चलते जान गंवाते स्नेक कैचर

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लक्ष्मीनारायण मेवाड़े की तरह ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से लोग बिना किसी ट्रेनिंग के सांप पकड़ने का काम करते हैं।

इंदौर की फर्स्ट बटालियन में पदस्थ 47 साल के आरक्षक संतोष चौधरी की शनिवार, 20 सितंबर को मौत हो गई। दरअसल चौधरी को शनिवार की दोपहर में उनके अधिकारियों ने फोन पे बताया कि बटालियन के अस्तबल में एक सांप मौजूद है। वह पहले भी सांप पकड़ने का काम कर चुके थे। सूचना मिलते ही वह अस्तबल में पहुंचे जहां एक खिड़की में सांप छिपा हुआ था। आत्मविश्वास में उन्होंने सीधे हाथ से ही सांप पकड़ लिया। इसी दौरान सांप ने उनकी उंगली जकड़ ली। 

चौधरी ने अपना हाथ झटक कर सांप के मुंह से उंगली निकालने की कोशिश की। जब उससे भी बात नहीं बनी तो उन्होंने मुंह से ही सांप को उंगली से निकाला। यह सब कुछ उनके साथी कैमरे में रिकॉर्ड कर रहे थे। जिस कमरे की खिड़की से उन्होंने सांप पकड़ा था वह वहां से बाहर निकलकर खुले में सांप के साथ कैमरे के सामने पोज़ देने लगे। मगर कुछ ही समय बाद उन्हें घबराहट महसूस हुई। वह सांप को पकड़े हुए ही भागे और लड़खड़ा कर गिर गए। उन्हें इंदौर के एमवाय अस्पताल पहुंचाया गया मगर उनको बचाया नहीं जा सका। 

इस घटना में सांप को लापरवाही से पकड़ने और उसके बाद वीडियो बनाने की बात प्रमुख है। यह इस तरह की पहली घटना नहीं है जब सांप पकड़ने वालों (snake catcher) के वीडियों बनवाने के जूनून के चलते उनकी जान गई हो। 

चौधरी की तरह ही गुना जिला के राघोगढ़ के दीपक महावर (42) भी अपने क्षेत्र में सांप पकड़ने के लिए जाने जाते हैं। 14 जुलाई को उन्हें राघोगढ़ से 27 किमी दूर बरबटपुरा गांव में सांप पकड़ने के लिए बुलाया गया। उन्होंने सांप पकड़ा तभी उन्हें सूचना मिली के उनके बेटे के स्कूल की छुट्टी हो गई है। वह गले में ही कोबरा लटकाकर स्कूल पहुंच गए। यहां कुछ लोगों ने जब उनको ऐसे देखा तो वह फोन निकालकर वीडियो बनाने लगे। वीडियो में वह कैमरे में देखते हुए गले में लटके कोबरा के सामने चुटकी बजाते हुए दिखाई देते हैं। 

रील बनाने के बाद जब महावर अपने बेटे को लेकर लौट रहे थे तभी सांप ने उनके हाथ में काट लिया। अपने एक साथी की मदद से वह अस्पताल पहुंचे। यहां ट्रीटमेंट के बाद वह ठीक महसूस करने लगे और डिस्चार्ज होकर घर आ गए। मगर आधी रात में उनकी तबियत फिर बिगड़ी और अस्पताल पहुंचने पर उनको मृत घोषित कर दिया गया। 

दिनेश गुर्जर अधिकारीयों के बंगले, सरकारी दफ्तर और आम लोगों के घर से बिना किसी ट्रेनिंग के सांप पकड़ते हैं। फोटो: अब्दुल वसीम अंसारी

भारत में सर्प दंश 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार भारत में साल भर में सांप काटने के लगभग 1 मिलियन केस आते हैं, इनमें 58000 मौत होती हैं। इसके अलावा, लगभग चार गुना से भी ज़्यादा लोग सांप के काटने से गंभीर विकलांगता का शिकार होते हैं। कुल मिलाकर, दुनिया भर में हर साल सांप के काटने से 81,000 से 1,38,000 लोगों की मौत होती है—जिनमें से लगभग आधी मौतें भारत में होती हैं।

भारत सरकार द्वारा सर्प दंश को कम करने के लिए बनाए गए एक्शन प्लान के अनुसार देश में, हर साल लगभग 3 से 4 मिलियन सर्पदंश से लगभग 50,000 मौतें होती हैं। विभिन्न देशों में सर्पदंश पीड़ितों का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही क्लीनिकों और अस्पतालों में रिपोर्ट करता है और सर्पदंश की वास्तविक संख्या बहुत कम दर्ज की जाती है। केंद्रीय स्वास्थ्य जांच ब्यूरो (सीबीएचआई) की रिपोर्ट (2016-2020) के अनुसार, भारत में सर्पदंश के मामलों की औसत संख्या लगभग 3 लाख है और लगभग 2000 मौतें सर्पदंश के कारण होती हैं।

एक अध्ययन से पता चलता है कि मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और ओडिशा में सर्पदंश के मामले और मौतें सबसे अधिक हैं। 2020 से 2022 तक के आंकड़ों पर हुए एक अध्ययन के अनुसार मध्य प्रदेश में इन तीन सालों में सर्प दंश के 5779 मामले दर्ज किए गए। हालांकि सरकार द्वारा केंद्र और राज्य स्तर पर सांप पकड़ने वालों की मौत का आंकड़ा अलग से नहीं रखा जाता। 

राजगढ़ के लक्ष्मीनारायण मेवाड़े को 2 बार सांप डस चुका है फिर भी वह बिना प्रशिक्षण के यह काम कर रहे हैं। फ़ोटो: अब्दुल वसीम अंसारी

बिना किसी प्रशिक्षण के हो रहा संरक्षण

ऐसे में सांपों को लेकर फैली भ्रांतियों और डर के चलते या तो लोग सांप मार देते हैं या फिर उन्हें पकड़ने के लिए किसी सर्प मित्र (snake catcher) को बुलाते हैं। राजगढ़ महिला थाने में प्रधान आरक्षक के पद पर पदस्थ दिनेश गुर्जर का बचपन कच्चे मकान में बीता। यहां उन्होंने सांप पकड़ने वालों को भी देखा। गुर्जर बताते हैं कि बाद में एक धार्मिक गुरु वेणी प्रसाद से दीक्षा मंत्र लेने के बाद उन्होंने 1984 में सांप पकड़ने का काम शुरू किया। 

अपनी नौकरी में कई जगहों पर पदस्थ रहते हुए वह अधिकारियों के बंगले, सरकारी दफ्तरों और आम लोगों के घर से भी सांप पकड़ने का काम मुफ्त में करते हैं। इसके लिए उन्हें स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर सम्मानित भी किया गया। मगर गुर्जर ने इसकी कभी कोई ट्रेनिंग नहीं ली। वह सांप पकड़ने के लिए प्रोफेशनल स्टिक की जगह लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं। 

गुर्जर की तरह नरसिंहगढ़ वन क्षेत्र में वन विभाग में अस्थाई तौर पर ड्राइवर के रूप में पदस्थ रामबाबू भंडारी भी सांप पकड़ने का काम करते हैं। ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए भंडारी कहते हैं, “बीते 6 सालों से सांप पकड़ने का काम कर रहा हूं ताकि लोग उन्हें मारे नहीं।” हालांकि भंडारी ने सांप पकड़ने की कोई भी ट्रेनिंग नहीं ली है। उन्होंने यह काम शौखिया तौर पर यूट्यूब से देखकर सीखा है। मगर उन्हें वन विभाग ने एक स्टिक उपलब्ध करवाई है। वह कहते हैं,

“मैं इस स्टिक से पूरी सुरक्षा के साथ सांप पकड़कर उन्हें जंगल में छोड़ देता हूं। अब तक लगभग 1500 जहरीले जीवों को पकड़ चुका हूं मगर मुझे अब तक किसी ने भी नहीं काटा।”

स्टंट दिखाते हुए गोविन्द वर्मा को सांप ने डस लिया जिसके बाद उन्हें 30 एएसवी इंजेक्शन लगे। फ़ोटो: अब्दुल वसीम अंसारी

मगर ब्यावरा के रहने वाले गोविन्द वर्मा (28) की कहानी इतनी सीधी नहीं है। वर्मा 6 साल से सांप पकड़ने का काम कर रहे हैं। वर्मा इसी साल अगस्त माह में चमारी गांव में सांप पकड़ रहे थे। सफलतापूर्वक सांप पकड़ लेने के बाद लोगों ने उन्हें करतब दिखाने के लिए कहा। वह ऐसा कर रहे थे तभी सांप ने उनकी बाजू में डस लिया। उन्हें गंभीर हालत में ब्यावरा के सिविल अस्पताल में भर्ती होना पड़ा जहां से उन्हें राजगढ़ जिला अस्पताल में रेफर कर दिया गया था।

वर्मा जब अस्पताल पहुंचे तो उन्हें देखने, बोलने और सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। उनका इलाज करने वाले जिला अस्पताल के एमडी मेडिसिन डॉक्टर सुधीर कलावत कहते हैं, “आम तौर पर स्नेक बाइट के कैस में 10 एएसवी इंजेक्शन लगते है लेकिन इनकी स्थिति बहुत गंभीर थी इन्हें 30 एएसवी इंजेक्शन लगाए गए।” 

क्यों चढ़ा है सोशल मीडिया का बुखार?

बीते 16 साल से सांपों के संरक्षण के लिए काम कर रहे सरीसृप विज्ञानी (herpetologist) विवेक शर्मा कहते हैं कि सांप के साथ स्टंट करने का ट्रेंड नया नहीं है। वह ऐसा ऑरकुट के ज़माने से देख रहे हैं। “इन्स्टाग्राम से पहले ऐसे स्टंट वाले वीडियो फेसबुक में प्रचलित थे।” वह इसका सामाजिक-आर्थिक कारण बताते हुए कहते हैं कि ज़्यादातर ऐसे लोअर क्लास या लोअर मिडिल क्लास से आते हैं, सोशल मीडिया उन्हें प्रसिद्धि हासिल करने का सबसे आसान तरीका दिखाई देता है। वह गुस्से के साथ यह भी कहते हैं कि ऐसे लापरवाह लोग अपने परिवार के बारे में भी नहीं सोचते। वह गुना के महावर का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि उनकी मौत के बाद उनके बच्चे अकेले हो गए हैं अब उनके लिए आगे का जीवन अपेक्षाकृत कठिन होगा। 

लक्ष्मी मेवाड़े को अपने पति का काम बिल्कुल पसंद नहीं है मगर उनके पति न उनकी नाही अपने बच्चों की सुनते हैं। फोटो: अब्दुल वसीम अंसारी

स्नेक कैचर लक्ष्मीनारायण मेवाड़े की पत्नी लक्ष्मी मेवाड़े वार्ड क्रमांक 2 में आंगनवाड़ी सहायिका के पद पर पदस्थ है। उन्हें और उनके बच्चों को मेवाड़े का यह काम बिल्कुल पसंद नहीं है। कई बार हुए झगड़ों के बाद भी वह अपनी पत्नी की बात नहीं मानते। लक्ष्मी बताती हैं कि एक बार किसी डॉक्टर के यहां ये काम करते हुए सांप ने उनके पति को डस लिया मगर डॉक्टर ने उन्हें तीन दिन तक वही रखा और परिजनों को कोई खबर नहीं दी बाद में घर लौटने पर घटना का पता चला।

शर्मा स्नेक हब नाम का एक प्लेटफोर्म भी संचालित करते हैं जहां कोई भी आस-पास पाए जाने वाले सांपों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता है। वह कहते हैं कि अगर लोगों इन सांपों के बारे में पता रहेगा तो उनका संरक्षण हो सकेगा। वह यह भी कहते हैं कि सरकार को ऐसा प्लेटफ़ॉर्म बनाना चाहिए जहां लोग अपने आस-पास मौजूद प्रशिक्षित स्नेक रेस्क्युअर से संपर्क कर सकें। साथ ही वह सांप के साथ स्टंट करने वाले लोगों पर कड़ी कार्रवाई की भी वकालत करते हैं। 

2030 तक देश में सांप काटने से होने वाली मौत को आधा करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने मार्च 2024 को नेशनल एक्शन प्लान भी लॉन्च किया। इस एक्शन प्लान के अनुसार इंसानी बस्तियों के सांप को रेस्क्यू करने के लिए वन विभाग को विशेष रेस्क्यू टीम बनानी चाहिए। इसके साथ ही स्थानीय सांप ‘हैण्डलर्स’ को ट्रेनिंग देने का सुझाव भी दिया गया है। इस प्लान में विशेष तौर पर सांप पकड़ने के बाद उसके प्रदर्शन से बचने की सलाह दी गई है। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत सांप का प्रदर्शन, करतब दिखाना या नुकसान पहुंचाना एक अपराध है। मगर यह तमाम बातें सोशल मीडिया के बुखार के सामने कागज़ी हो जाती हैं। ऐसे में परिणाम इतने खतरनाक होते हैं कि संतोष चौधरी जैसे लोगों को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है।  

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Author

  • Abdul Wasim Ansari is an independent journalist based in Rajgarh, Madhya Pradesh, bringing nearly a decade of experience in journalism since 2014. His work focuses on reporting from the grassroots level in the region.

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