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किसानों का ट्रैक्टर मार्च, क्यों हो रहा है इंदौर-उज्‍जैन ग्रीनफील्‍ड कॉरिडोर का विरोध?

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इंदौर जिले के हातोद से किसान ट्रैक्टर और बाइक पर इंदौर के गांधी नगर और एअरपोर्ट से विजय नगर चौराहे को जोड़ने वाले सुपर कॉरिडोर से होते हुए इंदौर मुख्य शहर की ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि पुलिस ने उन्हें मुख्य शहर से पहले ही रोक दिया। धार रोड पर सिरपुर से पहले किसान सड़क पर ही लगभग 2 घंटे तक धरने पर बैठे रहे। प्रदर्शन से धार रोड पर लगभग दो किमी लंबा जाम लग गया। एडीशनल कलेक्‍टर रोशन रॉय सहित कई अध‍िकारी मौके पर पहुंचे और किसानों से बातचीत की। किसानों ने उन्‍हें ज्ञापन सौंपा और दो घंटे बाद शांतिपूर्वक वापस लौट गए। किसानों ने चेतावनी दी कि यदि मांगे नहीं मानी गई तो आंदोलन पूरे मध्‍य प्रदेश में फैल जाएगा। 

8 अक्‍टूबर को इंदौर जिले के ये किसान प्रस्तावित इंदौर-उज्जैन ग्रीनफील्ड कॉरिडोर का विरोध कर रहे थे। यह 48.10 किमी लंबा कॉरिडोर है, जिसकी कुल लागत 950 करोड़ रुपये है। यह परियोजना इंदौर के पित्रा पर्वत (हातोद) से शुरु होकर उज्‍जैन के चिंतामण गणेश-सिंहस्‍थ बायपास तक जाएगी। इसकी चौड़ाई 60 मीटर रखी गई है। प्रदेश सरकार से ख़ास तौर पर 2028 में उज्जैन में होने वाले सिंहस्‍थ महाकुंभ के लिए बनाना चाहती है। 

सड़क पर कॉरिडोर के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए किसान। फ़ोटो: ग्राउंड रिपोर्ट

क्‍या है ग्रीनफील्‍ड कॉरिडोर परियोजना?

मध्‍य प्रदेश सरकार का अनुमान है कि सिंहस्‍थ-2028 में लगभग 15 करोड़ श्रद्धालु उज्‍जैन आएंगे। 27 मार्च से 27 मई 2028 तक चलने वाले इस महापर्व में तीन शाही स्रान और सात पर्व स्रान प्रस्‍तावित है। राज्‍य सरकार ने इसके लिए हाल ही में 2,675 कराेड़ रु के 33 मेजर प्रोजेक्ट स्वीकृत किए हैं। 3360 हेक्‍टेयर के मेला क्षेत्र में विकास कार्य किए जा रहे हैं। इंदौर-उज्‍जैन ग्रीनफील्‍ड कॉरिडोर भी इसी योजना का हिस्‍सा है। इस कॉरिडोर का निर्माण हाइ‍ब्रिड एन्‍युटी मोड (HAM) पर 950 करोड़ रुपये की लागत से होगा। 

इसमें चार लेन मुख्‍य कैरिजवे के साथ 28 किलोमीटर हिस्‍से में 6-लेन का विस्‍तार होगा। साथ ही दोनों ओर सर्विस रोड की व्‍यवस्‍था प्रस्‍तावित है। परियोजना को दो साल में पूरा करने और 17 वर्षों तक संधारण का लक्ष्‍य रखा गया है। मध्‍य प्रदेश सड़क विकास निगम (एमपीआरडीसी) द्वारा सड़क निर्माण का टेंडर 18 सितंबर को जारी किया गया। टेंडर की अंतिम तारीख 14 अक्‍टूबर है। 

एमपीआरडीसी के अधिकारियों ने बताया इस परियोजना में 34 अंडरपास, 2 फ्लाईओवर, 1 रेलवे ओवर ब्रि‍ज (आरओबी), 7 मध्‍यम आकार के पुल और 2 बड़े जंक्‍शन का निर्माण होगा। सरकार का दावा है कि इस मार्ग से इंदौर एयरपोर्ट से उज्‍जैन की दूरी मात्र 30 मिनट में तय की जा सकेगी। जबकि वर्तमान में इसमें करीब 75 मिनट लगते हैं। यह परियोजना पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र को भी सीधे उज्‍जैन से जोड़गी, जिससे व्यापारिक यातायात में तेजी आएगी।

किसानों के अनुसार ज़मीन के लिए मिलने वाला मुआवजा इतना कम है कि वह अपने लिए उतनी ही नई ज़मीन भी नहीं खरीद पाएंगे। फ़ोटो: ग्राउंड रिपोर्ट

28 गांवों की भूमि का अधिग्रहण

परियोजना के दायरे में इंदौर जिले की सांवेर और हातोद तहसील के 20 गांव और उज्‍जैन जिले के 8 गांव यानी कुल 28 गांव शामिल हैं। सरकार ने भूमि‍ अधि‍ग्रहण अधिनियम 2013 की धारा 11 के तहत अधिसूचना जारी की है। कुल 188 हेक्‍टेयर उपजाऊ कृषि भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है। प्रभावित गांवों में इंदौर-उज्‍जैन के कांकरिया, जम्‍बुर्डी सरवर, सगवाल, बुढानिया, हातोद, जिंदाखेड़ी, रतनखेड़ी, मगरखेड़ी, बीबीखेड़ी और चितौड़ा प्रमुख है। यहां अधिकांश परिवार खेती से अपनी आजीविका चलाते हैं। 

धारा 11 की अधिसूचना के बाद धारा 19 के तहत खसरा नंबर और प्रभावित भूमि का विवरण सार्वजनिक किया गया। सुझाव और आपत्त‍ियां पर सुनवाई जारी है, अभी तक करीब इंदाैर जिले की दोनों तहसील (सांवेर-हातोद) से किसानों की 296 आपत्ति‍यां मिल चुकी है। 

हालांकि परियोजना की सोशल इम्पैक्ट असेसमेंट (SIA) रिपोर्ट तैयार की जा चुकी है। जोकि बहुत सकारात्‍मक तस्‍वीर पेश करती है। यह रिपोर्ट, जिस पर सामाजिक, पुनर्वास और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ स्‍थानीय पंच-सरपंचों के भी हस्‍ताक्षर हैं। दावा करती हैं कि भूमि अधि‍ग्रहण “जनहित और लोकहित में आवश्‍यक” है। रिपोर्ट कहती हैं कि यह परियोजना गरीबी, बेरोजगारी कम करेगी, औद्योगिक पलायन रोकेगी और क्षेत्र के आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देगी। 

SIA रिपोर्ट बार-बार दोहराती है, “भू-अर्जन से किसी भी परिवार के विस्‍थापित होने की संभावना नहीं हैं।” लेकिन प्रभावित किसान इस रिपोर्ट को सिरे खारिज करते हैं। इंदौर जिले की हातोद तहसील के सागवाल गांव के गजराज सिंह कछावा (54) कहते हैं, “हो सकता है हमारा घर न जा रहा हो, लेकिन हमारी पूरी रोजी-रोटी तो जा रही है।” 

कछावा गुस्‍से में पूछते हैं, “जब खेत ही नहीं बचेगा तो हम क्‍या करेंगे?” उनके गांव की करीब 17.251 हेक्‍टेयर निजी भूमि का अधि‍ग्रहण किया जा रहा है। इस गांव में 182 परिवार से 42 परिवारों की भूमि सड़क के दायरे में आ रही है। 

इसी गांव के सुरेंद्र सिंह 1.518 हेक्‍टेयर (3.75 एकड़) जमीन पर खेती करते हैं। सड़क के दायरे में उनकी 0.925 हेक्‍टेयर (2.286 एकड़) जमीन आ रही है। एसआईए रिपोर्ट पर वह कहते हैं,

“यह रिपोर्ट झूठ का पु‍लिंदा है। सरकार कह रही है कि इसके फायदे ज्‍यादा हैं। किसके लिए? हमारे लिए तो सिर्फ बर्बादी है। हमारी तीन पीढ़ियों की जमीन जा रही है, बेटियों का भविष्‍य दांव पर है। इसे आप फायदा कहते हैं?” 

आंखों से आंसू पोछते हुए सुरेंद्रसिंह आगे कहते हैं, ”भू-अर्जन के बाद मेरे पास मात्र एक एकड़ जमीन बचेगी, क्‍या उगाऊंगा और क्‍या बेचूंगा और क्‍या खाऊंगा।” 

प्रदर्शनकारियों ने कहा कि अगर मांग पूरी नहीं हुई तो वो पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन करेंगे। फ़ोटो: ग्राउंड रिपोर्ट

अपर्याप्त मुआवजा राशि

किसानों का सबसे बड़ा विरोध मुआवजे की दर को लेकर है। सरकार भूमि अधिनियम अधिग्रहण 2013 के तहत रजिस्‍ट्रार गाइडलाइन दर से दोगुना मुआवजा दे रही है। लेकिन किसानों द्वारा इस राशि को अपर्याप्‍त बताया जा रहा है। 

किसान नेता वीरेंद्र चौहान कहते हैं, “क्षेत्र में जमीन की कीमतें सरकारी दरों से पांच गुना त‍क बढ़ चुकी हैं।” उन्‍होंने दावा किया कि जो मुआवजा दिया जा रहा है, उससे वे अपने खेतों के 10 किलोमीटर के दायरे में उतनी ही उपजाऊ जमीन नहीं खरीद सकते हैं।” 

किसान नेता बबलू जाधव समझाते हैं, “यदि सरकारी रजिस्‍ट्री में जमीन 5 लाख रु प्रति एकड़ दर्ज है, तो मुआवजा 10 लाख रु मिल रहा है। जबकि बाजार में वही जमीन 25 से 30 लाख रु में बिकती है।” 

जाधव का आरोप है कि प्रशासन में पारदर्शिता की कमी है और किसानों की चिंताओं को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। किसानों की य‍ह भी शिकायत है कि मुआवजे का भुगतान किस्‍तों में होने वाला है, जिससे वे तुरंत वैकल्पिक जमीन नहीं पाएंगे। 

हालांकि जिला प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि किसानों की आपत्ति‍याें पर विचार किया जा रहा है। इंदौर नगर निगम, एडीशनल कलेक्‍टर रोशन रॉय कहते है, ”मुआवजा पारदर्शी और कानून के अनुरुप दिया जाएगा। किसानों के सुझावों-आपत्ति‍याें को उच्‍च अधिकारियों तक पहुंचा दिया गया है।” 

कांकरिया बोर्डिया गांव के 48 वर्षीय दिलीप सिंह की सात एकड़ जमीन के बीचों-बीच से यह कॉरिडोर गुजरने वाला है। दिलीप कहते हैं, “पूरी जमीन तो नहीं जा रही है, लेकिन बीच से सड़क बन जाएगी तो बची हुई जमीन भी बेकार हो जाएगी।” 

दिलीप आशंका जताते हुए कहते हैं कि उनकी सालाना आय में 50% तक की कमी आ सकती है। उनके खेत में साेयाबीन के अलावा प्‍याज और मक्‍का की भी खेती होती है। इससे उन्हें सालाना 1.8 से 2 लाख रुपये की आय होती है।

किसानों का तर्क है कि सरकार को कॉरिडोर के विकल्पों पर विचार करना चाहिए। फ़ोटो: ग्राउंड रिपोर्ट

किसानों का तर्क है कि उज्‍जैन जाने के लिए पहले सही कई मार्ग मौजूद हैं जिन्हें चौड़ा कर यह उद्देश्‍य पूरा किया जा सकता है। हालांकि मौजूदा इंदौर-उज्‍जैन हाईवे (राष्‍ट्रीय राजमार्ग NH-552E) को चार लेन से छह लेन तक चौड़ा करने का काम पहले से ही चल रहा है। यह परियोजना 1,692 करोड़ रुपये की लागत से पूरी हो रही है। ​2024 में शुरू हुए इस कार्य को 2026 तक पूरा किए जाने की उम्‍मीद है। 

किसान नेता कैलाश सोनगरा कहते हैं कि सरकार को विकास और आजीविका के बीच संतुलन बनाना होगा। 

एक तरफ सरकार इस परियोजना को हर तरह से फायदेमंद और जनहित में बता रही है। वहीं दूरी ओर हजारों किसान है, जिनकी पहचान और भविष्‍य दांव पर है। फिलहाल, किसान दृढ़ हैं कि बिना उचित मुआवजे और पुनर्वास के वे अपनी जमीन नहीं देंगे। अब यह तो आने वाला समय ही बताएंगा कि सरकार किसानों के भविष्‍य को दांव पर लगाकर परियोजना आगे बढ़ती है या संतुलन का रास्‍ता निकालकर मौजूदा वैकल्पिकों का ही चौड़ीकरण करती है।

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