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पांढुर्णा में एंथ्रेक्स से मवेशियों की मौत के बाद डर और लापरवाही के आरोप

medical team inspecting in pandhurna

पांढुर्णा तहसील के हिवरापृथ्वीराम और उमरिकला गांवों में पिछले पंद्रह दिनों से जो कुछ हो रहा है, उसने पूरे गांव को दहशत में डाल दिया है। यहां रहस्यमई परिस्थियों में मवेशियों की मौत हो रही है।  

अब तक कम से कम 13 मवेशी दम तोड़ चुके हैं। इनमें गांव में गायों की मौत से जैसे सन्नाटा पसरा रहता है। ग्रामीणों के मुताबिक बीमारी इतनी तेजी से फैल रही थी कि पहले पेट फूलता था और दो-तीन घंटों में ही पशु तड़पते हुए दम तोड़ देता था। पशु चिकित्सकों ने गांवों में एंथ्रेक्स फैलने की संभावना जताई है।

दरअसल मवेशियों में इस बिमारी के फैलने की खबर नवंबर के दूसरे हफ्ते में सामने आई थी। पहले इससे मवेशियों की मौत हुई फिर स्थानीय ग्रामीणों की तबियत बिगड़ने लगी। स्थानीय सिविल अस्पताल से मिली जानकारी के अनुसार 12 नवंबर तक कुल 13 जानवरों की मौत हुई है। इनमें 6 गाय, 4 बछड़े, 2 बैल और 1 बकरी शामिल हैं। वहीं पशुओं के संपर्क में आए कुल 24 में से 5 लोगों में बुखार, रनिंग नोज़, ड्राय कफ और गले में ख़राश जैसे लक्षण देखे गए।

cow died after antrax infection in pandhurna mp
2 गांवों में कुल मिलकर 12 मवेशियों की मौत हुई है।|फ़ोटो: पांढुर्णा, मध्य प्रदेश|स्पेशल अरेंजमेंट

सरकारी लेखाजोखा और डर

जैसे-जैसे मवेशियों में मौतों का आंकड़ा बढ़ता गया, प्रशासन को मामले की गंभीरता का एहसास होने लगा। कलेक्टर नीरज वशिष्ठ और पुलिस अधीक्षक सुंदर सिंह कनेश ने खुद गांव पहुंचकर हालात का जायजा लिया। कलेक्टर ने मौके पर ही अधिकारियों की मीटिंग लेकर सख्त निर्देश दिए कि गांव में लगातार निगरानी रखी जाए, नए मामलों को तुरंत चिन्हित किया जाए, पशुओं और ग्रामीणों के स्वास्थ्य की जांच लगातार हो और संक्रमण रोकथाम के सभी उपाय बिना देरी लागू हो।

हिवरापृथ्वीराम और उमरिकला गांव में जिस तेज़ी से बीमारी फैली, उसने गांववालों को हैरान कर दिया। ग्रामीणों का कहना है कि गाय सुबह तक बिल्कुल सामान्य दिखती, लेकिन दोपहर तक उसका पेट फूल जाता और शाम होते-होते उसकी मौत हो जाती। इस अचानक मौत ने लोगों में डर का माहौल पैदा कर दिया है। कई परिवारों ने एक ही दिन में अपने मवेशी खो दिए।

पशु चिकित्सा विभाग की टीम ने गांवों का सर्वे किया, बीमारी की जांच शुरू की और जीवित पशुओं का टीकाकरण कराया। साथ ही टीम की निगरानी में मर चुके पशुओं को सुरक्षित तरीके से गड्ढे खोदकर दफनाया गया ताकि संक्रमण और न फैले। 

सैंपल दिल्ली-भोपाल भेजे गए

इस पूरी घटना का सबसे गंभीर पहलू तब सामने आया जब मृत मवेशियों के सैंपल में बेसिलस एंथ्रेक्स, यानी एंथ्रेक्स बैक्टीरिया की पुष्टि हो गई। यह वही संक्रमण है जिससे पशु ही नहीं, बल्कि मनुष्य भी संक्रमित हो सकते है।

स्वास्थ्य विभाग ने तुरंत 31 ग्रामीणों के ब्लड सैंपल लिए इसमें पशु मालिक, मृत पशुओं के संपर्क में आए लोग, गोठानों में रहने वाले कामगार शामिल है। सभी सैंपल एनसीडीसी दिल्ली और भोपाल की लेबोरेटरी भेजे गए है। रिपोर्ट आने तक गांव को अलर्ट पर रखा गया है।

आईडीएसपी भोपाल द्वारा भेजी गई टीम जिसमें लैब टेक्नीशियन रविंद्र खोबरागड़े, बीईई सुरेश कुमार टेकाम और एमपीडब्ल्यू मोरेश्वर बालपांडे ने गांव में माइक्रो-स्तर पर जांच की है। 

सीएमएचओ डॉ. दीपेंद्र सलामे ने दैनिक भास्कर को बताया कि एंथ्रेक्स के शुरुआती लक्षण कोविड जैसे होते है जिसमें खांसी, सर्दी, बुखार, गला खराब होना और सांस लेने में कठिनाई होती है।

डॉक्टर देरी से आए

हिवरा पृथ्वीराम गांव के हरनाम सिंह सेंगर (47) की आंखें अभी भी नम हैं। वे बताते हैं कि लगभग 15 दिन पहले गायों का पेट अचानक फूलने लगा। उन्हें सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। मवेशी पालकों ने खतरा समझकर डॉक्टरों को सूचना दी।

सेंगर की अपनी गाय भी पांच दिन पहले इसी तरह बीमार हुई। वे घबराकर पशु चिकित्सक को फोन करते हैं, लेकिन जवाब मिलता है—“अभी नहीं आ सकते, कल सुबह आएंगे।” गांव में रात लंबी हो जाती है और सुबह होने तक उनकी गाय दम तोड़ चुकी होती है। 

सेंगर कहते हैं कि अगर डॉक्टर सुबह आ भी जाते तो उससे क्या फायदा होता? वह बताते हैं कि सभी ग्रामीणों ने प्रशासन को पहले ही बताया था कि मवेशियों में बिमारी फ़ैल रही है। सेंगर मानते हैं, “अगर 15 दिन पहले ही टीका लगा देते तो इतनी मौतें नहीं होतीं।”

धूप में चमकती लाल मिट्टी पर सेंगर की गाय को दफनाए जाने के बाद बना छोटा-सा टीला दिखाई देता है। वे कहते हैं

“जानवर हमारी जिंदगी होते है। इनके बिना खेती कैसे चलेगी? दूध कहां से मिलेगा? ये सिर्फ मवेशी नहीं हमारे परिवार के सदस्य होते हैं।”

medical team for antrax investigation in pandhurna
स्थानीय लोगों का आरोप है कि सूचना देने पर भी मेडिकल सहायता समय पर नहीं पहुंची।|फ़ोटो: पांढुर्णा, मध्य प्रदेश|स्पेशल अरेंजमेंट

दूध विक्रय पर रोक, उबाला पानी पीने की सलाह

ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर (BMO) डॉ. दीपेंद्र सलामे के नेतृत्व में मेडिकल टीम गांव पहुंची और ग्रामीणों के स्वास्थ्य का परीक्षण किया। टीम ने ग्रामीणों को बीमार पशुओं का दूध नहीं पीने और पानी उबालकर ही पीने की सलाह दी है। 

इस बीच स्वास्थ्य विभाग ने गांव में दूध विक्रय पर अस्थायी रोक लगा दी है। ग्रामीणों को अहतियातन बाड़ों और गोठानों की साफ-सफाई, सैनिटाइजेशन और कीटनाशक छिड़काव की सलाह दी गई है। 

दूध और डेयरी संचालकों पर भी नजर रखी जा रही है ताकि संक्रमित दूध बाजार में न पहुंच जाए। मवेशियों पर आए इस संकट का ग्रामीणों पर बुरा असर पड़ा है। सबसे ज्यादा वह लोग प्रभावित हुए हैं जिनकी आय का एक बड़ा हिस्सा दूध बेचने से आता है। ऐसे कई घरों की आमदनी रुक गई है।

मनुष्यों में फैलता है रोग 

एंथ्रेक्स एक दुर्लभ संक्रामक रोग है जो बैसिलस एंथ्रेसिस नामक जीवाणु से होता है। यह स्वाभाविक रूप से जंगली और पालतू जानवरों जैसे मवेशी, भेड़, बकरी, ऊंट में पाया जाता है। मनुष्यों में यह संक्रमण तब होता है जब वे संक्रमित जानवरों या उनकी खाल के संपर्क में आते है।

एक रिपोर्ट के अनुसार जब एंथ्रेक्स मनुष्यों को प्रभावित करता है, तो यह आमतौर पर संक्रमित जानवरों या उनके उत्पादों के व्यावसायिक संपर्क के कारण होता है। 

एंथ्रेक्स एक खतरनाक बीमारी है जो बैसिलस एंथ्रेसिस नामक बैक्टीरिया से फैलती है और यह मुख्य रूप से बीजाणु के रूप में फैलता है। बीजाणु बैक्टीरिया का एक रूप है जो प्रतिकूल परिस्थितियों में निष्क्रिय पड़ा रहता है, लेकिन जैसे ही यह मानव शरीर जैसे अनुकूल वातावरण में पहुंचता है, तो सक्रिय होकर बीमारी फैलाने लगता है। 

यह संक्रमण तीन प्रमुख तरीकों से फैलता है l जिसमें पहला, त्वचा के माध्यम से फैलना है l जब कोई व्यक्ति संक्रमित जानवरों की ऊन, हड्डी, बाल या खाल को छूता है और बैक्टीरिया त्वचा के किसी घाव या खरोंच से शरीर में प्रवेश कर जाता है। 

दूसरा, सांस के जरिए जब कोई हवा में मौजूद बीजाणुओं को अंदर ले लेता है, यह सबसे घातक रूप माना जाता है। तीसरा, पेट के माध्यम से जब कोई संक्रमित और अधपका मांस खा लेता है।

एंथ्रेक्स के संपर्क में आने के बाद अधिकांश लोग एक सप्ताह के भीतर बीमार पड़ जाते है, हालांकि सांस से होने वाले संक्रमण में लक्षण दिखने में 42 दिन तक का समय लग सकता है। यह बीमारी मुख्यतः पशुपालन और चमड़ा उद्योग से जुड़े लोगों में अधिक देखी जाती है।

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गांव में दूध बेचने पर अस्थाई रोक लगा संक्रमित पशुओं से दूर रहने को कहा गया है।|फ़ोटो: पांढुर्णा, मध्य प्रदेश| स्पेशल अरेंजमेंट

कार्रवाई में हुई देर

गांव में लोग सबसे ज्यादा आक्रोश पशु विभाग की ओर दिखा रहे हैं। उनका कहना है कि शुरुआत में बीमारी की जानकारी देने के बावजूद कोई टीम समय पर नहीं पहुंची। डॉक्टरों की कल सुबह आएंगे वाली प्रतिक्रिया ने कई पशु मालिकों की उम्मीद तोड़ दी। 

ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि पशु चिकित्सा विभाग ने बीमारी की सूचना मिलने के बावजूद समय पर कोई कार्रवाई नहीं की। किसानों के अनुसार, जब मवेशियों की हालत बिगड़ने लगी, तो इसकी जानकारी मारुड के चिकित्सक डॉ. दुपारे को दी, लेकिन उन्होंने अपनी ड्यूटी ग्राम मारुड में होने की बात कहकर मौके पर आने से इंकार कर दिया।

इसके बाद भी जब किसानों ने हेल्पलाइन 1962 पर शिकायत दर्ज कराई, तब भी विभाग की ओर से कोई त्वरित कदम नहीं उठाया गया। ग्रामीणों का कहना है कि अगर शुरुआती चरण में इलाज शुरू कर दिया जाता, तो इतने जानवरों की जान बचाई जा सकती थी। 

ग्रामीणों की इस बात को पशुपालक अपनी पीड़ा के साथ जोड़ते हुए कहते है —“अगर मेरी गाय को इलाज मिलता, तो शायद वह आज जिंदा होती। प्रशासन को हमारे जानवरों की जान की कीमत समझनी चाहिए।”

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यह घटना स्थनीय स्तर पर पशु चिकित्सा व्यवस्था के लचर होने की पोल खोलती है।|फ़ोटो: पांढुर्णा, मध्य प्रदेश|स्पेशल अरेंजमेंट

पशुओं में यह बिमारी कहां से आई है इसका पता अब तक नहीं चल सका है। मगर यह घटना स्थनीय स्तर पर पशु चिकित्सा व्यवस्था के लचर होने की पोल खोलती है। वेटेनरी काउंसिल ऑफ़ इंडिया (VCI) के अनुसार देश में 81,938 वेटनरी प्रैक्टिशनर्स हैं। इनमें से 3039 प्रैक्टिशनर्स मध्य प्रदेश में हैं। जबकि प्रदेश में 1065 पशु चिकित्सालय हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने हाल ही में आगामी वर्षों में 735 पशु चिकित्सालय घोषणा खोलने की घोषणा की है। साथ ही 200 पशु चिकित्सकों और 500 सहायक पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारियों की नियुक्ति भी पूरी करने की बात कही है।

मगर यह घोषणाएं ज़मीन पर कब उतरेंगी और कब ऐसा होगा कि सेंगर को अपनी गाय के इलाज के लिए एक दिन का इंतज़ार नहीं करना होगा? फिलहाल इसका पुख्ता जवाब नहीं दिया जा सकता।


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  • Sayali Parate is a Madhya Pradesh-based freelance journalist who covers environment and rural issues. She introduces herself as a solo traveler.

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