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राजस्थान में पानी के लिए तरसते इंसान और जानवर, पलायन ही सहारा

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राजस्थान में पानी के लिए तरसते इंसान और जानवर, पलायन ही सहारा
राजस्थान में पानी के लिए तरसते इंसान और जानवर, पलायन ही सहारा

कोमल/अंजू कुमारी | लूणकरणसर, राजस्थान | कहते हैं कि जल ही जीवन है. इंसान कुछ दिन खाना के बिना रह सकता है लेकिन पानी के बिना उसका जीवन संभव नहीं है. पानी की कमी अगर रेगिस्तानी क्षेत्र में हो तो यह और भी गंभीर प्रश्न बन जाता है. लेकिन यही हकीकत है कि आज भी देश के अन्य ग्रामीण क्षेत्रों की तरह राजस्थान (Rajasthan Water Crisis) के दूर दराज़ के ग्रामीण क्षेत्र भी पीने के पानी के लिए तरसते हैं. इनके लिए अन्य क्षेत्रों की तुलना में दोहरी मुसीबत है क्योंकि जाड़े के दिनों में इनका किसी तरह गुज़ारा तो चल जाता है लेकिन गर्मी के दिनों में गर्म थपेड़ों के साथ साथ पानी की कमी की दोहरी मार झेलनी पड़ती है. 

पानी की इसी कमी से राज्य के एक दूर दराज़ गांव ढाणी भोपालराम गांव के लोगों को भी जूझना पड़ता है. बीकानेर जिला स्थित लूणकरणसर ब्लॉक से करीब 15 किमी दूर इस गांव में पानी आज भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है. यह समस्या केवल इंसानों तक ही सीमित नहीं है बल्कि जानवरों विशेषकर पालतू मवेशियों को भी इस प्रकार की समस्या (Rajasthan Water Crisis) से गुज़रना पड़ता है. जिसकी कमी की वजह से कई बार इन जानवरों की मौत तक हो जाती है. स्थानीय लोगों को आज भी इस समस्या के स्थाई समाधान की तलाश है.

इस संबंध में गांव के एक 45 वर्षीय तारु राम कहते हैं कि

“गांव के लोग प्रति सप्ताह ब्लॉक लूणकरणसर से पानी का एक टैंकर मंगवाते हैं. जिससे करीब पांच हज़ार लीटर पानी मिलता है और एक बार टैंकर मंगवाने पर एक हज़ार से पंद्रह सौ रूपए तक खर्च आते हैं. गांव के अधिकतर लोग बहुत गरीब हैं और खेती अथवा दैनिक मज़दूरी करते हैं. ऐसे में आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि केवल पानी के लिए टैंकर मंगवाने के लिए उन्हें कितना खर्च करनी पड़ती है?”

rajasthan water crisis

गांव में यह समस्या आज की नहीं है बल्कि पिछले कई दशकों से गांव वाले पानी की इस समस्या से जूझ रहे हैं. पहले घर की महिलाएं पानी की खातिर करीब के गांव 9 किमी दूर सेजरासर अथवा सुरनाना जाती थी और सर पर पानी ढोकर लाती थीं. जिससे एक तरफ जहां उनके समय की बर्बादी होती थी तो वहीं दूसरी ओर इससे उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता था. जिसके बाद गांव वाले टैंकर मंगवाने लगे इससे महिलाओं को आसानी तो हो गई लेकिन उनके घर का बजट बिगड़ गया. यही कारण है कि कई परिवार की महिलाएं पैसे बचाने के लिए अब फिर से सर पर पानी ढोने का काम करने लगी हैं.

Rajasthan Water Crisis: पाईप लाईन बिछी लेकिन पानी नहीं आया

तारु राम कहते हैं कि इस समस्या के समाधान के लिए गांव वालों ने सरपंच से भी बात की लेकिन वह इसके समाधान के लिए बहुत अधिक गंभीर प्रयास करते नज़र नहीं आये. जिसकी वजह से गांव वाले आज भी पानी के लिए तरस रहे हैं. उन्होंने बताया कि गांव में पानी की पाइपलाइन तो कई बरस पूर्व बिछा दी गई थी लेकिन आज तक उसमें कभी पानी नहीं आया है. इसलिए गांव की महिलाएं कभी कभी कुओं से पानी भरते हैं और अपने घर की आवश्यकता को पूरा करते हैं. वहीं एक जोहट (पानी का स्रोत) है जो करीब 85 वर्ष पुराना है लेकिन अब उसमें पानी पीने लायक नहीं है, अब गांव वाले उसका प्रयोग केवल जानवर को पानी पिलाने के लिए करते हैं. 

तारु राम कहते हैं कि गांव के लोग काफी गरीब हैं. ऐसे में वह मवेशी पालते हैं जिनके दूध से वह अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं. लेकिन इन जानवरों को चारा के साथ साथ पानी की भी ज़रूरत होती है. राजस्थान ऊंटों का राज्य कहलाता है और इस जानवर को पानी की सबसे अधिक आवश्यकता होती है. लेकिन गांव वालों के पास खुद ही पानी की समस्या है (Rajasthan Water Crisis) तो वह इन जानवरों के लिए कहाँ से व्यवस्था करेंगे? यही कारण है कि कई गांव वालों के पालतू मवेशी केवल पानी की कमी के कारण मर जाते हैं. कुछ ग्रामीण पैसों के लिए इन मवेशियों को बेच देते हैं ताकि उन्हें पानी मिल सके.

आज भी जात-पात हावी

वहीं 35 वर्षीय एक अन्य ग्रामीण उमेश बताते हैं कि

“गांव में उच्च और निम्न समुदायों की संख्या लगभग बराबर है. इसके बावजूद जाति भेदभाव अपनी गहरी जड़े जमाये हुए है. जिसका प्रभाव सामाजिक जनजीवन और गतिविधियों पर नज़र आता है. यह भेदभाव पानी की समस्या पर भी नज़र आता है. इसकी वजह से निम्न जाति के कुछ परिवारों को पानी की समस्या से जूझना पड़ता है. गांव में कुंड या कुओं की संख्या नाममात्र की है. जिसमें से अधिकतर पर उच्च जातियों का कब्ज़ा है और वह उस पर निम्न जाति की महिलाओं को पानी नहीं भरने देते हैं. ऐसे में इस समुदाय के लोगों को गरीबी के बावजूद टैंकर से पानी मंगवा कर काम चलाना पड़ता है.”

वह बताते हैं कि जाति आधारित भेदभाव की यह समस्या राजस्थान के तक़रीबन सभी गांवों में देखने को मिल जाती है. 

पानी बना पलायन का कारण

लेकिन ढाणी भोपालराम गांव के निम्न जाति के लोगों के लिए यह दोहरी समस्या (Rajasthan Water Crisis) बन कर आती है. जिसका नकारात्मक प्रभाव उनके जीवन पड़ता है. उन्होंने बताया कि पानी की समस्या से केवल पशुपालक ही परेशान नहीं हैं बल्कि किसानों को भी इसका नुकसान उठाना पड़ रहा है. उन्हें खेत में सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध नहीं हो पाता है. जिसका प्रभाव उनकी खेती पर पड़ता है. समय पर पानी नहीं मिलने से उनकी फसल बेकार हो जाती है. यही कारण है कि अब इस गांव की नई पीढ़ी खेती का काम छोड़ कर रोज़गार के अन्य विकल्पों पर काम कर रही है. खेती किसानी करने वाले अधिकतर परिवार के युवा गांव से पलायन कर दिल्ली, मुंबई, सूरत, अहमदाबाद और पुणे जा रहे हैं क्योंकि यदि वह गांव में रहकर खेती करेंगे तो पानी की कमी के कारण उन्हें केवल इसमें घाटा ही उठाना पड़ता.

ग्रामीणों का आरोप है कि पानी की इस समस्या पर कई बार गांव के सरपंच से भी बात की गई लेकिन परिणाम कुछ भी नहीं निकला. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या ढाणी भोपालराम गांव के लोगों को इसी प्रकार पानी की समस्या (Rajasthan Water Crisis) से जूझते रहना पड़ेगा? आखिर कौन है जो इसके लिए ज़िम्मेदार है? क्या स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों का यह फ़र्ज़ नहीं बनता है कि वह इस समस्या को गंभीरता से लें और इसे हल करने का प्रयास करें ताकि इस गांव का इंसान और जानवर पानी जैसी नेमत के लिए न तरसे. (चरखा फीचर)

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