राजगढ़, मध्यप्रदेश | मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले में एक गर्भवती महिला को अपना हक पाने के लिए दो बार 10 किलोमीटर का पैदल सफर करना पड़ा। राजगढ़ ब्लॉक के पिपल्या गांव की इस महिला ने 2022 में नसबंदी ऑपरेशन कराया था, लेकिन तीन साल बाद वह सात माह की गर्भवती है।
शिकायत दर्ज कराने का संघर्ष
2 दिसंबर को पीड़िता अपनी सास के साथ राजगढ़ कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंची। जनसुनवाई में उन्होंने कलेक्टर के नाम आवेदन दिया कि नसबंदी फेल होने के लिए उन्हें मुआवजा दिया जाए। आवेदन की पावती पर लिखा गया कि प्रकरण जिला अस्पताल के सिविल सर्जन को जांच के लिए भेजा गया है।
पीड़िता की सास बताती हैं,
“हमारे गांव का रास्ता बड़े पुल के करीब से होकर गुजरता है, जहां बस नहीं चलती। हमारे पास कोई साधन नहीं है, इसलिए पैदल ही आना-जाना पड़ता है।”
शिकायत के बाद चिकित्सा विभाग की एक महिला कर्मचारी ने फोन कर पीड़िता को शिकायत करने से मना किया, लेकिन तब तक आवेदन दर्ज हो चुका था।
एक सप्ताह बाद भी जब कोई अपडेट नहीं मिला, तो 9 दिसंबर को पीड़िता दोबारा अपनी सास के साथ पैदल ही जनसुनवाई के लिए पहुंची। लेकिन पैदल आने में देर हो गई और कलेक्टर से मुलाकात नहीं हो पाई। निराश महिला हाथों में कागजात लिए कुछ देर वहीं बैठी रही।
ग्राउंड रिपोर्ट की पहल से मिली राहत
जनसुनवाई से निराश लौट रही पीड़िता और उसकी सास की मुलाकात ग्राउंड रिपोर्ट की टीम ने जिला अस्पताल में आरएमओ डॉक्टर अमित कोली से कराई। उन्होंने पूरा मामला सुना और पीड़िता को सीएमएचओ कार्यालय में नसबंदी फेलियर केस को हैंडल करने वाली सहायक सांख्यिकी अधिकारी रामकन्या सिसोदिया के पास भेजा।
रामकन्या सिसोदिया ने बताया,
“पीड़िता का प्रकरण पात्रता की श्रेणी में है और रिओपन हुआ है। ब्लॉक ऑफिस से जैसे ही सभी दस्तावेज पूरे होंगे, इसे दोबारा अपलोड कर दिया जाएगा। मैंने उसे अपना फोन नंबर भी दिया है ताकि वह दफ्तर के चक्कर न लगाए।”
उन्होंने बताया कि पीड़िता ने 90 दिवस के भीतर क्लेम कर दिया था, लेकिन सीबीएमओ से जानकारी वेरिफाई करवाकर दोबारा अपलोड कराना था। सिस्टम में रिओपन होने पर छोटी-छोटी कमियां बताई जाती हैं, जिन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी ब्लॉक की होती है।
चौंकाने वाली बात यह है कि पीड़िता की फाइल को प्रिंट निकालकर पेंडिंग प्रकरण में भी नहीं रखा गया था। यदि महिला ग्राउंड रिपोर्ट की टीम के साथ मौके पर न होती तो शायद उसे भी अन्य हितग्राहियों की तरह डांटकर भगा दिया जाता।
बुधवार को ग्राउंड रिपोर्ट की टीम ने राजगढ़ कलेक्टर गिरीश कुमार मिश्रा को पूरे मामले से अवगत कराया। कलेक्टर ने आश्वासन दिया, “यदि महिला पात्र है तो निश्चित तौर पर उसकी मदद की जाएगी और जो भी दोषी होंगे उन पर कार्रवाई होगी।” मौके पर जिला अस्पताल की सीएमएचओ डॉक्टर शोभा पटेल भी मौजूद थीं।
रामकन्या सिसोदिया ने बताया कि पीड़िता के साथ लगभग 10 महिला हितग्राहियों की फाइल रिओपन थी, जिन्हें ऑफिशियल लेटर के साथ स्टेट को ईमेल कर दिया गया है।
पीड़िता की कहानी
बुधवार को ग्राउंड रिपोर्ट की टीम पीड़िता के गांव पहुंची। महिला अपने दो बच्चों और पति के साथ खेत पर पानी फेर रही थी। उनके दो छोटे बच्चे—एक पांच साल और एक तीन साल का—इर्द-गिर्द घूम रहे थे। पति हाल ही में मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं।
पीड़िता कहती हैं,
“हमारे दो बच्चे पहले से ही थे, यही सोचकर 2022 में नसबंदी कराई थी। लेकिन 2025 में नसबंदी फेल हो गई और अब मैं सात माह की गर्भवती हूं। लगभग दो माह पहले सूचना और दस्तावेज दे चुकी थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ तो पैदल कलेक्ट्रेट पहुंचना पड़ा।”
निष्कर्ष: पिपल्या गांव की इस पीड़िता ने शासकीय नियमों के मुताबिक 90 दिवस के भीतर क्लेम और कागजी कार्रवाई पूरी कर दी थी, लेकिन सिस्टम की जिम्मेदारी संभालने वाले अधिकारियों की लापरवाही ने उसे दो बार 10 किलोमीटर का पैदल सफर करने पर मजबूर कर दिया।
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