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प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बंद करने की मांग क्यों कर रहे हैं किसान?

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Production: Pallav Jain | Report: Chandra Pratap Tiwari and Abdul Wasim Ansari | Camera: Himanshu Narware

मध्य प्रदेश के किसानों के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना उम्मीद से ज्यादा निराशा का कारण बन रही है। हर साल किसान अपनी फसल का बीमा इस आस में कराते हैं कि अगर मौसम की मार से फसल बर्बाद हो जाए तो नुकसान की भरपाई मिल सके। लेकिन हकीकत यह है कि किसानों के खातों में बीमा कंपनियों ने प्रीमियम से भी कम राशि जमा की है। कई किसानों को महज 86 से 200 रुपए तक मिले हैं, वो भी फसल बर्बाद होने के दो साल बाद।

सीहोर जिले के पीपलनेर गांव में यह लगातार तीसरा साल है जब सोयाबीन की फसल अनियमित मौसम से नष्ट हो गई। जहां एक एकड़ में 15-20 क्विंटल उपज की उम्मीद थी, वहां एक क्विंटल भी निकालना मुश्किल रहा। यही स्थिति भोपाल, राजगढ़ और रायसेन जिलों में भी देखने को मिली। किसानों का कहना है कि उन्हें आखिरी बार उचित बीमा राशि चार साल पहले मिली थी। कई किसानों ने पासबुक दिखाकर बताया कि जो रकम आई है, वह मज़ाक जैसी है।

सरकार कहती है कि सर्वे सैटेलाइट से हो रहा है, जबकि किसानों को भरोसा है कि अधिकारी मौके पर आकर नुकसान का आकलन करेंगे। वहीं सरकार प्रचार में यह भी दिखाती है कि किसी किसान को लाखों मिले हैं, लेकिन सवाल उठता है कि एक तरफ कुछ किसानों को लाखों और दूसरी तरफ कुछ को केवल चंद रुपए क्यों?

किसानों का गुस्सा अब विरोध प्रदर्शन में बदल रहा है। वे मांग कर रहे हैं कि जब सरकार बीमा की सही भरपाई नहीं कर सकती तो प्रीमियम काटना भी बंद कर दे। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिपोर्ट बताती है कि 2024 में मध्य प्रदेश ने 176 दिन चरम मौसमी घटनाओं का सामना किया, जिससे 25 हजार हेक्टेयर से ज्यादा फसलें बर्बाद हुईं। ऐसे हालात में फसल बीमा योजना किसानों के लिए सहारा बनने के बजाय बोझ और निराशा का प्रतीक बनती जा रही है।

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Authors

  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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