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इथेनॉल से बने E20 पेट्रोल की कैसे होती है कीमत तय?

पिछले दिनों E20 पेट्रोल को लेकर देश में व्यापक बहस छिड़ी है। न्यूज़ चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक, हर जगह इसकी चर्चा हो रही है। आलोचकों का कहना है कि यह राजनीतिक फायदे के लिए लाई गई नीति है, जबकि सरकार इसे पर्यावरण-अनुकूल कदम बताती है। लेकिन आम उपभोगता के लिए सच्चाई क्या है?

पेट्रोल पंपों पर E20 और सामान्य पेट्रोल की कीमत लगभग बराबर दिखती है, लेकिन हकीकत कुछ और है। दिल्ली में जहां सामान्य पेट्रोल की बेस कीमत ₹52.83 प्रति लीटर है, वहीं एथनॉल का उत्पादन ₹71.32 प्रति लीटर पड़ता है – यानी ₹18 महंगा।

सरकार इस अंतर को पाटने के लिए जटिल सब्सिडी व्यवस्था चला रही है। एथनॉल पर केवल 5% GST लगता है जबकि पेट्रोल पर VAT लगाया जाता है। एक्साइज ड्यूटी पूर्णतः हटा दी गई है और तेल कंपनियों को निर्धारित दामों पर एथनॉल खरीदने के लिए बाध्य किया गया है। पीएम जी-वन योजना और ब्याज सबवेंशन के माध्यम से डिस्टिलरी की लागत भी घटाई जा रही है।

माइलेज की सच्चाई

सबसे बड़ा प्रभाव गाड़ी के माइलेज पर पड़ता है। एथनॉल में सामान्य पेट्रोल से लगभग 33% कम ऊर्जा होती है, जिससे 2-6% तक माइलेज घट जाता है। यदि आपकी गाड़ी पहले 18 किमी प्रति लीटर देती थी, तो E20 के साथ यह 17-17.2 किमी रह जाएगी।

महीने में 40 लीटर पेट्रोल इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति को लगभग 30 किमी कम दूरी मिलती है, जिससे मासिक ₹150-200 का अतिरिक्त खर्च होता है।

अप्रैल 2023 के बाद बनी गाड़ियां E20 के लिए पूर्णतः तैयार हैं। पुरानी गाड़ियों में रखरखाव की आवश्यकता बढ़ सकती है, हालांकि सरकारी अनुसंधान नए इंजनों की सुरक्षा की पुष्टि करता है।

तत्काल वित्तीय नुकसान के बावजूद, E20 के दीर्घकालिक फायदे हैं। कच्चे तेल के आयात में कमी से देश की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी और हवा की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।

यह नीति व्यक्तिगत खर्च बनाम राष्ट्रीय हित की दुविधा प्रस्तुत करती है। आज आपकी गाड़ी की टंकी में हो रहे बदलाव से कल की सांसें साफ हो सकती हैं – लेकिन इसकी कीमत उपभोगताओं को चुकानी पड़ रही है।

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Author

  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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