कोविड-19 महामारी के बाद, मध्य प्रदेश में बच्चों और युवाओं में हृदय रोग से होने वाली मौतों में चौंकाने वाली बढ़ोतरी सामने आई है। भारत के रजिस्ट्रार जनरल और मेडिकल सर्टिफिकेशन ऑफ कॉज़ ऑफ डेथ (MCCD) रिपोर्ट से मिले आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि कम उम्र के समूहों में हृदय संबंधी मौतें कई गुना बढ़ गई हैं। कुछ आयु वर्गों में यह बढ़ोतरी 403% से लेकर 2250% तक दर्ज की गई है। यह अप्रत्याशित प्रवृत्ति विशेषज्ञों के लिए हैरान करने वाली है और महामारी के बाद के दौर में स्वास्थ्य तंत्र और समाज के लिए बड़ी चुनौती को दर्शाती है।
क्या कहते हैं मध्य प्रदेश के आंकड़े
मध्य प्रदेश में 1 से 4 वर्ष के बच्चों में हृदय रोग से मौत की दर 2018 में प्रति एक लाख जनसंख्या पर 0.6 थी, जो 2022 में बढ़कर 14.1 हो गई है। यह 2250% की बढ़ोतरी है। इसी तरह, 5 से 14 वर्ष के बच्चों में मौत की दर 3.7 से बढ़कर 18.6 हो गई, यानी 403% की वृद्धि। यहां तक कि 15 से 24 वर्ष के युवाओं में भी हृदय रोग से मृत्यु दर लगभग 40% तक बढ़ गई। यह उछाल 24 वर्ष से अधिक के आयु वर्गों में हृदय रोग से होने वाली स्थिर या घटती मौतों के ठीक विपरीत है और यह बताता है कि यह संकट खासतौर पर युवाओं और बच्चों में केंद्रित है।
यह प्रवृत्ति केवल मध्य प्रदेश तक सीमित नहीं है। गुजरात, राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों में भी हृदय रोग से मौतों में असामान्य बढ़ोतरी दर्ज की गई है। लेकिन मध्य प्रदेश का मामला खास इसलिए है क्योंकि यहां बच्चों में हुई बढ़ोतरी का स्तर ऐतिहासिक रूप से बेहद असामान्य और चिंताजनक है। सरकार के नागरिक पंजीकरण के आंकड़े भी इन तथ्यों की पुष्टि करते हैं, जिससे यह और स्पष्ट हो जाता है कि मामला बेहद गंभीर है।
कोविड-19 के दीर्घकालिक असर और स्वास्थ्य सेवाओं में रुकावट
कई शोधों और रिपोर्ट्स का मानना है कि इस बढ़ोतरी का सबसे बड़ा कारण कोविड-19 संक्रमण का दीर्घकालिक प्रभाव है। दुनिया भर में हुए शोध बताते हैं कि कोविड-19 हृदय की मांसपेशियों को नुकसान पहुंचाता है, सूजन (मायोकार्डिटिस) पैदा करता है, धड़कन की गड़बड़ी (अरिदमिया) और रक्त जमाव जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है। बच्चों में यह असर और गंभीर रूप ले सकता है क्योंकि कोविड-19 से जुड़ा मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम (MIS-C) हृदय को गहराई से प्रभावित करता है। यही जैविक कारण इस अचानक हुई वृद्धि को समझाने में मदद करते हैं।
इसके अलावा, महामारी के दौरान सामान्य स्वास्थ्य सेवाएं भी बुरी तरह बाधित हुई हैं। लंबे लॉकडाउन के दौरान नियमित बाल चिकित्सा जांच, शुरुआती हृदय रोग स्क्रीनिंग और समय पर इलाज नहीं हो सका। अस्पतालों को कोविड-19 देखभाल के लिए केंद्रित कर दिया गया, जिसके चलते हृदय रोग जैसी जटिलताओं का समय पर निदान और उपचार नहीं हो पाया। इस स्वास्थ्य व्यवस्था की कमी ने उन स्थितियों को और खतरनाक बना दिया, जिन्हें सामान्य परिस्थितियों में संभाला जा सकता था।
इसके अलावा महामारी ने बच्चों और किशोरों की जीवनशैली को भी बदल दिया। स्कूल बंद होने और बाहर खेलने पर पाबंदी ने बच्चों की ज़िंदगी को बैठे-बैठे वाली जीवनशैली (sedentary lifestyle) में बदल दिया है। बच्चों ने अस्वस्थ खान-पान की आदतें अपनाईं और शारीरिक गतिविधि कम हो गई, जिससे मोटापा और मेटाबॉलिक बीमारियाँ बढ़ीं है जो हृदय रोग के लिए जाने-माने जोखिम कारक हैं। इसके साथ ही, अलगाव और तनाव ने मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया, जिसने इन जोखिमों को और बढ़ा दिया।
पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक कारण भी इस संकट में शामिल हैं। मध्य प्रदेश के कई शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में खराब वायु गुणवत्ता हृदय रोग का खतरा बढ़ाती है। वहीं ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में विशेषीकृत बाल हृदय-देखभाल सेवाओं की कमी के कारण समय पर इलाज नहीं मिल सका। कमजोर स्वास्थ्य ढांचे और सामाजिक असमानताओं ने स्थिति को और जटिल बना दिया।
समाधान और आगे का रास्ता
इस संकट से निपटने के लिए विशेषज्ञों ने बेहतर निगरानी और विशेष स्वास्थ्य रणनीतियों की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है। माता-पिता और अभिभावकों के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए, ताकि वे बच्चों में हृदय रोग के शुरुआती लक्षण पहचान सकें। साथ ही, बाल हृदय रोग सेवाओं को मजबूत करना, जांच सुविधाओं को आसान बनाना और नियमित स्वास्थ्य जांच में हृदय रोग की स्क्रीनिंग को शामिल करना बेहद जरूरी है।
सरकार और स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि कोविड-19 के दीर्घकालिक हृदय प्रभावों पर शोध को प्राथमिकता दें। स्वास्थ्यकर्मियों को इस विषय में विशेष प्रशिक्षण दिया जाए, ताकि समय पर और सही निदान किया जा सके। साथ ही, हृदय रोग विशेषज्ञों, बाल रोग विशेषज्ञों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों को साथ लाकर बहु-आयामी देखभाल प्रणाली तैयार की जाए।
अंत में कहा जा सकता है कि मध्य प्रदेश में कोविड-19 के बाद बच्चों में हृदय रोग से मौतों की बढ़ोतरी एक बहु-कारक समस्या है। इसके पीछे वायरस का जैविक असर, स्वास्थ्य सेवाओं में रुकावट, जीवनशैली में बदलाव और सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र की तैयारी की कमी सभी जुड़े हुए हैं। अब ज़रूरी है कि एक सतत और एकीकृत प्रयास किया जाए, ताकि इस संकट पर काबू पाया जा सके और बच्चों-युवाओं को सुरक्षित भविष्य मिल सके।
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