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हरदा में सैकड़ों आदिवासी अपनी ज़मीन बचाने लिए कर रहे हैं विरोध प्रदर्शन

Tribals protest against Morand Ganjal project in Harda
हरदा में विरोध प्रदर्शन में शामिल हुई आदिवासी समाज की महिलाएं

मध्‍य प्रदेश के हरदा जिले में आने वाले आदिवासी गांव बोथी के छोटे से स्‍कूल के पास मिट्टी में बच्‍चे खेल रहे हैं। उनकी हंसी गूंज रही है। परंतु उन्‍हें शायद नहीं पता आने वाले समय में यह स्‍कूल रहेगा भी या नहीं। दरअसल मोरंड-गंजाल बांध परियोजना के तहत बोथी और आसपास के करीब 18 गांव डूब जाएंगे। 

स्‍कूल के पास बने कच्‍चे घर के बाहर बैठी 40 वर्षीय बुदिया बाई कहती हैं,

”ये बच्‍चे हमारा भविष्‍य हैं। बांध बनेगा तो स्‍कूल, घर, खेत सब डूब जाएंगे। हम कोरकू आदिवासी हैं, जंगल और जमीन हमारी जिंदगी हैं।” 

हरदा के बोथी गांव में स्कूल के बाहर खेलते बच्चे

राज्‍य के हरदा और नर्मदापुरम ( होशंगाबाद) जिले के हज़ारों आदिवासी इन दिनों दो अलग-अलग संकट का सामना कर रहे हैं। एक तरफ मोरंड-गंजाल बांध से डूब का खतरा है तो दूसरी ओर रहटगांव के वन ग्रामों में प्रस्‍तावित डॉ. राजेंद्र प्रसाद अभयारण्‍य से आजीविका का खतरा बना हुआ है। इन दोनों परियोजनाओं के विरोध में शुक्रवार (12 सितंबर 2025) को जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) संगठन के बैनर तले ग्रामीण सड़कों पर उतरे। 

ग्राउंड रिपोर्ट की टीम ने इन दाेनों परियोजनाओं से प्रभावित होने वाले गांवों का दौरा किया। ग्रामीणों, कार्यकर्ताओं और अधि‍कारियों से बात कर इस पूरे मुद्दें को समझा। आदिवासियों की मांग है कि इन दोनों परियोजनाओं को या तो बंद कर दिया जाए या उन्‍हें ज़मीन के बदले ज़मीन दी जाए, वो भी उतनी ही ज़मीन जितनी पर वे काबिज़ हैं। 

सिंचाई की कीमत क्‍या होती है ? ‘उसे पूछो जो डूबने वाला है’

बोथी गांव में ग्रामीणों द्वारा बांध के विरोध में आयोजित हुई बैठक

1972 से लटकी मोरंड-गंजाल बांध परियोजना अब 2,813 करोड़ रूपये के बजट के साथ ज़मीन पर उतर रही है। इस परियोजना में मोरंड नदी (नर्मदापुरम जिले के मोरघाट) और गंजाल नदी (हरदा के जावरधा) पर दो बांध बनाए जाने हैं। सरकार के मुताबिक परियोजना से करीब 52,000 हेक्‍टेयर ज़मीन को सिंचाई का लाभ मिलेगा। लेकिन दूसरी तरफ इसका मतलब चार लाख से अधिक पेड़ों की कटाई, 2250 हेक्‍टेयर वन भूमि और हरदा, नर्मदापुरम और बैतूल जिले के 18 गांवों के डूबने के साथ हजारों कोरकू आदिवासी परिवारों का बेघर होना भी है। 

मोरंड-गंजाल परियोजना एक नज़र में

कानूनी केस
वर्ष 2014 में जबलपुर हाई कोर्ट में पीआईएल दाखिल की गई थी, जिसे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

शुरुवात- वर्ष 1972 में परिकल्पना

बजट- 2813 करोड़ रुपए

इन जिलों को लाभ– हरदा, खंडवा, होशंगाबाद और बैतूल

कितना क्षेत्र सिंचित होगा?
कुल 52,000 हेक्टेयर क्षेत्र को लाभ होगा। होशंगाबाद के 28 गांव, 4,617 हेक्टेयर क्षेत्र
खंडवा के 62 गांव, 17,678 क्षेत्र
हरदा के 121 गांव, 29,910 हेक्टेयर क्षेत्र

गांव पूरी तरह डूबेंगे- 10 गांव, होशंगाबाद से 4, हरदा के 4 और बैतूल के 2 गांव

बोथी गांव की संतोष काजले, जिन्‍हें सरकार से 4 हेक्‍टेयर वन भूमि का व्‍यक्तिगत वन अधिकार मिला हुआ है, कहती हैं,

”हमारे गांव में पहले से कुएं, नलकूप हैं। फसल अच्‍छी होती है। बांध से किसे फायदा मिलेगा ? हमें तो घर, स्‍कूल, खेत सब डूबते दिख रहे हैं।” 

जिंदगी बचाओ अभियान संगठन के जुड़े बोथी गांव के युवा रामप्रसाद कहते हैं, ”अगर हमारी जमीन गई, तो हम भी खत्‍म हो जाएंगे। हम जंगल के बिना अधूरे हैं।” 

यह क्षेत्र केवल मानव बस्तियों का ही नहीं है, बल्कि सतपुड़ा और मेलघाट टाइगर रिजर्व के बीच फैले बाघ कॉरिडोर का हिस्‍सा भी है। राष्‍ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधि‍करण (एनटीसीए) ने फरवरी 2025 में चेतवानी दी थी कि इस परियोजना से सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और मेलघाट टाइगर रिजर्व के बीच बाघ गलियारा प्रभावित होगा, जो जैव विविधता के लिए घातक साबित हो सकता है। फिर भी परियोजना पर काम जारी है।

पर्यावरण कार्यकर्ता अजय दुबे कहते हैं,

”ये कॉरिडोर हजारों सालों से बाघ पारगमन का रास्‍ता रहा है। इसके प्रभावित होने से पूरे पारिस्‍थि‍तिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ेगा, क्‍योंकि बाघ गलियारे सिर्फ बाघों को रास्‍ता नहीं देते हैं। यह हजारों पक्षी और पेड़-पौधों के साथ जैव विविधता को बनाए रखते हैं।” 

रहटगांव में अ‍भयारण्‍य के नाम पर अधिकारों की अनदेखी? 

हरदा जिले की रहटगांव तहसील के आठ गांव ( सिंगनपुर, केलझिरी, खूमी, गाेराखाल, चंद्रखाल, रुटूबर्रा, गांगराढाना और बासंपानी ) में बसे हजारों कोरकू और गोंड आदिवासी पर विस्‍थापन और अजीविका का संकट मंडरा रहा है। यहां पर वन विभाग द्वारा डॉ. राजेंद्र प्रसाद अभयारण्‍य बनाया जाना प्रस्‍तावित है। 

गोराखाल गांव में अभ्यारण्य के विरोध में आयोजित ग्राम सभा

2011 की जनगणना के अनुसार, 4-5 हज़ार आबादी वाले इन गांवों में 1000 से अधिक परिवार रहते हैं। यहां साक्षरता दर 40-50 प्रतिशत है। इन गांवों के अधिकतर आदिवासियों को वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत ज़मीन के पट्टे मिले हुए हैं। वे महुआ, तेंदुपत्ता, जड़ी-बूटियां आदि पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर हैं। यदि यह इलाका अभयारण्‍य घोषित होता है तो इन संसाधनों तक पहुंच कानूनी रूप से बंद हो सकती है। 

ज़िंदगी बचाओ अभियान संगठन से जुड़े गोराखाल गांव के निवासी जगदीश देवड़ा (उम्र 45 वर्ष), जिन्‍हें 3 हेक्‍टयर वनभूमि का पट्टा मिला हुआ है, कहते हैं, 

” महुआ से हमें सालाना 20-30 हज़ार रुपए की कमाई होती है। जंगल बंद हुआ घर कैसे चलेगा, बच्चे कैसे पढ़ेंगे?” 

हालांकि वन विभाग के अधिकारियों का दावा है कि ग्राम सभा की अनुमति लेकर अभ्यारण्य का काम आगे बढ़ रहा है। जब भी गांवों को विस्‍थापित किया जाएगा, ताे नियमों के अनुसार किया जाएगा। उन्‍हें मुआवजा और ज़मीन दी जाएगी। लेकिन दोनों परियोजना से प्रभावित ग्रामीणों द्वारा पेसा एक्‍ट, वन अधिकार अधि‍नियम जैसे कानूनों के उल्‍लंघन के आरोप लगाए जा रहे हैं। 

रहटगांव वन परिक्षेत्र के 16 वन कक्षों में प्रस्‍तावित अभयारण्‍य से प्रभावित होने वाले आठ गांवों में एक गोराखाल वनग्राम के निवासी सुंदरलाल बताते है, ”अधिकारियों की मौजूदगी में 15 अगस्‍त 2025 को ग्राम सभा का आयोजित हुई थी। इस बैठक में सभी आठ गांवों की ग्राम सभा सदस्‍यों ने अभयारण्‍य के प्रस्‍ताव को खारिज किया है।” वे आगे कहते है, ”ग्राम सभा की मंजूरी दबाव बना कर ली जाती है।”  

15 दिन का अल्‍टीमेट्म और प्रशासनि‍क प्रतिक्रिया 

जनजातीय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) संगठन जो 2013 में बना।  इस संघर्ष में आदिवासियों का साथ दे रहा है। जिले में संगठन के कार्यकर्ता हर गांव पहुंचकर ग्रामीणों को संगठित कर रहे हैं। जयस के हरदा जिला अध्‍यक्ष, सत्‍यनारायण सुचार कहते हैं,

”सरकार एनटीसीए की चेतावनी छिपा रही है। ग्राम सभाओं की सहमति नहीं ली गई और मुआवजा तय नहीं है। हम चुप नहीं बैठेंगे।” 

बोथी गांव में आयोजित जनसभा

जयस संगठन ने प्रभावित ग्रामीणों के लिए उचित मुआवज़े और आजीविका प्रशिक्षण की मांग की है। साथ ही उनकी मांग है कि अभयारण्‍य के लिए वैकल्पिक साइट की तलाश की जाए।  

जयस के संरक्षक धनसिंह भलावी कहते हैं, ”2014 में मोरंड-गंजाल परियोजना के खिलाफ आदिवासियों द्वारा लाई गई जनहित याचिका जबलपुर हाईकोर्ट में खारिज हुई, लेकिन पुनर्वास नीति का पालन नहीं हो रहा है। दिसंबर 2023 में मोरघाट में अधिकारियों को खाली हाथ लौटना पड़ा था। 15 दिनों का अल्‍टीमेटम दिया हैं, नहीं माने तो भोपाल में बड़ा आंदोलन होगा।” 

हरदा जिले के रहटगांव में शुक्रवार ( 12 सितंबर 2025) को हरदा, बैतूल और नर्मदापुरम जिलों के आदिवासी हजारों की तादाद में पहुंचे और विरोध प्रदर्शन किया। यह विरोध प्रदर्शन रहटगांव में प्रस्‍तावित डॉ. राजेंद्र प्रसाद अभयारण्‍य, मोरंड-गंजाल बांध परियोजना के विरोध में था। आदिवासियों का यह आंदोलन जयस और अन्‍य संगठनों के नेतृत्‍व हुआ। इस दौरान आदिवासियों ने तेजाजी चौक पर जनसभा की। बाद में कलेक्‍ट्रेट तक रैली निकाली और करीब डेढ़ घंटे तक कलेक्‍ट्रेट गेट पर धरना दिया गया। आदिवासियों ने राज्‍यपाल और मुख्‍यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। 

इधर, हरदा के अपर कलेक्‍टर पुरुषोत्तम कुमार से बात करने पर उन्‍होंने कहा,

”ज्ञापन मिला है, जिसे संबंधित विभागों को भेजा दिया गया है। बांध से प्रभावित गांवों में पुनर्वास नीति के तहत घर, जमीन और मुआवजा दिया जाएगा।” 

राज्‍य के तीन जिलों ( हरदा, नर्मदापुरम और बैतूल) के कोरकू और गोंड आदिवासियों के जीवन में अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे है। ऐसा मोरंड-गंजाल बांध और डॉ. राजेंद्र प्रसाद अभयारण्‍य परियोजनाओं की वजह से हो रहा है। इन दोनों परियोजनाओं से आदिवासियों के अधिका‍रों पर संकट के बादल हैं। ग्रामीणों का संघर्ष जारी है, प्रशासन के आश्वासन से वे आश्वस्त नहीं है। 

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  • Based in Bhopal, this independent rural journalist traverses India, immersing himself in tribal and rural communities. His reporting spans the intersections of health, climate, agriculture, and gender in rural India, offering authentic perspectives on pressing issues affecting these often-overlooked regions.

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