...
Skip to content

मध्य प्रदेश में पेड़ काटने की अनुमति के लिए हाई लेवल कमेटी का गठन

Image

REPORTED BY

Follow our coverage on Google News

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पेड़ो की कटाई को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है। एनजीटी (National Green Tribunal) के एक आदेश पर सरकार ने एक हाई लेवल सेंट्रली इम्पावर्ड कमेटी का गठन किया है। अब प्रदेश में 25 से ज्यादा पेड़ काटने के लिए इस कमेटी की अनुमति लेनी पड़ेगी। 

कमेटी के अध्यक्ष नगरीय विकास एवं आवास विभाग के अपर मुख्य सचिव होंगे। यह कमेटी 9 सदस्यों की है जिसमें नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग, उद्यानिकी विभाग भोपाल, सचिव वन विभाग, मध्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित संबंधित नगरीय निकाय के प्रमुख होंगे। यह समिति प्रत्येक 3 माह में एक बार या फिर किसी भी तरह का प्रकरण आने पर बैठक करेगी। कमेटी द्वारा मध्य प्रदेश वृक्षों का परिरक्षण (नगरीय क्षेत्र) अधिनियम 2001 के अंतर्गत आने वाले मामले की जांच करने के बाद अनुमति दी जाएगी। सरल शब्दों में समझें तो किसी भी सरकारी या गैर सरकारी कार्यों के लिए 25 ज्यादा पेड़ तब तक नहीं काटे जा सकेंगे जब तक इस कमेटी की अनुमति नहीं होगी।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल शहर के नीलबड़ के पास स्थित बरखेड़ा में एक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का निर्माण होना था। कॉम्प्लेक्स में एक इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम, एक फुटबॉल ग्राउंड सहित दो हॉकी ग्राउंड बनना है। साथ ही इसकी कनेक्टिविटी के लिए एक सड़क का निर्माण होना है। इसके लिए 700 पेड़ काटे जाने थे। मगर इसी साल एनजीटी में दायर एक याचिका में इन पेड़ों को काटने की अनुमति देने पर सवाल उठाए गए।

याचिकाकर्ता नितिन सक्सेना ने ग्राउंड रिपोर्ट से इस बारे में बात करते हुए कहा कि इस मामले में जो अनुमति दी गई है उसमें भोपाल नगर निगम के कमिश्नर का अनुमोदन ही नहीं है। साथ ही उन्होंने कहा कि निगम के कमिश्नर ट्री ऑफिसर की शक्ति अपने कनिष्ठ अधिकारियों को प्रत्यर्पित कर रहे हैं जो 2001 के कानून के अनुसार गलत है।

सक्सेना कहते हैं,

“मध्य प्रदेश वृक्षों का परिरक्षण (नगरीय क्षेत्र) अधिनियम, 2001 में स्पष्ट किया गया है कि नगर निगम वाले क्षेत्र में ट्री ऑफिसर नगर निगम कमिश्नर ही होगा…मगर बीते 10 सालों में भोपाल नगर निगम में जो भी कमिश्नर रहे हैं उन्होंने अपनी शक्ति (ट्री अफसर की) अन्य अधिकारों की तरह प्रत्योजित कर दीं।”

मध्य प्रदेश वृक्षों का परिरक्षण (नगरीय क्षेत्र) अधिनियम 2001 की धारा 4 के अनुसार – ‘राज्य सरकार प्रत्येक शहरी क्षेत्र के लिए राजपत्रित वन अधिकारी, आयुक्त, नगर निगम या मुख्य नगरपालिका अधिकारी से नीचे रैंक के एक या अधिक वन अधिकारियों को इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए “वृक्ष अधिकारी” के रूप में नियुक्त कर सकती है।’ 

मगर इसकी धारा 5 में कहा गया है कि ‘राज्य सरकार समय-समय पर वन विभाग या स्थानीय प्राधिकरण के ऐसे अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों को नियुक्त कर सकती है जिन्हें आवश्यक समझा जाए जो वृक्ष अधिकारी के अधीनस्थ होंगे।’ यानी प्रदेश के नगर निगम और नगर पालिका दोनों में ही आयुक्त और सीएमओ के अतिरिक्त किसी को भी वृक्ष अधिकारी (tree officer) बनाने की शक्ति केवल प्रदेश सरकार के पास ही है।

ऐसे में सक्सेना ने भोपाल में ट्री ऑफिसर की नियुक्ति और इस प्रोजेक्ट में पेड़ काटने की अनुमति दोनों पर सवाल उठाए थे।

जियो टैगिंग का था आदेश

इस मामले में 23 मई 2025 को निर्देश देते हुए एनजीटी ने उपरोक्त सेंट्रली इम्पावर्ड कमेटी बनाने के लिए कहा था। साथ ही आदेश के अनुसार, ‘राज्य में शहरवार और जिलेवार वृक्ष गणना होनी चाहिए जिसकी निगरानी प्रधान मुख्य वन संरक्षक या पीसीसीएफ द्वारा नामित अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए।’

ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में हर पेड़ की जियो टैगिंग करने का निर्देश भी दिया था। आदेश के अनुसार हर पेड़ की लोकेशन, नंबर और पेड़ की प्रजाति के बारे में एक रिपोर्ट भी तैयार की जानी थी जिसे प्रदेश के प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ़ फारेस्ट (PCCF) द्वारा प्रकाशित करना था। 

एनजीटी ने नितिन सक्सेना की याचिका पर आदेश देते हुए दो अलग-अलग तरह की कमेटी बनाने को कहा था। पहली फैक्ट फाइंडिंग ज्वाइंट कमेटी होगी जो इस मामले में एक विस्तृत रिपोर्ट बनाएगी। इसमें पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अपर मुख्य वन संरक्षक कार्यालय, मप्र से एक-एक प्रतिनिधि होंगे।

वहीं एक अलग से सीईसी कमेटी बनाने का निर्देश है जो न सिर्फ पेड़ काटने के विकल्पों को तालाशेगी बल्कि यह तय करेगी कि जहां पेड़ कट रहे हैं वहीं 10 से 100 गुना तक क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण किया जाए।

मध्य प्रदेश ऐसी कमेटी वाला दूसरा राज्य

मध्य प्रदेश इस तरह की कमेटी वाला देश का दूसरा राज्य होगा। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली में इस तरह की कमेटी का गठन किया गया था। दिल्ली में 50 से अधिक पेड़ काटने के लिए इस कमेटी की अनुमति लेनी पड़ती है। बीते माह ही इस कमेटी द्वारा दिल्ली के कैंटोनमेंट एरिया में 1473 पेड़ काटने के मामले में दखल दिया था जिसके बाद सेना ने निर्माण कार्य के लिए वैकल्पिक जगह खोज ली थी। हालांकि इस कमेटी द्वारा ही हाल ही में बारापुला फेज 3 फ्लाईओवर के निर्माण से संबंधित एक आवेदन को मंज़ूरी दी गई है जिसमें 333 पेड़ काटे जाने हैं और 84 पेड़ों को ट्रांसप्लांट करना है। 

मगर मध्य प्रदेश में इस तरह की कमेटी का गठन एक सकारात्मक सन्देश है। अब प्रदेश में ऐसे मामलों के लिए एक जगह सुनवाई हो सकेगी। हालांकि प्रदेश सरकार के आदेश में इस बात का ज़िक्र नहीं है कि इस समिति के पास किसी भी परियोजना को रोकने की कितनी शक्ति होगी? फिर भी यह समिति ऐसे प्रोजेक्ट्स के लिए एक ‘चेक-पॉइंट’ ज़रूर होगी। साथ ही यह एक मौका है जहां प्रदेश सरकार को संबंधित आदेश की अन्य बातों जैसे पेड़ों की जियो टैगिंग करके उसकी रिपोर्ट भी सार्वजनिक की जानी चाहिए।

भारत में स्वतंत्र पर्यावरण पत्रकारिता को जारी रखने के लिए ग्राउंड रिपोर्ट को आर्थिक सहयोग करें।

यह भी पढ़ें

दस वर्षों से मूंडला बांध बंजर बना रहा किसानों के खेत, न मुआवज़ा, न सुनवाई

बरगी बांध: “सरकार के पास प्लांट के लिए पानी है किसानों के लिए नहीं”

किंदरई: नए पॉवर प्लांट के बाद चुटका में बढ़ता डर और असुरक्षा

सरदार सरोवर के बैकवॉटर से बाढ़ में डूबे मध्य प्रदेश के 193 गाँवों का ज़िम्मेदार कौन?


ग्राउंड रिपोर्ट में हम कवर करते हैं पर्यावरण से जुड़े ऐसे मुद्दों को जो आम तौर पर नज़रअंदाज़ कर दिए जाते हैं।

पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुकट्विटर,और इंस्टाग्राम पर फॉलो करें। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें। रियल-टाइम अपडेट के लिए हमारी वॉट्सएप कम्युनिटी से जुड़ें; यूट्यूब  पर हमारी वीडियो रिपोर्ट देखें।


आपका समर्थन अनदेखी की गई आवाज़ों को बुलंद करता है– इस आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए आपका धन्यवाद।

Author

  • Sayali Parate is a Madhya Pradesh-based freelance journalist who covers environment and rural issues. She introduces herself as a solo traveler.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins