अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस (6 सितंबर) के अवसर पर रीवा जिले के सिरमौर और सेमरिया क्षेत्र के चार गांवों में गिद्ध संरक्षण को लेकर ग्राम-स्तरीय जागरूकता अभियान चलाया गया।
यह अभियान ‘द लास्ट वल्चर’ संस्था ने वन विभाग के सहयोग से आयोजित किया। संस्था के नितीश अग्रवाल और स्रिति पांडेय के नेतृत्व में चचाई, केवटी, पुरवा और बारीडीह गांवों में अलग-अलग सत्र हुए। इसमें स्थानीय ग्रामीणों को बताया गया कि गिद्ध पारिस्थितिकी तंत्र के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं और उनका घटता हुआ अस्तित्व पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य पर किस तरह असर डाल सकता है।

कार्यक्रमों में विशेषज्ञों ने ग्रामीणों को पशुओं में डाइक्लोफेनाक जैसी हानिकारक दवाओं के उपयोग से होने वाले खतरे के बारे में जानकारी दी। यह दवा गिद्धों के लिए घातक मानी जाती है। इसके स्थान पर मेलोक्सिकैम जैसे सुरक्षित विकल्प अपनाने की सलाह दी गई। साथ ही ग्रामीणों को यह भी प्रोत्साहित किया गया कि वे गिद्धों की नियमित निगरानी करें और उनके दिखने पर वन विभाग को सूचना दें।
अभियान के दौरान स्थानीय वन अमले की भी सक्रिय भूमिका रही। सेमरिया के फॉरेस्ट गार्ड कमलेन्द्र सिंह और सिरमौर के फॉरेस्ट गार्ड दीपक दुबे ने ग्रामीणों से सीधे संवाद किया। वहीं, रीवा के मुख्य वन संरक्षक (सीसीएफ) राजेश कुमार राय तथा दोनों रेंज अधिकारियों, संजय सिंह परिहार और अरुण शुक्ला, ने भी सहयोग प्रदान किया।
गौरतलब है कि गिद्धों की घटती संख्या को लेकर वैज्ञानिक लंबे समय से चिंता जता रहे हैं। भारत में कभी बड़ी संख्या में पाए जाने वाले गिद्ध अब गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि इनके संरक्षण के लिए केवल एकमुश्त अभियान पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि स्थानीय समुदायों की सतत भागीदारी ही गिद्धों को बचाने की दिशा में कारगर साबित हो सकती है।
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