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राजगढ़: टाईप वन डायबिटीज़ से बच्चों की जंग

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राजगढ़ के खैरासी गांव का ब्रजमोहन चार वर्षों से इस बीमारी से जूझ रहा है। उसे दिन में चार बार इंसुलिन लेना पड़ता है। पहले उसके माता-पिता भोपाल से दवा और इंजेक्शन मंगवाते थे, जिस पर हर महीने 5 से 7 हजार रुपये का खर्च होता था।

अब अस्पताल से निःशुल्क किट मिलने लगी है, जिससे परिवार को राहत मिली है। उसकी मां धापू बाई बताती हैं कि बेटे की हालत चार साल पहले इतनी बिगड़ी थी कि उसे भोपाल रेफर करना पड़ा। सरकारी अस्पताल से आराम न मिलने पर उन्होंने आयुष्मान कार्ड से निजी अस्पताल में इलाज कराया, तभी उन्हें शुगर का पता चला। अब अस्पताल से किट मिल रही है, लेकिन उनका कहना है कि बच्चे की दूसरी समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता और उन्हें अलग से पर्चा बनवाकर दूसरे डॉक्टर को दिखाना पड़ता है। धापू बाई का कहना है कि बीमारी के चलते बच्चा छोटी-छोटी बातों पर नर्वस हो जाता है और उसे दवा के साथ समझाइश की भी जरूरत होती है।

डॉ. चंदा दांगी कहती हैं कि हर मंगलवार को बच्चों का चेकअप करने के साथ उनसे बातचीत भी की जाती है ताकि उनका डर कम किया जा सके। ब्रजमोहन के माता-पिता किसान हैं और बकरी पालन से घर चलाते हैं। उन्होंने इंसुलिन को सुरक्षित रखने के लिए घर में फ्रिज भी लिया है। ब्रजमोहन इस समय कक्षा 11वीं में पढ़ रहा है और बायोलॉजी विषय चुना है। उसके स्कूल की प्राचार्य सीमा उपाध्याय बताती हैं कि वह बेहद प्यारा और मासूम बच्चा है। उसने सपना देखा है कि आगे चलकर डॉक्टर बनेगा और मरीजों का इलाज करेगा।

मध्य प्रदेश सरकार की पहल बन रही है बड़ी मदद

मध्यप्रदेश सरकार स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से 0 से 26 वर्ष तक के टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित बच्चों और युवाओं को निःशुल्क उपचार और इंसुलिन किट उपलब्ध करा रही है। राजगढ़ जिले में यह कार्यक्रम एनसीडी कार्यक्रम के अंतर्गत चलाया जा रहा है, जहां बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर चंदा दांगी संभाल रही हैं।

सरकार और एक फाउंडेशन के सहयोग से बच्चों को निःशुल्क इंसुलिन, इंजेक्शन, सीरिंज और ग्लूकोमीटर दिया जा रहा है। हर मंगलवार को राजगढ़ अस्पताल में टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित बच्चों को बुलाकर उनका स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है और जरूरत के अनुसार किट दी जाती है। फिलहाल राजगढ़ में 28 बच्चे रजिस्टर्ड हैं, जिनमें 18 की उम्र 0 से 17 वर्ष है। सभी को अस्पताल से ही इंसुलिन और अन्य जरूरी सामग्री दी जा रही है।

हालांकि इस पहल से बच्चों को राहत मिल रही है, लेकिन कई खामियां भी सामने आ रही हैं। राजगढ़ में ज्यादातर बच्चों को तब ही बीमारी का पता चलता है जब वे गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचते हैं। जबकि कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य अमले को गांव-गांव जाकर बच्चों की स्क्रीनिंग करनी चाहिए, लेकिन यह जमीनी स्तर पर नजर नहीं आता। जिला अस्पताल की सीएमएचओ डॉ. शोभा पटेल ने कहा कि यह जानकारी उन्हें पहली बार मिली है और वे इस पर विशेष ध्यान देंगी। उन्होंने बताया कि उनकी हाल ही में ही पोस्टिंग हुई है।

फिलहाल योजना का लाभ उन्हीं बच्चों को मिल रहा है जिन्हें पहले से बीमारी का पता है। लेकिन जिन परिवारों को न बीमारी की जानकारी है और न ही योजना का, वे अब भी वंचित हैं। ऐसे में जरूरी है कि स्वास्थ्य अमला गांव-गांव जाकर बच्चों की स्क्रीनिंग करे, ताकि गंभीर स्थिति आने से पहले ही मरीजों को चिन्हित कर उन्हें योजना का लाभ दिलाया जा सके।

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  • Abdul Wasim Ansari is an independent journalist based in Rajgarh, Madhya Pradesh, bringing nearly a decade of experience in journalism since 2014. His work focuses on reporting from the grassroots level in the region.

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