राजस्थान के झालावाड़ जिले में सरकारी स्कूल भवन गिरने से हुई दुर्घटना के बाद मध्यप्रदेश की सरकारी स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। ग्राउंड रिपोर्ट की जांच में सामने आया है कि प्रदेश के राजगढ़ जिले में स्थित कई सरकारी स्कूल भवन जर्जर अवस्था में हैं और किसी भी समय बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकते हैं।
ग्रामीण स्कूलों की दयनीय दशा
टांडीकला
राजगढ़ ब्लॉक के टांडिकला गांव स्थित शासकीय माध्यमिक विद्यालय की स्थिति बेहद गंभीर है। स्कूल की छत जर्जर हालत में है और बारिश के दिनों में कक्षाओं में पानी भर जाता है। गांव के रामप्रसाद वर्मा, जो पेशे से मिस्त्री हैं और जिनके तीन बच्चे इसी स्कूल से पढ़े हैं, बताते हैं, “मैं पिछले पांच साल से स्कूल की मरम्मत कर रहा हूं। छत पूरी तरह जर्जर है और कभी भी गिर सकती है। जब मैं काम के लिए छत पर चढ़ता हूं तो वह हिलती है।”

उन्होंने पिछले वर्ष स्कूल प्रबंधन से निवेदन किया था कि बारिश के दिनों में बच्चों को इस छत के नीचे न बिठाया जाए क्योंकि इसमें गुणवत्ताहीन सामग्री का उपयोग हुआ है।
स्कूल में कक्षा छह की छात्रा के पिता जितेंद्र की चिंता और भी गहरी है। वे कहते हैं, “मेरी बेटी घर आकर कहती है कि स्कूल में पानी चू रहा है इसलिए हमें बाहर बैठना पड़ता है। मैंने स्कूल प्रबंधन से कहा है कि इसकी मरम्मत करवाएं, कहीं राजस्थान जैसा हादसा यहां न हो जाए। मेरी एक ही बेटी है, इसलिए ज्यादा डर लगता है।”
स्कूल प्रबंधन के अनुसार उन्होंने 18 अगस्त 2022 में ही लिखित शिकायत भेजी थी। इसमें उल्लेख किया गया था कि ‘शाला के लिए बनाए गए भवन की छत से जगह जगह से पानी का रिसाव होता है, दीवारों में जगह जगह दरारें पड़ गई है,फर्श के टाइल्स कई जगह से जमीन में धंस गए है,और कई जगह से उखड़ भी गए है। स्कूल के जीर्णोद्धार के लिए 3 लाख रुपए की राशि उपलब्ध कराई जाए।’ लेकिन अब तक न तो पैसा मिला और न ही कोई अधिकारी स्कूल देखने आया। स्कूल फिल्हाल अन्य कार्य के लिए प्राप्त होने वाली राशि में से ही पिछले 3 से 4 वर्षों से रिपेयरिंग कार्य करा रहा है ,लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।
जहरीले जीव-जंतुओं से भरा स्कूल परिसर
प्राथमिक स्कूल मोतीपुरा सौंधिया

मोतीपुरा सौंधिया गांव का शासकीय प्राथमिक विद्यालय तालाब के एकदम पास स्थित है। यहां की शिक्षिका इंदिरा उपाध्याय का कहना है, “मैंने बच्चों को मना किया है कि वे मुझसे पहले स्कूल न आएं। पहले मैं स्कूल का निरीक्षण करती हूं कि कहीं कोई जहरीला जानवर तो कक्षा में नहीं है, तब बच्चों को अंदर आने देती हूं।”
स्कूल की एक छात्रा बताती है, “बच्चे घर से तभी आते हैं जब टीचर स्कूल आ जाती है क्योंकि बारिश में कक्षा में जहरीले जीव-जंतु आ जाते हैं, जिन्हें हमने भी देखा है।”
शहरी इलाकों में भी गंभीर स्थिति
बालमंदिर,प्राथमिक स्कूल
राजगढ़ जिला मुख्यालय के मध्य में स्थित शासकीय प्राथमिक विद्यालय में 6 से 10 वर्ष के बच्चे पढ़ते हैं। बारिश के दिनों में स्कूल की छत कच्चे मकान की तरह टपकती है। राजस्थान की घटना के बाद इस स्कूल को तुरंत सीएम राइस माध्यमिक विद्यालय की बिल्डिंग में शिफ्ट कर दिया गया।
गांधी शासकीय माध्यमिक विद्यालय

पुराने बस स्टैंड पर संचालित गांधी शासकीय माध्यमिक विद्यालय की स्थिति भी चिंताजनक है। यहां नई बनी बिल्डिंग की छत पर प्लास्टिक की पन्नी बिछाकर काम चलाना पड़ता है। राजस्थान की घटना के बाद अधिकारियों के निरीक्षण में दीवार को कमजोर पाया गया और बच्चों को कक्षा के बजाय दालान में बिठाने के निर्देश दिए गए।
बेंच पर बैठने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार
प्रतापगंज प्राथमिक विद्यालय
प्रतापगंज स्थित शासकीय प्राथमिक विद्यालय की स्थिति और भी दयनीय है। स्कूल प्रभारी श्रृष्टि पांडे बताती हैं, “नई बिल्डिंग बारिश में नल की तरह बहती है। बच्चों के बैठने के लिए पर्याप्त बेंच नहीं हैं। हमने जन सहयोग से कुछ बेंच लगवाए हैं जिस पर एक दिन लड़कों को और एक दिन लड़कियों को बिठाते हैं ताकि असमानता न हो।”

निजी कंपनी द्वारा निर्मित शौचालय अधूरे छोड़े गए हैं और उन पर ताले लगे हैं क्योंकि पानी की टंकियां नहीं लगाई गईं।
श्रृष्टि पांडे आगे कहती हैं, “50 बच्चों तक के स्कूल को 10 हजार, 100 तक के लिए 25 हजार और उससे अधिक के लिए 50 हजार रुपए मेंटेनेंस के लिए मिलते हैं, लेकिन इसमें सभी जरूरतें पूरी करनी होती हैं। शिक्षकों को पढ़ाई के अलावा ऑनलाइन-ऑफलाइन काम भी दिए जाते हैं।”
तकनीकी विशेषज्ञ की राय

डीपीसी कार्यालय के इंजीनियर नीरज व्यास ने बताया कि जिले के 524 शासकीय प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालय असुरक्षित या मरम्मत योग्य हैं। पिछले वर्ष यह संख्या 453 थी।
“जिले के सभी प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालय भवन 20 साल से अधिक पुराने हैं। ये 2003-04 और 2004-05 में बनाए गए थे। इसके बाद कोई नया भवन नहीं आया। अब इन्हें रूटीन मेंटेनेंस की जरूरत है जो नहीं हो पाता,” व्यास कहते हैं।
उन्होंने बताया कि मरम्मत के लिए प्रस्ताव भेजने के बाद राशि आने में लगभग एक साल लगता है, लेकिन तब तक समस्या और भी बढ़ जाती है।
सरकारी प्राथमिकताओं का विरोधाभास
दिलचस्प बात यह है कि जिन हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूलों को सीएम राइज (सांदीपनी) और पीएम श्री विद्यालय का दर्जा मिला है, उनके लिए नए भवन स्वीकृत किए गए हैं और बेहतर व्यवस्था भी की गई है। लेकिन प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों की पुरानी इमारतों की हालत जस की तस बनी हुई है।
इंजीनियर व्यास के अनुसार जिले में कुल 2104 स्कूल हैं जिनमें 1888 प्राथमिक व माध्यमिक शालाएं हैं। 12 भवन ऐसे चिह्नित किए गए हैं जो पूरी तरह ध्वस्त करने योग्य हैं।
निष्कर्ष
मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले की स्थिति पूरे प्रदेश की सरकारी प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था का आईना है। जहां एक तरफ सरकार डिजिटल इंडिया और स्किल डेवलपमेंट की बात कर रही है, वहीं बुनियादी शिक्षा की नींव ही कमजोर पड़ती जा रही है। इन जर्जर भवनों में पढ़ने वाले बच्चे मुख्यतः गरीब और वंचित तबके से आते हैं जिनके पास प्राइवेट स्कूल का विकल्प नहीं है।
राजस्थान की दुर्घटना एक चेतावनी है। यदि तत्काल व्यापक स्तर पर स्कूली भवनों की मरम्मत और नवीनीकरण नहीं किया गया तो मध्यप्रदेश में भी इसी तरह की त्रासदी हो सकती है। सरकार को प्राथमिकताओं का पुनर्निर्धारण करते हुए प्राथमिक शिक्षा के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाना होगा।
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