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वन संरक्षण और आजीविका के सवालों के बीच झूलते मध्यप्रदेश के वनग्राम

वन संरक्षण और आजीविका के सवालों के बीच झूलते मध्यप्रदेश के वनग्राम
वन संरक्षण और आजीविका के सवालों के बीच झूलते मध्यप्रदेश के वनग्राम

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मध्यप्रदेश के सीहोर जिले की बुधनी तहसील से 24 किलोमीटर दूर स्थित ‘यार नगर’ एक वनग्राम है। चारों ओर जंगल से घिरे इस गांव की महज़ 250 जनसंख्या है। स्कूल और पंचायत भवन को छोड़ दें तो सारे घर मिट्टी के बने हैं, जिनपर कबेलु और पूस के छप्पर हैं। यहां रहने वाले लोग जंगल से मिलने वाले गैर टिंबर वनोत्पाद और फॉरेस्ट विभाग से मिले ज़मीन के पट्टों पर खेती कर अपना जीवन यापन करते हैं। वनग्राम होने की वजह से यहां खेती करने में भी किसानों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कम आय और जंगली जानवरों के हमले का खतरा वनग्रामों में रहने वाले लोगों के जीवन को एक राजस्व ग्राम में रहने वाले व्यक्ति की तुलना में अधिक कठिन बनाता है।

आप सिंह बारडे, 45 वर्षीय, का परिवार यार नगर गांव में कई पीड़ियों से रह रहा है। धान की कटाई में व्यस्त आप सिंह बताते हैं कि वनग्राम होने की वजह से यहां खेती करने में कई परेशानियां उन्हें झेलनी पड़ती है।

Man standing on his agriculture field in Madhya Pradesh Budhini.
आप सिंह बारडे का खेत जिसमें धान की कटाई चल रही है, स्थान- यारनगर, बुधनी

“हम मन से खेती नहीं कर पाते। अगर कोई मशीन चलानी है, बोर वेल लगवाना है तो वन विभाग से पहले इजाज़त लेकर आना पड़ता है, यहां तक की ज़मीन पर हमें कर्ज़ भी नहीं मिलता”।

यह समस्या आप सिंह बारडे या केवल यार नगर गांव तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि वनग्रामों में रहने वाले कई आदिवासियों की है।

वन ग्राम क्या होते हैं?

वन ग्राम ऐसे गांव हैं जिन्हें ब्रिटिश टाईम में विकसित किया गया था। क्योंकि जंगलों के अंदर सड़क बनाने, पेड़ों की कटाई-छटाई, फॉरेस्ट गार्ड नाका, रेस्ट हाउस बनाने, पानी-मिट्टी के संरक्षण ओर वन प्रबंधन के काम करने के लिए सस्ते मज़दूरों की ज़रुरत थी। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्य वन संरक्षक सुदेश वाघमारे के अनुसार वनग्रामों में

“अट्रैक्शन के तौर पर हर व्यक्ति को 3 से 5 एकड़ वन भूमि मुफ्त में दी गई, जहां वो खेती कर सकते थे इसके साथ ही उन्हें दैनिक मज़दूरी का भुगतान किया जाता था।”

Farmer in his agriculture field Madhya Pradesh India
वन ग्रामों में किसानों के पास 3-5 एकड़ ज़मीन होती है जिसपर किसान अपने ज़रुरत योग्य अनाज उगा पाता है, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट, स्थान बुधनी

हालांकि वन ग्राम अधिकारों के लिए लंबे समय से कानूनी लड़ाई लड़ रहे अधिवक्ता अनिल गर्ग के मुताबिक जंगलों में लोग वन विभाग के आने और वन प्रबंधन के लिए बसाए गए लोगों के पहले से निवासरत हैं। ये जंगल वन्य जीवों के भी नैसर्गिक पर्यावास रहे हैं और जैव विविधतता के तो खैर सबसे बड़े स्रोत रहे ही हैं। ऐसे में जिन्हें उपनिवेशकाल के दौरान आरक्षित या संरक्षित वनों के दायरे में शामिल कर लिया गया और जहां मूल रूप से आदिवासी समुदाय खेती करते आ रहे थे, उन्हें आजादी के बाद भी वन विभाग के नियंत्रण की कृषि भूमि नहीं माना गया, बल्कि उसे वन भूमि ही माना गया। यह एक ऐतिहासिक भूल थी जो अब तक चली आ रही है।

राजस्व और वन ग्राम के बीच अंतर इनके विकास के लिए प्राप्त होने वाले धन से भी समझा जा सकता है। राजस्व ग्राम पंचायती राज के तहत स्थापित हुई ग्राम पंचायत को कहा जा सकता है जो व्यापार कर, भूमि राजस्व, स्टाम्प और पंजीकरण शुल्क, संपत्ति कर और सेवा कर के माध्यम से अपना खुद का राजस्व तो कमाती ही है, इसके साथ इन्हें 80 फीसदी फंड केंद्र सरकार और 15 फीसदी फंड राज्य सरकार से अनुदान के रुप में प्राप्त होता है। इन गांवों में किसी भी तरह की वाणिज्यिक गतिविधी या विकास कार्य पर प्रतिबंध नहीं होता।

वहीं वन ग्राम जंगलों की सीमा में या उसके पास बसे गांव को कह सकते हैं। यहां विकास की ज़िम्मेदारी वन विभाग की ही होती है। वनग्राम में भारत सरकार का पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और जनजातीय मामलों का मंत्रालय प्रत्येक वन प्रभाग में पंजीकृत वन विकास एजेंसियों (एफडीए) को सीधे फंड प्रदान करता है। सुदेश वाघमारे के अनुसार यहां केवल वही विकास कार्य किये जा सकते हैं जिनसे जंगलों को नुकसान न हो। ऐसे में इन गांवों में रहने वाले लोग कई विकास योजनाओं का हिस्सा नहीं बन पाते।

मूलभूत विकास और ज़मीन पर हक़ की लड़ाई

ब्रिटिश हुकुमत से लेकर अब तक वनग्राम में रहने वाले लोग जल, जंगल और ज़मीन पर अधिकार के लिए संघर्षरत हैं। आज़ादी के कई वर्ष बीत जाने के बाद भी वनग्रामों में बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत ज़रुरतों का अभाव है। इसके साथ ही कई सरकारी योजनाओं का लाभ भी यहां के लोगों तक नहीं पहुंचता। आप सिंह बारडे के भाई जो एक शिक्षक हैं, गांव में सड़क बनने की बात को याद करते हुए कहते हैं कि,

“बहुत पापड़ बेलने पड़े तब जाकर गांव को दो साल पहले यह सड़क नसीब हुई है। अगर यह राजस्व गांव होता तो शायद इतनी मुश्किल नहीं होती।”

वनग्रामों में पंचायत (वन समीतियां) होती हैं लेकिन वन विभाग की अनुमति के बिना यहां कोई काम नहीं किया जा सकता। अनिल गर्ग कहते हैं कि,

“अधिकांशत: यह होता है कि वनग्रामों में पंचायत सरकारी योजनाओं को लागू ही नहीं करवा पाती क्योंकि वन विभाग के अधिकारी अड़ंगेबाज़ी करते हैं।”

Kuchcha House in Yar Nagar Forest Village of Madhya Pradesh
यारनगर गांव में ज्यादातर घर आज भी कच्चे ही हैं, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

वनग्रामों में मुख्य समस्या ज़मीन पर अधिकार को लेकर है। यहां किसानों को वन विभाग की ओर से वन अधिकार पट्टा जारी किया जाता है। इस ज़मीन पर किसान खेती तो कर सकता है लेकिन इसे बेचने का अधिकार उनके पास नहीं होता न ही वो इसपर बैंक से कर्ज़ ले सकते हैं। आप सिंह के अनुसार उन्हें किसान क्रेडिट कार्ड के तहत फसल पर कर्ज तो मिलता है, लेकिन बैंक वन ग्राम के पट्टे पर कोई अन्य लोन नहीं देती। ऐसे में बच्चों के शादी ब्याह या कोई बड़ा काम करने के लिए कर्ज़ की आवश्यक्ता हो तो वो इसे गिरवी नहीं रख सकते, न ही वो इसे बेचकर कहीं और बसने का सोच सकते हैं।

आप सिंह के छोटे भाई कैलाश बार्डे का डर विस्थापन को लेकर है वो कहते हैं “हमें कई बार खबर मिलती है कि सरकार जंगल का विस्तार करने वाली है और हमें यहां से हटा दिया जाएगा।” कैलाश को डर है कि जिस गांव में उन्होंने अपना बचपन और जवानी खपाई है उसे यूं ही उनसे छीन लिया जाएगा क्योंक उनके पास ज़मीन का मालिकाना हक नहीं है।

वन ग्रामों को राजस्व ग्राम बनाने की मांग

इन्हीं समस्याओं को देखते हुए लगातार वनग्राम में रहने वाले लोग वनग्रामों को राजस्व ग्राम में तब्दील करने की मांग कर रहे हैं। राजस्व विभाग के अंतर्गत आने के बाद यहां रहने वाले लोगों को वन अधिकार पट्टे के जगह ‘खसरा बी वन एवं ऋण अधिकार पुस्तिका‘ मिल जाएगी, जिसपर वो बैंक से कर्ज़ ले पाएंगे। हालांकि ज़मीन बेचने का अधिकार उनके पास नहीं होगा। मध्य प्रदेश के अनुसूचित आदिवासी क्षेत्रों में भू-राजस्व की संहिता की धारा 165 के अनुसार किसी आदिवासी की जमीन किसी गैरआदिवासी को बेचने पर पूर्ण प्रतिबंध है। हालांकि सुदेश वाघमारे इसपर कहते हैं कि,

“कलेक्टर इसमें सक्षम है अनुमति देने में, आदिवासी अपनी ज़मीन किसी दूसरे को बेच पाता है।”

वाघमारे आगे बताते हैं कि वनग्रामों के राजस्व ग्राम में तब्दील होने के बाद इन गांवों में लोगों के जीवन स्तर में निश्चित सुधार होगा। विकास के कई कार्य संभव होंगे लेकिन वनभूमि के वाणिज्यिक उपयोग का रास्ता भी खुल जाएगा। होटल, फार्महाउस या सेकेंड होम बनाने वाले यह ज़मीन खरदीते हैं। जहां जहां लैंड कंवर्ज़न हुआ है वहां यह देखा गया है कि स्टोन क्रशर या अन्य मिनरल्स खोदने का काम भी शुरु है। इन सब गतिविधियों से जंगल असुरक्षित हो जाएंगे।

Forest Villages of Madhya Pradesh waiting for conversion into revenue village
वन ग्राम में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग जंगल से मिलने वाले महुआ, तेंदूपत्ता और अन्य वनोत्पाद पर आजीविका के लिए निर्भर हैं, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट, स्थान- यारनगर, बुधनी

2022 में गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में वनग्रामों को राजस्व में बदलने की घोषणा

अप्रैल 2022 में वन समितियों के सम्मेलन में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में आदिवासियों के लिए कई बड़ी घोषणाएं की थी। इसमें 925 में से 827 वनग्रामों को राजस्व ग्राम में तब्दील करने की घोषणा शामिल थी। इनमें से 793 वनग्रामों को राजस्व ग्राम बनाने की कार्रवाई चल रही हैं, इसकी कलेक्टरों द्वारा अधिसूचना भी जारी हो गई हैं। 3 तीन वनग्राम (मंडला और डिंडौरी के) में कार्रवाई शुरू होना बाकी हैं, शेष 31 वनग्राम पहले से राजस्व ग्राम में शामिल हो चुके या डूब क्षेत्र में हैं। मुख्यमंत्री शिवराज ने कहा था कि,

“वन ग्राम के राजस्व ग्राम बन जाने से आपके पास जो जमीन है उसके खाते बनेंगे, किस्तबंदी होगी, खसरा-नक्शा आपको प्राप्त होंगे, नामांतरण, बंटवारा होगा। अभी तक नहीं होता था, वन ग्राम में रहने वाले किसान भाइयों अब प्राकृतिक आपदा होने पर आपको पर्याप्त मुआवजा देने का अधिकार होगा।”

इस घोषणा के 2 साल गुज़र जाने के बाद भी आप सिंह बारडे अपने गांव के राजस्व ग्राम हो जाने का इंतेज़ार कर रहे हैं। आप सिंह के भाई कैलाश बार्डे कहते हैं कि,

“हमें अपना गांव अच्छा लगता है, हम इसे छोड़कर नहीं जाना चाहते, गांव राजस्व में तब्दील होगा तो हमें अपनी ज़मीन पर हक मिलेगा।”

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  • Based in Bhopal, this independent rural journalist traverses India, immersing himself in tribal and rural communities. His reporting spans the intersections of health, climate, agriculture, and gender in rural India, offering authentic perspectives on pressing issues affecting these often-overlooked regions.

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