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भाऊखेड़ी में चौड़ी सड़क बनकर तैयार, लोग अपने टूटे घर अब-तक बना न सके

भाऊखेड़ी में चौड़ी सड़क बनकर तैयार, लोग अपने टूटे घर अब-तक बना न सके
भाऊखेड़ी में चौड़ी सड़क बनकर तैयार, लोग अपने टूटे घर अब-तक बना न सके

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सुरेश जैन पिछले दो वर्षों से अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ भाऊखेड़ी गांव के पुराने पंचायत भवन में रह रहे हैं, जो जर्जर अवस्था में है। पहले उनका तीन कमरों का घर गांव की मुख्य सड़क पर जैन मंदिर के करीब हुआ करता था, जो उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिले अनुदान से बनवाया था। लेकिन वर्ष 2023 में जब गांव की सड़क का चौड़ीकरण हुआ तो उसमें उनका पूरा घर अतिक्रमण बताकर तोड़ दिया गया। 

मध्य प्रदेश के सीहोर शहर से 21 किलोमीटर दूर भाऊखेड़ी गांव की सड़क का चौड़ीकरण हुए दो वर्ष बीत चुके हैं। फरवरी 2023 में इस सड़क के निर्माण के लिए 120 पेड़ काटे गए, 165 घरों को अतिक्रमण बताकर आंशिक रुप से तोड़ा गया। जिन लोगों के घर कभी दो या तीन कमरों के हुआ करते थे वहां अब एक-एक कमरा ही बचा है। 12 स्ट्रक्चर ऐसे भी थे जिन्हें पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया। तोड़े गए घरों में 8 प्रधानमंत्री आवास भी शामिल हैं। 

भाउखेड़ी से अमलाहा तक 17.85 किलोमीटर लंबी यह सड़क पहले स्टेट रोड नेटवर्क की सिंगल लेन डिस्ट्रिक्ट सड़क हुआ करती थी। इसका चौड़ीकरण (डबल लेनिंग) ग्रामीणों को भविष्य के लिए बेहतर रोड कनेक्टिविटी प्रदान करने, उनके जीवन में बेहतरी लाने और आजीविका के नए साधन खोलने के उद्देश्य से किया गया। 

सड़क बनने के दो वर्ष बाद जब हम इस गांव में पहुंचे तो पाया कि जिन लोगों ने इस सड़क में अपना घर खोया उन्हें अभी तक पुनर्स्थापित नहीं किया जा सका है। जिन लोगों ने अपनी दुकाने खोई वो रोज़गार नहीं ढूंढ सके हैं और गांव वालों के जीवन में बेहतरी आई हो या न हो, यह रोड अब रेत डंपरों की आवाजाही का पसंदीदा रुट ज़रुर बन गई है, जिसकी वजह से गांव में सड़क हादसों का डर बना हुआ है। 

रीसेटलमेंट प्लान सिर्फ कागज़ों पर 

पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप (PPP) के तहत एशियन डेवलपमेंट बैंक से मिली वित्तीय मदद से मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ने भाऊखेड़ी-धामंदा-अमलाहा 2 लेन सड़क का निर्माण करवाया है। 

Bhaukhedi Amlaha 2 lane road map
भाऊखेड़ी से अमलाहा तक बने 2 लेन रोड का मैप Photograph: (MPRDC)

 

एमपीआरडीसी द्वारा एशियन डेवलपमेंट बैंक के लिए तैयार किए गए रीसेटलमेंट प्लान में यह स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि

“जनसंख्या सर्वेक्षण के अनुसार इस उप-परियोजना में अपनी संपत्ती खोने वाले 12 परिवारों में से 2 परिवार अपने आवास, 7 परिवार अपनी वाणिज्यिक संरचनाएं, 3 परिवार अन्य निजी संरचनाएं (चारदीवारी, घर का सामने का हिस्सा) खो रहे हैं। जो 2 आवासीय संरचनाएं हैं वो इतनी अधिक प्रभावित हैं कि उन्हें विस्थापित करने की ज़रुरत है।” 

सुरेश जैन का परिवार इन्हीं दो परिवारों में से एक है जिन्हें विस्थापित किये जाने की ज़रुरत थी। लेकिन दो वर्ष बीत जाने के बाद भी वो अपने परिवार के लिए एक सुरक्षित छत मिलने के इंतेज़ार में हैं। 

Suresh Jain Bhaukhedi Village living in a panchayat bhavan
सुरेश जैन और उनकी पत्नी, सड़क में अपना घर गंवाने के बाद गांव के पुराने पंचायत भवन में अपनी बेटियों के साथ रह रहे हैं। Photograph: (Ground Report)

 सुरेश कहते हैं

“जब हमारा घर तोड़ दिया गया तो हमारे पास रहने के लिए कोई जगह नहीं थी। ऐसे में हमें खाली पड़े पुराने पंचायत भवन में आसरा लेना हमारी मजबूरी बन गई। मैं अपनी बेटियों और पत्नी को लेकर कहां जाता?”

जिस पंचायत भवन में सुरेश रह रहे हैं वो जर्जर अवस्था में है और नया पंचायत भवन बनने के बाद से खाली पड़ा था। इसके एक कमरे में सुरेश ने अपनी रसोई का सामान, बेटियों के पढ़ने की किताबें और पलंग रखी है तो वहीं दूसरे कमरे में घर का बाकी ज़रुरी सामान। 

भवन के बगल में उन्होंने बरसाती से आड़ कर नहाने की व्यवस्था की है। शौचालय भवन के बाहर है जिसकी स्थिति खराब है, लेकिन इसे इस्तेमाल करने के सिवाए उनके पास दूसरा उपाय नहीं है। 

Suresh Jain Family rehabilitation pending in Sehore District
पुराने पंचायत भवन के बगल में आड़ कर सुरेश जैन के परिवार ने शौचालय बनाया है। Photograph: (Ground Report)

 सुरेश की पत्नी कहती हैं

“यहां कई परेशानियां हैं, बरसात में पानी भर जाता है। रात में शौचालय जाने में डर लगता है। लेकिन जबतक हमें अपना घर नहीं मिल जाता, हम यहीं रहेंगे।”

एशियन डेवलपमेंट बैंक अपनी कंपंसेशन पॉलिसी में यह स्पष्ट रुप से लिखता है कि “किसी प्रोजेक्ट की वजह से अगर रिहाईशी प्रॉपर्टी का नुकसान होता है और वहां रहने वाले परिवार को विस्थापित करने की नौबत आती है, तो चाहे उस ज़मीन पर उस परिवार का मालिकाना हक न हो, अवैध कब्ज़ा हो, तब भी घर में रहने वाले परिवार को 60 दिन पहले नोटिस दिया जाएगा और एक किश्त में 50 हज़ार रुपए विस्थापन भत्ता दिया जाएगा। सुरेश कहते हैं कि “उन्हें यह रकम नहीं दी गई।”

भारत का राईट टू फेयर कंपंसेशन एंड ट्रांसपेरेंसी इन लैंड एक्वीज़िशन, रीहैबिलिटेशन एंड रीसेटलमेंट एक्ट 2013 भी यह सुनिश्चित करता है कि आवश्यक अवसंरचना सुविधाओं के विकास में भूमि अधिग्रहण के समय भारत के संविधान के तहत स्थापित स्थानीय स्वशासन संस्थाओं एवं ग्राम सभाओं के परामर्श से, भूमि के स्वामियों एवं अन्य प्रभावित परिवारों को कम से कम परेशानी, सूचित एवं पारदर्शी प्रक्रिया के ज़रिए उचित प्रतिकर प्रदान किया जाए। विस्थापित होने वाले परिवारों के पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन के लिए पर्याप्त प्रावधान किये जाएं ताकि वे विकास में भागीदार बने और उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार हो। 

लेकिन सुरेश के परिवार को न कोई वित्तीय मदद मिली न पुनर्वास हुआ और न ही उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार के प्रयास किये गए। 

नई समस्याएँ

Bhaukhedi Amlaha Road Problems
टूटे घर के बाहर बैठे बुज़ुर्ग सड़क से होने वाली समस्याओं के बारे में बताते हुए। Photograph: (Ground Report)

सड़क बनकर तैयार है, लेकिन जिन लोगों के घरों का बाहरी हिस्सा तोड़ा गया वो अभी तक अपने घरों की मरम्मत नहीं करवा सके हैं। गांव में एक ऐसे ही टूटे घर के बाहर ठंड में धूप का आनंद ले रहे चार बुज़र्ग हमें सड़क से पैदा हुई नई समस्याओं के बारे में बताते हैं। 

सफेद वस्त्र धारी बुज़ुर्गों के बीच नीले रंग की टी शर्ट पहने 55 वर्षीय किसान राम कृपाल गुस्से के लहज़े में कहते हैं

“यह सड़क हमारे लिए नहीं बल्कि रेत का व्यापार करने वालों के लिए बनाई गई है। जब से सड़क चालू हुई है यहां तेज़  रफ्तार में हर दो मिनट पर रेत के डंपर और भारी वाहन निकल रहे हैं।” 

रामकृपाल के बगल में सफेद धोती कुर्ता और गांधी टोपी लगाए बैठे 62 वर्षीय घंश्याम कहते हैं

“इन ट्रकों ने हमारा जीना मुश्किल कर दिया है, दिन रात एक्सीडेंट का डर लगा रहता है। न मवेशियों को खुला छोड़ सकते हैं न ही खुद चैन से सड़क पर चल सकते हैं। न जाने कब ये बे-लगाम ट्रक रौंदकर चले जाएंगे।” 

ग्रामीणों में यह डर हाल ही में गांव में हुए एक रोड एक्सीटेंड की वजह से भी है। 25 नवंबर 2024 को सुबह 5 बजे 60 वर्षीय किसान बाबूलाल वर्मा खेत में सिंचाई कर अपनी मोटर साईकिल से घर लौट रहे थे। तभी सामने से तेज़ रफ्तार में डंपर आता देख उन्होंने अपनी गाड़ी सड़क से नीचे उतारी और अंधेर में वो सड़क किनारे खड़ी जेसीबी से टकरा गए। इस घटना में उनकी मौके पर ही मौत हो गई। 

बाबूलाल अपने घर में कमाने वाले इकलौते सदस्य थे। वो अपने पीछे अपनी बुज़ुर्ग मां, पत्नी और तीन बेटियों को छोड़ गए हैं, जिनका भरण पोषण करने वाला अब कोई नहीं है। 

Bhaukhedi Road Accident Farmer Lost Life
अपने मृत पिता बाबूलाल वर्मा की तस्वीर हाथ में लिए खड़ी उनकी बड़ी बेटी। Photograph: (Ground Report)

 बाबूलाल की बेटी हमें उनकी तस्वीर दिखाते हुए कहती हैं

“उस दिन हम सभी घर पर ही थे, पापा खेत में सिंचाई करने गए थे, उनके साथ वहां क्या हुआ हम नहीं जानते। ग्रामीणों ने जब हमें इस घटना की खबर दी तो हमें पता चला।” 

भारी वाहनों की आवाजाही ने भाऊखेड़ी के लोगों के जीवन में कई समस्याएं पैदा की हैं। यहां रहने वाली 35 वर्षीय रेखा बताती हैं

“दिन रात डंपर चलते हैं। हमारे बच्चे छोटे हैं उनका बहुत ध्यान रखना पड़ता है। गांव में आए दिन मवेशियों की मौत भी इन डंपरों से टकराकर होती रहती है।”  

एमपीआरडीसी द्वारा तैयार की गई इंपैक्ट असेस्मेंट रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र मिलता है कि “प्रस्तावित दो लेन वाली सड़क महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षा की दृष्टि से चिंता का विषय हो सकती है, इस सड़क से दुर्घटना का जोखिम बढ़ जाएगा। इससे बचाव के लिए उप-परियोजना के डिज़ाइन में उचित सड़क सुरक्षा उपाय शामिल किए गए हैं। उप-परियोजना द्वारा स्कूलों, अस्पतालों और बाज़ारों में साइनेज, स्पीड ब्रेकर जैसे विशेष उपाय किए जाएंगे।” 

Bhaukhedi Road Accidents
अपने पोते को उंगली पकड़कर स्कूल से घर ले जाते बुज़ुर्ग। Photograph: (Ground Report)

 हमें गांव के बाहर वाली सड़क पर साईन बोर्ड तो लगे दिखे लेकिन गांव में मोड़ पर स्पीड लिमिट का संकेत या कोई गति अवरोधक देखने को नहीं मिला। 

नर्मदा की रेत ले जाने का सस्ता रास्ता

Dumper Heavy Vehicles on Bhaukhedi Amlaha Road
भाऊखेड़ी ग्रामीण इलाके से तेज़ रफ्तार में निकलता रेत से भरा ट्रक Photograph: (Ground Report)

सीहोर जिले की रेहटी तहसील में स्थित रेत की खदानों से नर्मदा नदी की रेत राज्यभर में सप्लाय होती है। पहले रेहटी से रेत भरकर ये डंपर इछावर-सीहोर होते हुए इंदौर की ओर जाया करते थे। लेकिन भाऊखेड़ी मार्ग बन जाने से अब वे सीहोर जाए बिना ही अमलाह होते हुए इंदौर की ओर निकल जाते हैं। इससे उनका कम से कम 50 किलोमीटर का सफर कम हो जाता है और साथ ही वे पुराने मार्ग पर सीहोर और अमलाहा के बीच पड़ने वाले टोल नाके को भी बायपास कर सकते हैं। 

भाउखेड़ी-अमलाहा मार्ग पर रेत के ट्रकों की बढ़ती आवाजाही की खबर जब मध्य प्रदेश के राजस्व मंत्री करण सिंह वर्मा तक पहुंची तो उन्होंने 29 जनवरी 2024 को सीहोर जिला पंचायत में आयोजित हुई बैठक में इस पर सख्त कार्रवाई करने के निर्देष दिए। गौरतलब है कि मंत्री करण सिंह वर्मा का घर भी इसी सड़क पर स्थित गांव जमोनिया हटेसिंह में है। 

Sand Dumpers on Bhaukhedi Amlaha Road
भाऊखेड़ी के रास्ते पर रेत के डंपर न ले जाने को लेकर लगा सूचनात्मक बोर्ड Photograph: (Ground Report)

31 जनवरी 2024 को राजस्व विभाग ने त्वरित कार्रवाई करते हुए इस मार्ग पर सूचनात्मक बोर्ड लगवा दिया जिसपर लिखा है “ग्राम भाउखेड़ी से अमलाह रोड पर रेत के डंपर ले जाना प्रतिबंधित है। आदेशानुसार अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) इछावर।” 

बोर्ड को लगे एक साल होने वाला है, लेकिन ज़मीन पर इसका असर नहीं हुआ है। ग्राउंड रिपोर्ट की टीम ने 5 जनवरी 2025 को सुबह 11 बजे से शाम के 4 बजे तक अपना समय भाउखेड़ी गांव में बिताया। हमने यह पाया कि 15 मिनट के अंतराल में इस मार्ग से 7 रेत के डंपर गुज़रे जिनकी रफ्तार भी नियंत्रित नहीं है। इसके साथ ही ये डंपर रास्ते भर धूल और रेत उड़ाते चलते हैं। 

रेखा डंपरों की वजह से उड़ने वाली धूल से होने वाली परेशानियों के बारे में बताते हुए कहती हैं

“अब आधा समय घर की सफाई में ही बीत जाता है।” 

सड़क से उड़ने वाली धूल से बचने के लिए कई ग्रामीणों ने अपने घरों के बाहर बरसाती टांग रखी है। 

Bhaukhedi Village broken houses
सड़क से उड़ती धूल से बचने के लिए घरों पर लगाई गई प्लास्टिक शीट Photograph: (Ground Report)

बेहतर कल की आस

भाऊखेड़ी में आईटीसी की मदद से एफपीओ (फार्चर प्रड्यूज़ ऑर्गेनाईज़ेशन) चलाने वाले गुलाब सिंह ने लंबा समय इस गांव में बिताया है, उनकी उम्र 62 वर्ष है, और वे गांव में सड़क बनने से बेहद खुश हैं। वो कहते हैं 

“इस सड़क ने हमारे गांव के लिए रोज़गार के नए अवसरों को खोला है। कुछ समय बाद इसके फायदे लोगों को नज़र आने लगेंगे।” 

हालांकि सड़क पर आए दिन हो रही दुर्घटनाओं से गुलाब सिंह भी दुखी हैं वो कहते हैं

“सरकार को यहां लोगों की सुरक्षा के इंतेज़ाम भी करने चाहिए, सड़क के आसपास सुरक्षा जालियां लगाई जा सकती हैं। इसके साथ ही सड़क के दोनों ओर अगर स्ट्रीट लाईट लगी होगी तो रात में भी लोग सुरक्षित महसूस करेंगे।” 

एमपीआरडीसी एशियन डेवलपमेंट बैंक के लिए तैयार की गई रिपोर्ट में सड़क के चौड़ीकरण के फायदे गिनाते हुए लिखती है कि इससे ग्रामीणों को सुरक्षित और सुगम सड़क परिवहन मिलेगा जिससे सड़क दुर्घटनाओं में कमी आएगी। लेकिन यह समझ से बाहर है कि ग्रामीण आबादी से गुज़रने वाली एक सड़क जिसपर दिन रात भारी वाहन तेज़ रफ्तार में दौड़ रहे हों और जिसके आसपास जालियां और स्ट्रीट लाईट न लगे हों वह सुरक्षित कैसे हो सकती है? 

यह स्थिति सिर्फ एक भाऊखेड़ी गांव की नहीं है बल्कि देश के उन तमाम गांवों की है जहां से फोर लेन, सिक्स लेन और एक्सप्रेसवे निकाले जा रहे हैं। सवाल है कि जब कागज़ों पर इंपैक्ट असेसमेंट, सोशल सेफगार्ड मॉनिटरिंग और रीसेटेलमेंट प्लान बन रहे हैं तो ज़मीन पर इनका सही से अनुपालन क्यों नहीं हो रहा है?  

Suresh Jain Bhaukhedi
सुरेश जैन कहते हैं कि हमने बड़ी मेहनत कर अपना घर बनाया था, अब न जाने कब हम दोबारा अपने खुद के घर में लौट पाएंगे। Photograph: (Ground Report)

पुनर्वास के लिए मंत्रियों, अधिकारियों और नेताओं से गुहार लगा कर थक चुके सुरेश कहते हैं

“नवंबर 2023 में जब राज्य में चुनाव थे तब अधिकारियों ने कहा था कि उन्हें पीएम आवास दिया जाएगा। कई नेता भी आए लेकिन हमें बस पिछले दो वर्षों से झूठा आश्वासन ही मिल रहा है।” 

एक्सीडेंट में अपने पिता को खो चुकी मृतक बाबूलाल वर्मा की बड़ी बेटी कहती हैं

“हमें किसी प्रकार का दुर्घटना बीमा या मुआवज़ा नहीं मिला। हमने मोगरा गांव के जीसीबी ड्राईवर पर मुकद्दमा दायर किया है। हमारे पिता की मौत के ज़िम्मेदार लोगों को सज़ा मिलनी चाहिए।” 

देशभर में तेज़ी से सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है। कई ग्रामीण सड़कों को चौड़ा कर हाईवे बनाए जा रहे हैं। ग्रामीण लोग तेज़ रफ्तार हाईवे के आसपास रहने के आदि नहीं हैं। जिस सड़क पर कभी वे और उनके मवेशी सुरक्षित रुप से चला करते थे,अब तेज़ रफ्तार वाहनों की चपेट में आ रहे हैं। सुरक्षा के उपाय न किये जाने से दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ रही है। ऐसे में ज़रुरत है कि ग्रामीण आबादी वाले इलाकों में सड़क किनारे स्ट्रीट लाईट लगाने, फुटपाथ बनाने और जाली लगाकर सर्विस रोड का निर्माण गंभीरता से किया जाए। इसके साथ ही सड़क चौड़ीकरण में अपने सिर से छत खोनेवाले ग्रामीणों का नियमपूर्वक पुनर्वास किया जाए ताकि वे सम्मान से अपना जीवन यापन कर सकें। 

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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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