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मध्यप्रदेश में सोयाबीन किसान MSP पर खरीदी से भी नाखुश, आंदोलन जारी

मध्यप्रदेश में सोयाबीन किसान MSP पर खरीदी से भी नाखुश, आंदोलन जारी
मध्यप्रदेश में सोयाबीन किसान MSP पर खरीदी से भी नाखुश, आंदोलन जारी

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“पिछले साल मंडी में सोयाबीन का भाव 4300 रू. प्रति क्विंटल मिला था। मैंने सोचा इस बार भी दाम अच्छे मिलेंगे, इसलिए सहकारी सीमिति से करीब तीन लाख रू. का कर्ज लेकर दस एकड़ जमीन में सोयाबीन की फसल बोई है। अच्छी फसल की उम्मीद में दिन-रात मेहनत कर रहा हूं, ताकि अपना कर्जा उतार सकूं। बाज़ार में जिस भाव पर भी सोयाबीन बिक रहा है उससे लगता है कि जमीन बेचने की नौबत आएगी।”

यह बात सीहोर जिले के इच्छावर तहसील के किसान दिनेश सिंह ने कही। दिनेश भी उन किसानों के साथ आंदोलन का हिस्सा हैं, जो सोयाबीन का समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिए पिछले 20 दिन से भी अधिक समय से आंदोलन कर रहे हैं। 

दरअसल, प्रदेश में इस समय 20 से भी ज्यादा जिलों में किसान सोयाबीन का समर्थन मूल्य 6 हजार रू. प्रति क्विंटल किए जाने की मांगों को लेकर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों द्वारा यह प्रदर्शन किसान संयुक्त मोर्चा बनाकर किया जा रहा है और तहसील और जिलों में प्रशासन को ज्ञापन सौंपे जा रहे हैं। 

दिनेश बताते हैं कि पिछले पांच सालों में सोयाबीन व अन्य सभी फसलों की लागत में दोगुनी वृद्वि हुई है, लेकिन बाजार में फसल की कीमतों में नाम मात्र का इज़ाफा हुआ है। 

Soybean crop

दिनेश की बात का समर्थन करते हुए किसान राम गुर्जर कहते हैं कि 

“मैंने भी आठ एकड़ में सोयाबीन की फसल सहकारी समिति से लोन लेकर लगाई है। लेकिन अभी मंडी में सोयाबीन 3800 से 4200 रू प्रति क्विंटल के भाव से खरीदी जा रही है, जो सरकार द्वारा साल 2022-23 में तय एमएसपी 4600 रू़ प्रति क्विंटल से भी है।”

वे आगे कहते हैं कि “प्रदेश सरकार ने 11 सितंबर को ही सोयाबीन की एमएसपी पर 292 रू बढ़ाए हैं, जबकि हमारी मांग 1400 रू बढ़ाने की थी। यानि 6000 रू प्रति क्विंटल के भाव से सोयाबीन की खरीदी होनी चाहिए।” 

यही वजह है सरकार द्वारा एमएसपी दर 4892 प्रति क्विंटल पर सोयाबीन खरीदने के फैसले के बाद भी किसान खुश नजर नहीं आ रहे हैं। किसान अब भी 6 हजार रू प्रति क्विंटल की मांग परअड़े हैं। 

इस बीच किसानों की नाराजगी में इजाफा तब हो गया, जब उन्हें पता चला कि प्रदेश सरकार ने कुल उत्पादन का मात्र 40 फीसदी ही सोयाबीन खरीदने की तैयारी कर रखी है। वहीं किसान संगठनों का कहना हैं कि उनका आंदोलन मांगें पूरी नहीं होने तक चलेगा।

कब क्या हुआ?

सोयाबीन के दाम 6 हजार रू. प्रति क्विंटल करने की मांग करते हुए किसान नेता राकेश टिकैत ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा। इस पत्र के बाद प्रदेश के किसानों ने भी सोयाबीन का समर्थन मूल्य बढ़ाने की मुहिम सोशल मीडिया पर शुरू की और किसान संयुक्त मोर्चा का गठन कर तहसील स्तर पर ज्ञापन देने का फैसला किया।

भारतीय किसान संघ ने भी आंदोलन का समर्थन किया और 5 से 10 सितंबर के बीच सभी तहसील कार्यालय पर ज्ञापन दिए। 

Soybean Farmers protest in Madhya Pradesh

इस पूरे मामले में किसानों को विपक्ष का भी साथ भी मिल रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कमलनाथ सहित पीसीसी चीफ जीतू पटवारी, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने भी एमएसपी बढ़ाए जाने की मांग की और पीसीसी चीफ जीतू पटवारी के नेतृत्व में मंदसौर जिले के गरोठ विधानसभा क्षेत्र में मंगलवार यानी 10 सितंबर को टैक्टर रैली निकाली।

10 सितंबर को ही प्रदेश सरकार ने कैबिनेट बैठक में सोयाबीन की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी करने का फैसला लिया और प्रस्ताव बनाकर केंद्र सरकार को भेजा।

11 सितंबर को केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इसके बावजद, किसान संगठनों ने आंदोलन जारी रखने का फैसला लिया और इसी कड़ी में बुधवार यानी 11 सितंबर को प्रदेश भर में प्रदर्शन किया। दोपहर में संयुक्त किसान मोर्चा की एक वर्चुअल बैठक हुई और शुजालपुर, खांतेगांव, उज्जैन, खंडवा सहित 50 स्थानों पर टैक्टर रैली निकालकर जिम्मेदारों को ज्ञापन सौंपे। 

ऑफ सीज़न में कम भाव से चिंता

भारतीय किसान संघ, भोपाल की हुजूर तहसील अध्यक्ष, अखिलेश मीणा कहते हैं कि 

“आपके दिमाग में एक बात चल रही होगी कि सोयाबीन की फसल तो अगले माह से बाजार में आना शुरू होगी, तो किसान अभी आंदोलन क्यों कर हैं?”

वे समझाते हुए कहते हैं, अभी मंडी में सोयाबीन 3800 से 4200 रू. प्रति क्विंटल की दर पर खरीदी जा रही है। जबकि सरकार द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य 4892 रू. प्रति क्विंटल है। प्रदेश सरकार के दावे के अनुसार इस बार राज्य में सोयाबीन का 68.36 लाख मेट्रिक टन से अधिक उत्पादन होने की संभावना है। ऐसे में किसानों को चिंता सता रही है कि अगले माह से बाजार में जब फसल बिकने के लिए आएगी तो ये दाम और कम हो सकते हैं, क्योंकि ऑफ सीजन में ही सोयाबीन कम दाम में बिक रहा है। ऐसे में किसानों की लागत और मुनाफे में बेहद मामूली अंतर रहेगा।

लागत और मुनाफे में कम अंतर

Soybean farmers

विदिशा जिले के किसान और राष्‍ट्रीय किसान मजदूर संघ के सदस्य राहुल राज बताते हैं कि 

“मैंने इस बार 20 एकड़ में सोयाबीन की फसल बोई है और एक एकड़ में 4 से 5 क्विंटल पैदावार की उम्मीद है, लेकिन मौसम की वजह से इस बार सोयाबीन के पीले होने की संभावना बनी हुई है, ऐसे में कीटनाशकों का छिड़काव ज्यादा करना पड़ा।”

राहुल के अनुसार एक एकड़ में कीटनाशक पर करीब 6 से 7 हजार रू खर्च आता है। दस एकड़ के हिसाब से कीटनाशक पर ही तकरीबन 70 हजार रू वो खर्च कर चुके हैं। साथ ही फसल बोने से लेकर कटाई तक के खर्च को मिलाकर एक एकड़ में लगभग 18 से 19 हजार रू की लागत आती है। वे आगे कहते हैं कि 

“सरकार ने जो एमएसपी 4892 रू. प्रति क्विंटल तय की है, उनसे किसानों को भला नहीं होने वाला है, किसानों को नुकसान ही उठाना पड़ेगा।”

उनकी बात का समर्थन करते हुए भारतीय किसान संघ, बैरसिया जिला मंत्री, देवेंद्र सिंह दागी कहते हैं कि “हमारे संगठन ने राज्य के 90 हजार से ज्यादा सोयाबीन किसानों को लेकर सर्वे किया है। इस सर्वे में सामने आया कि हर किसान सोयाबीन उत्पादन पर 4 हजार रू. प्रति क्विंटल खर्च करता है। सरकार द्वारा तय एमएसपी लागत के बराबर है। या यूं कहें कि लागत और मुनाफे में मामूली का अंतर है।” 

वो आगे कहते हैं कि 

“किसानों को सोयाबीन से कोई फायदा नहीं हैं। यदि सरकार एमएसपी 6 हजार रू. करती है तो मार्केट में काॅम्पिटिशन बढ़ेगा, जिसका फायदा किसानों को मिलेगा।”

भारतीय किसान संघ से जुड़े रायसेन जिले के किसान शिवराज सिंह ठाकुर कहते हैं कि 

“किसान एमएसपी रेट पर खरीदी नहीं बल्कि सोयाबीन का भाव 6 हजार रू. करने की मांग कर रहा है।”

उनके अनुसार एक एकड़ में सोयाबीन की अनुमाति लागत करीब 20 से 25 हजार रू. के आसपास आती हैं और उत्पादन करीब 4 से 5 क्विंटल के करीब होता है। ऐसे में 4892 के रेट पर किसान को 24460 रू. ही मिलेंगे। इस राशि से किसान की या तो लागत निकलेगी या फिर 2 से 3 हजार रू. का मुनाफा होगा। 

वहीं किसान संगठनों ने साफ कर दिया हैं कि सोयाबीन के रेट 6 हजार रू. होने तक आंदोलन जारी रहेगा। अभी तहसील और जिलों में टेक्टर रैली निकाली जा रही हैं, आगे प्रदेशव्यापी आंदोलन की तैयारी की जा रही है। 

40 फीसदी सोयाबीन ही खरीदेगी सरकार

Soybean farmer Madhya Pradesh

वहीं भारतीय किसान संघ, मप्र के प्रांत प्रचार प्रमुख मध्यभारत, रोहित धुत कहते हैं कि 

“हमारे हाथ एक सरकारी दास्तावेज लगा हैं, जिसके अनुसार इस साल प्रदेश में 68.36 लाख मेट्रिक टन सोयाबीन उत्पादन होने की संभावना हैं और सरकार द्वारा कुल उत्पादन का मात्र 40 प्रतिशत यानी 27.34 लाख मेट्रिक टन सोयाबीन खरीदने की तैयारी है। हम इसका भी विरोध कर रहे है।”

वे आगे कहते हैं कि 

“यदि सरकार को सोयाबीन खरीदना ही है तो पूरा खरीदे 40 प्रतिशत खरीदने का कोई तुक ही नहीं बनता हैं। सरकार को अपना फैसला वापस लेना चाहिए।”

वे समझाते हुए कहते हैं कि एक हेक्टेयर पर करीब 10 क्विंटल सोयाबीन का उत्पादन होता है। सरकार सिर्फ किसान से 4 क्विंटल ही सोयाबीन खरीदेगी। यानी सरकार को बेचने पर किसान को 19568 रू. मिलेंगे और बची हुई 6 क्विंटल सोयाबीन मार्केट रेट पर बेचेगा तो उसे 4 हजार रू. के रेट से 24 हजार रू. मिलेंगे। इस हिसाब से किसान को 10 क्विंटल सोयाबीन पर 43568 रू. हासिल होंगे,  जबकि सरकार यदि किसान से उसकी कुल उत्पादित फसल यानी 10 क्विंटल सोयाबीन एमएसपी पर खरीदेगी तो उसे 48920 रू. मिलेंगे। मतलब 40 प्रतिशत सोयाबीन की खरीदी पर किसान को प्रति हेक्टयेर पर ही 5352 रू. का नुकसान उठाना पड़ेगा। 

सरकार का पक्ष

मध्य प्रदेश सरकार के कृषि मंत्री ऐंदल सिंह कंसाना कहते है कि 

“प्रदेश में ऐसा पहली बार हो रहा है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य 4892 रू. प्रति क्विंटल पर सोयाबीन की खरीदी करने वाली है। करीब 30 से 35 साल पहले प्रदेश में तिलहन संघ जरूर खरीदी किया करता था, लेकिन वो खरीदी मार्केट रेट पर होती थी। अब ऐसा मौका पहली दफा है कि सरकार सोयाबीन की खरीदी करने वाली है।”

वे आगे है कि “जल्द ही सोयाबीन उपार्जन की तारीख तय होगी, निर्धारित दिनांक से सोयाबीन की खरीदी 90 दिनों तक की जाएगी और यह खरीदी भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (NAFED) और भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ (ACCF) द्वारा होगा। उपार्जन के तीन दिन में किसानों के खाते में भुगतान होगा।”

 वे आगे कहते हैं कि 

“किसानों को चिंता करने की जरूरत नहीं है सरकार सोयाबीन की फसल का दाना-दाना खरीदेगी।”

विपक्ष के आरोप, सरकार बिचौलियों के साथ 

मप्र कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी कहते हैं कि 

“यह सरकार किसानों के हित में नहीं सोया तेल कंपनियों को मुनाफा पहुंचाने के लिए काम कर रही है। यहीं वजह है कि सरकार किसानों से 6 हजार रू. प्रति क्विंटल पर सोयाबीन खरीदने को तैयार नहीं है।”

वे समझाते हुए कहते हैं कि मार्केट मार्केट में बड़े व्यापारी द्कम दामों पर सोयाबीन खरीद कर स्टाॅक कर लेंगे और बाजार में जब सोयाबीन के दामों में उछाल आएगा तो यही व्यापारी बड़ी-बड़ी आयल कंपनियों को ज्यादा कीमतों पर सोयाबीन बेचेंगे। इससे किसानों को घाटा और व्यापारियों व बिलौचियों को फायदा होगा।

इधर, किसान संगठनों को कहना हैं कि केंद्र सरकार प्राइज सपोर्ट स्कीम और प्रधानमंत्री आशा स्कीम के तहत प्रदेश में सोयाबीन खरीदने की तैयारी में हैं। इन दोनों ही स्कीमों में किसानों को केंद्र सरकार की ओर से पैसा जारी किया जाएगा और दोनों ही स्कीमों की पाॅलिसी के तहत कुल उत्पादन से एक निर्धारित मात्रा में ही उपज खरीदी जाएगी।

मध्यप्रदेश में सोयाबीन पर अगले कुछ महीनों तक सियासत जारी रहेगी। लेकिन इस समय किसान दो तरफा संकट से घिरा है। पहली तो यह कि किसान की फसल खेत में पक कर तैयार है लेकिन लगातार हो रही बारिश की वजह से इसकी कटाई नहीं हो पा रही है। दूसरी सोयाबीन के दामों को लेकर है जो एमएसपी घोषित होने के बाद भी बढ़ती महंगाई में अधिक लाभ नहीं देने वाली। 

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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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