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पीएम का सावन में माँस वाला बयान और भारत में एनीमिया एवं पोषण की स्थिति

पीएम का सावन में माँस वाला बयान और भारत में एनीमिया एवं पोषण की स्थिति
पीएम का सावन में माँस वाला बयान और भारत में एनीमिया एवं पोषण की स्थिति

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Anemia in India: चुनाव प्रचार के आगाज के साथ ही राजनैतिक प्रचारक देश में लाई गई खुशहाली का दावा कर रहे हैं, लेकिन शायद ये दावे डेल्युजनल हैं। जुलाई 2023 में शहडोल में नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन लांच किया था। इस समारोह में उन्होंने कहा था कि, भारत 2047 में “अमृत काल” में पहुंचने से पहले इससे निजात पा लेगा।  इस बात के दो ही संकेत हैं, पहला भारत एनीमिया में बहुत बुरी स्थिति में है, और दूसरा इससे निजात पाने में भारत को लंबा वक्त लग सकता है। हालांकि चुनाव प्रचार में पोषण (Nutrition) के इन तथ्यों पर बात नहीं हो रही है, जो कि देश में चल रहे ‘अमृत पर्व’ के दावों से अलग छवि दिखाते हैं। 

पोषण पर मौजूदा सरकार और प्रधानमंत्री को घेरते हुए कांग्रेस नेता जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने ट्वीट भी किया। असल में भारत में पोषण का स्तर ठीक नहीं है। चाहे वो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़े हो या ग्लोबल हेल्थ इंडेक्स के, इनके मुताबिक हमारे देश का प्रदर्शन पोषण के मामले में ठीक नहीं है। आइये एक-एक करके समझते हैं इन आंकड़ों को 

भारत में विकराल रूप ले चुका है एनीमिया 

2015-16 के मुकाबले 2019-21 के फैमिली हेल्थ सर्वे (National Family Health Survey) में, भारत की 15 से 19 वर्ष की महिलाओं में एनीमिया की संभाव्यता 54.2 फीसदी से बढ़कर 58.9 फीसदी हो गई है। भारत के 28 राज्यों में से 21 में एनीमिया मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है। हालाँकि, वृद्धि का स्तर सभी राज्यों में अलग है। असम, छत्तीसगढ़ और त्रिपुरा में 15 प्रतिशत की बड़ी वृद्धि देखी गई है। वहीं पंजाब, कर्नाटक, तेलंगाना, बिहार और मध्य प्रदेश में 5 प्रतिशत अपेक्षाकृत कम वृद्धि दर दर्ज की गई है।

60 प्रतिशत से अधिक एनीमिया प्रसार वाले राज्यों की संख्या 2015-16 में 5 थी जो, 2019-21 में दोगुनी होकर 11 हो गई है। एनीमिया के इस बढ़ते संकट के कई कारण देखे गए हैं।  इनमें से कुछ बड़े कारण, एक से अधिक बच्चे होना, कोई शिक्षा न होना, अनुसूचित जनजाति से संबंधित मामले, और कम वजन होना इत्यादि है।

एनीमिया (Anemia) का किसी भी महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य और आर्थिक और सामाजिक कल्याण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। गर्भवती महिलाओं में एनीमिया से मातृ मृत्यु दर, समय से पहले जन्म, जन्म के समय कम वजन और बच्चे के विकास में देरी जैसे खतरे बढ़ते हैं। कई शोध यह भी बताते हैं कि एनीमिया हमारी कॉग्निटिव कैपबिलिटी और मेमोरी को प्रभावित करता है। एनीमिया से उत्पन्न होने वाली ये शारीरिक और मानसिक समस्याएं हमारे देश के आर्थिक विकास के राह का बड़ा कांटा बन सकती है। 

हमारे पड़ोसी कुपोषण में हैं भारत से बेहतर  

दुनिया भर में कुपोषण के स्तर को मापने वाले सूचकांक, ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) में भी भारत का प्रदर्शन बहुत बुरा है। 2023 की सूची में भारत इसके चारों पैमाने में, अल्प पोषण, चाइल्ड स्टंटिंग, चाइल्ड वेस्टिंग, और बाल मृत्यु दर में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है। 125 देशों में भारत का स्थान 111 है, और भारत का स्कोर 28.7 है, जो कि गंभीर है।

भारत का ये स्कोर 2015 में 33.2 था। भारत के पड़ोसियों में अफगानिस्तान को छोड़कर सभी इस सूची में, भारत से बेहतर स्थिति में है। इनमे से पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट झेल रहे राष्ट्र भी हैं। पोषण के मामले में भारत की यह स्थिति चिंताजनक है। हालांकि भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ग्लोबल हंगर इंडेक्स के आंकड़ों से नाइत्तेफाकी रखते हैं। उन्होंने कहा था कि ये रिपोर्ट स्टंटिंग के मामले में भारत के जेनेटिक फैक्टर को दरकिनार करती है इसलिए मान्य नहीं है।   

 

 

Source GHI
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स्वास्थ्य और पोषण हमारे संविधान में राज्य सूची के विषय हैं। लेकिन राज्य और केंद्र सरकारों ने समय-समय पर एनीमिया के उन्मूलन और पोषण में सुधार के लिए कदम उठाये हैं। इसमें केंद्र सरकार का एनीमिया मुक्त भारत और प्रधामंत्री पोषण अभियान हैं। वहीं मध्यप्रदेश राज्य ने एनीमिया उन्मूलन के लिए लालिमा अभियान लाया था। इन सभी प्रयासों का जमीन पर क्या असर हुआ है ये आगामी सर्वे में पता चलेगा। इसके अलावा पोषण जैसे जरूरी मुद्दों की चुनावी चर्चाओं में कितनी पहुंच है, ये आत्मचिंतन का विषय है।  

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We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

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