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कानपुर : एशिया के सबसे बड़े  ‘जुलूस-ए-मोहम्मदी’ के निकलने की कहानी

कानपुर : एशिया के सबसे बड़े  ‘जुलूस-ए-मोहम्मदी’ के निकलने की कहानी
कानपुर : एशिया के सबसे बड़े  ‘जुलूस-ए-मोहम्मदी’ के निकलने की कहानी

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में दो साल बाद एशिया का सबसे बड़ा धार्मिक जुलूस कहा जाने वाला जुलूस-ए-मोहम्मदी भारी पुलिस बल की निगरानी में परेड चौराहे से रविवार 10 अक्टूबर को दोपहर 1 बजे निकाला गया। चप्पे-चप्पे पर पुलिस के जवान तैनात रहे। जिन रास्तों से जुलूस-ए-मोहम्मदी को निकलना था, प्रशासन ने उन क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति को बंद रखा। आइये आपको बताते हैं इस जुलूस के निकलने की कहानी। कैसे समय के साथ इसमें बदलाव आया और इसको एशिया का सबसे बड़ा धार्मिक जुलूस कहा जाने लगा।

110 साल से निकल रहा है जुलूस-ए-मोहम्मदी

कानपुर में जुलूस-ए-मोहम्मदी के निकले की कहानी बेहद ही दिलचस्प है। बात उस समय है कि जब देश पर अंग्रेज़ों की हुकूमत थी। हिंदू-मुस्लिम मिलकर देश की आज़ादी के लिय गोरों से लड़ रहे थे। वर्ष 1913 में अंग्रेज़ों ने कानपुर इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के तहत सरसैय्या घाट से बांसमंडी चौराहे को मिलाने वाली सड़क के विस्तार की योजना बनाई थी। लेकिन रोड़ के विस्तार में मस्जिद का कुछ हिस्सा आ रहा था। साथ ही एक मंदिर भी सड़क निर्माण के रास्ते पर आ रहा था। अंग्रेज़ों ने आपसी सौहार्द और हिंदू-मुस्लिम को आपस में लड़ाने की योजना बनाई।

अंग्रेज़ों ने पुलिस लगाकर मस्जिद का हिस्सा तोड़ डाला और मंदिर को कुछ नहीं किया। ताकि मुसलमान नाराज़ होकर हिंदुओं से लड़ जाएं। लेकिन अंग्रेज़ों की चाल के आगे भारी पड़ा आपसी सौहार्द। जमीअत उलमा के प्रदेश अध्यक्ष मौलाना मतीनुल हक़ ओसामा कासिमी बताते हैं, अंग्रेज़ों की इस हरकत को दोनों समुदाय के लोग जान गए और गोरों के खिलाफ एकजुट होकर सड़क पर उतर आए। कई दिनों तक सड़क पर विरोध होता रहा। इस दौरान सड़क पर विरोध कर रहे लोगों को जेल में डाल दिया गया। बाद में मुश्किल से चंदा करके लोगों ने गिरफ्तार साथियों को बाद में छुड़ाया ।

मौलाना ओसामा बताते हैं, अलगे साल, 1914 में 12 रबी उल अव्वल के दिन घटना की याद में परेड ग्राउंड पर फिर लोग एकत्रित हुए। खिलाफत तहरीक के मौलाना अब्दुल रज़्ज़ाक़ कानपुरी, मौलाना आजाद सुभानी, मौलाना फाखिर इलाहाबादी और मौलाना मोहम्मद उमर के नेतृत्व में जुलूस-ए-मोहम्मदी निकाला गया, जो एशिया का सबसे बड़ा जुलूस कहलाया। पिछले 110 साल से ये जुलूस ऐसे ही निकलता है और सभी धर्मो के लोग इसमें शामिल होते हैं। परेड़ से निकल कर ये जुलूस-ए-मोहम्मदी फूलबाग़ मैदान में समाप्त होता है। अंग्रेज़ों को एकता का संदेश देने क् लिय 1914 में हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदाए के लोगों ने मिलकर शुरूआत की थी जुलूस-ए-मोहम्मदी की।

समय के साथ बदल गया जुलूस का पैटर्न

एक सदी से भी अधिक समय से निकल रहा जुलूस-ए-मोहम्मदी परेड ग्राउंड से निकल कर बेहद ही तंग और घनी आबादी वाले इलाक़ों से होकर गुज़रता है। परेड, बेगनगंज,तलाक मोहाल,चमनगंज.आलम मार्केट, लाटूश रोड़, मिस्टन रोड़ होता हुआ पटकापुर के रास्ते से फूलबाग मैदान पहुंचता है। समय से साथ आए बदलाव ने पुलिस प्रशासन का काम भी अधिक बढ़ा दिया है। जुलूस में अधिकतर लोग लोडर पर बड़े-बड़े डीजे लेकर निकलते हैं। तंग रास्तों से गाड़ियां का निकलना बड़ी चुनौती होती है। पुलिस को ट्रैफिक डायवर्ट कर अलग रूट तैयार करना होता है। जिन रास्तों से जब तक जुलूस निकलता है। तब तक पॉवर आपूर्ति बंद रखी जाती है। ताकि करंट के कारण कोई दुर्घटना न हो।

धार्मिक माहौल न बिगड़े पुलिस प्रशासन के लिय सबसे बड़ी चुनौती यही होती है। क्योंकि कई बार जुलूस के दौरान धार्मिक माहौल बिगड़ चुका है। कानपुर पुलिस कमिश्नरेट ने जुलूस के आयोजन पर सुरक्षा की तैयारियां पहले से ही पूरी कर ली थीं। जुलूस मार्ग को खुफिया कैमरों से लैस करने के साथ ही चप्पे-चप्पे पर पुलिस, पीएसी, आरएएफ के साथ पैरामिलेट्री फोर्स तैनात रही। पूरे रूट पर जगह-जगह भीड़ को नियंत्रित करने के लिये बैरीकेडिंग लगाई गई है। पुलिस आयुक्त बीपी जोगदंड, संयुक्त पुलिस आयुक्त आनंद प्रकाश तिवारी, अपर पुलिस आयुक्त आनंद कुलकर्णी, डीसीपी अपराध एवं यातायात सलमान ताज पाटिल ने भारी भरकम पुलिस फोर्स के साथ जुलूस के रास्तों पर मार्च कर माहौल को परखते रहे।

कानपुर में निकाले गए जुलूस-ए-मोहम्मदी में सुरक्षा के लिय शहर के अलावा आगरा, मेरठ, प्रयागराज, वाराणसी आदि जनपदों से भी फोर्स मंगाया गया है। दस कंपनी पीएसी, 100 निरीक्षक, 500 उप निरीक्षक, हजारों की संख्या में जवान तैनात करने के साथ ही आरएएफ, आईटीबीपी के जवान तैनात रहे। जुलूस के रूट पर कुल 123 ड्रोन कैमरों को आयोजन की निगरानी के लिये लगाया गए। जो क्षेत्र सवेंदनशील माने जाते हैं वहां पर पुलिस की बड़ी संख्या में मौजूदगी रही।

जुलूस-ए-मोहम्मदी में क्या होता है

जुलूस-ए-मोहम्मदी में सभी मुस्लिम एक साथ जमा होकर पैगंबर की शान में नात (धार्मिक संगीत) पढ़ते हैं। झंड़े लेकर नारे लगाते हुए जुलूस के साथ चलते हैं। जिन भी रास्तों से ये जुलूस निकलता है। वहां जगह-जगह पर खाने-पीने के स्टॉल लगे रहते हैं। हर तरह के पकवान बांटे जाते हैं। सभी धर्मों के लोग जुलूस का स्वागत करते हैं।

जुलूस में शामिल लोग नए-नए कपड़े पहनकर नात पढ़ते हुए आगे बढ़ते हैं। हालांकि पुलिस के मना करने के बावजूद जुलूस में अधिकतर लोग लोडर,ट्रॉली और गाड़ियां लेकर पहुंच जाते हैं। कई बार ये गाड़ियां दुर्घटना का कारण बनती रही हैं। पुलिस की तमाम कोशिशों के बाद भी ये गाड़ियों को जुलूस में शामिल होने से रोकने में कामयाब नहीं हो सकी।

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