...
Skip to content

मध्यप्रदेश चुनाव में गौशाला बनाने के वादे और ज़मीनी हकीकत

मध्यप्रदेश चुनाव में गौशाला बनाने के वादे और ज़मीनी हकीकत
मध्यप्रदेश चुनाव में गौशाला बनाने के वादे और ज़मीनी हकीकत

REPORTED BY

Follow our coverage on Google News

मध्यप्रदेश कांग्रेस ने अपने 2023 के चुनावी घोषणापत्र में गौशालाओं में प्रति गाय मिलने वाले अनुदान को बढ़ाने, छत्तीसगढ़ की तरह 2 रुपए प्रति किलो गोबर खरीदने और 1000 नई गौशालाओं के निर्माण का वादा किया है। ऐसे में गाय एक बार फिर मध्यप्रदेश की राजनीति में सेंटर स्टेज पर आ चुकी है। हमने सीहोर और भोपाल शहर की गौशालाओं में जाकर यह जाना कि गौशालाओं की समस्याएं क्या हैं और मध्यप्रदेश में आवारा मवेशियों की क्या स्थिति है।

सड़क पर मवेशियों का कब्ज़ा

Cow on Roads in bhopal
कोलार रोड भोपाल, सड़क पर घूमती गायें, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

भोपाल शहर में कोलार से रातीबड़ जाने वाले रोड पर सड़कों पर आवारा मवेशियों ने कब्ज़ा कर लिया है, इस सड़क पर इतनी गाड़ियां नहीं जितने मवेशी हैं। यहां से निकलने वाली गाड़ियां काफी देर तर हार्न बजाती हैं तब जाकर मवेशी निकलने का रास्ता देते हैं। यह मंज़र राज्य के कई शहरों में आम हैं, कई बार लोग सड़कों पर मवेशी के अचानक आने की वजह से एक्सीडेंट में जान भी गंवा देते हैं, तो दूसरी तरफ इससे मवेशी भी घायल हो जाते हैं। मध्यप्रदेश की सड़कें देश में तमिलनाडू के बाद सबसे ज्यादा खतरनाक मानी जाती हैं, नैशनल क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में साल 2021 में 49,493 एक्सीडेंट रिकॉर्ड किये गए थे। लेकिन जितनी तेज़ी से छुट्टा पशुओं की जनसंख्या बढ़ रही है, उतनी ही धीरे है इन अवारा मवेशियों को रखने के लिए शेल्टर निर्माण की गति।

Shri ram gaushala sehore
श्रीराम गौशाला, सुदेश नगर सीहोर, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

2019 में हुई पशु जनगणना के अनुसार मध्यप्रदेश में 1.89 करोड़ गाय हैं जिसमें 9 लाख अवारा हैं और 3 लाख गायों को सरकार 2000 से ज्यादा गौशालाओं में रख रही है। बाकी की गाय आपको सड़कों पर घूमती नज़र आ जाएंगी। दरअसल जब गाय दूध देना बंद कर देती है तो गौपालक उन्हें छोड़ देते हैं, ये गाय भोजन और चारे की तलाश में दर दर भटकने लगती हैं। धार्मिक आस्था देखते हुए मध्यप्रदेश में गौवंश को कत्लखानों में भेजने पर प्रतिबंध है। मवेशियों के लिए शेल्टर और गौशाला बनाने की जिम्मेदारी नगर प्रशासन और ग्राम पंचायतों की होती है, लेकिन ज़मीन पर केवल कुछ सामाजिक संस्थाएं ही सही से गौशालाओं का प्रबंधन कर पा रही हैं। सीहोर शहर के सुदेश नगर में श्रीराम गौशाला के संचालक पंडित मोहित राम पाठक बताते हैं

“पिछले 20 सालों से इस गौशाला का संचालन हो रहा है, यहां घायल और बीमार गायों का उपचार किया जाता है और उनकी सेवा की जाती है। हमारी क्षमता 100 गायों को रखने की है, फिल्हाल 88 गायें यहां है जो शहर के अलग अलग हिस्से से एक्सीडेंट या घायल होने पर लाई गई हैं।”

कथा व्यास मोहित राम पाठक कहते हैं कि “गौशालाओं से गाय की सुरक्षा होना संभव नहीं है, लोगों को सड़कों से गायों को लेजाकर अपने घरों में बांधना होगा, लोग अपने घरों में गाड़ी रखने का गैरेज बना सकते हैं तो एक गाय की जगह क्यों नहीं कर सकते।”

गाय का महंगा होता चारा

सीहोर शहर से 28 किलोमीटर दूर चांदबढ़ में 230 गायें गौशाला में पल रही हैं, यहां सीहोर नगरपालिका से भी गायें भेजी जाती हैं। चांदबढ़ गौशाला में गौसेवक हीरालाल भगत हमें बताते हैं कि

“अगर हम अपनी क्षमता से अधिक गायों को यहां रखेंगे तो फिर अव्यवस्था होगी, इसलिए हम केवल उतनी ही गाय रखते हैं जिनकी सेवा हम अच्छे से कर सकें। गायों का चारा बीते कुछ वर्षों में महंगा हुआ है, 1000 रुपए क्विंटल भूसा हमने खरीदा है। इस क्षेत्र में पानी की भी गंभीर समस्या है, गर्मी में बोरवेल सूख जाता है तो हमें दूर से पानी लाना पड़ता है। अगर प्रशासन और समाज से मदद मिले तो हम यहां ज्यादा गायों को पाल पाएंगे।”

chandbad gaushala sehore
चांदबड़ गौशाला में पेड़ के नीचे बैठी गायें, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

सरकार की तरफ से मिलने वाले 20 रुपए प्रति गाय के अनुदान पर हीरालाल भगत कहते हैं कि कभी कभी देरी होती है लेकिन सरकार अनुदान देती है। वहीं सीहोर सुदेश नगर स्थिति श्रीराम गौशाला को सरकारी अनुदान नहीं मिल पाता क्योंकि यह एक रजिस्टर्ड गौशाला नहीं है।

कोलार रोड पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा नंदिनी गौशाला का संचालन किया जाता है, यह क्षेत्र बाघ विचरण क्षेत्र है। यहां के संचालक हमें बताते हैं कि यहां दो परिवार मिलकर गायों की सेवा करते हैं। लोग गायों को यहां छोड़ जाते हैं, भोपाल नगर निगम भी कभी कभी यहां गायें भेजता है।

“क्योंकि हमें संस्था से पैसा मिलता है इसलिए हम इस गौशाला का संचालन अच्छे से कर पा रहे हैं, वरना प्रशासन से मिलने वाली मदद न के बराबर होती है। हमारी गौशाला को शासन की तरफ से ही जमीन दी गई लेकिन किन्ही कारणों से ज़मीन का अलॉटमेंट पूरा नहीं हुआ जिससे स्थाई निर्माण की अनुमति नहीं मिली है।”

गौशालाओं के प्रबंधन में चारे की कमी, पानी की कमी, धन की कमी और संसाधनों का अभाव बड़ी समस्या बना हुआ है।

cow eating garbage in India
सोहीर स्थित कचरा खंती में गाय, पन्नी खाने की वजह से कई गायों की मौत हो जाती है, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

सड़कों पर घूमने वाले मवेशियों की समस्या पर केंद्रीय परिवहन मंत्रालय की पहल

सड़कों पर घूमने वाली गायों से होने वाले एक्सीडेंट को रोकने के लिए केंद्रीय परिवहन मंत्रालय ने भी कई बार राज्य सरकार को निर्देश जारी किये हैं लेकिन स्थानीय प्रशासन का ढीला रवैया समस्या बना हुआ है। मध्यप्रदेश में कुछ जिलों में गायों के सींगों पर रेफ्लेक्टिव रेडियम लगाने का काम हुआ है जिससे अंधेरे में गाड़ी वाले मवेशियों को देख सकें। साथ ही नैशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने प्राईवेट प्लेयर्स की मदद से काउ शेल्टर बनाने का खुद जिम्मा भी उठाया है।

साल 2022 में शिवराज सरकार ने गायों पर 200 करोड़ खर्च किये। साल 2020 में गायों की सुरक्षा के लिए काउ कैबिनेट का भी गठन किया गया। लेकिन इसके बावजूद मध्यप्रदेश के हर शहर में गाय सड़कों पर घूमती नज़र आ सकती हैं।

stray cow menace in madhya pradesh
सीहोर में कचरे के ढेर में आवारा मवेशी, फोटो ग्राउंड रिपोर्ट

किसानों की फसल हो रही चौपट

आवारा मवेशियों से सबसे ज्यादा नुकसान खुद किसान ही उठाते हैं, ये मवेशी किसान की तैयार फसलों को खा जाते हैं जिससे आर्थिक नुकसान होता है। सीहोर के कुछ किसानों ने गायों से फसल को बचाने के लिए नज़दीकी देलावाड़ी जंगल में छोड़ना शुरु कर दिया था, जिन्हें बाद में जंगल विभाग ने वहां से बाहर निकाला।

राज्य में लंबे समय से गौथन (ऐसी खुली भूमि जहां मवेशियों को चरने के लिए छोड़ा जा सके) के निर्माण की मांग की जा रही है। लेकिन अभी तक इसपर कोई निर्णय नहीं हो पाया है।

सीहोर श्रीराम गौशाला के पंडित मोहित कहते हैं कि

“आम लोगों को ही गौवंश को बचाने आगे आना होगा, गाय को केवल दूध के लिए इस्तेमाल करना उचित नहीं है, गाय का गोबर, मूत्र सबकुछ उपयोगी है। अगर इससे उत्पाद बनाने का काम हो तो लोगों को आमदनी भी होगी और गौवंश भी बचा रहेगा।”

यह भी पढ़ें

Follow Ground Report for Climate Change and Under-Reported issues in India. Connect with us on FacebookTwitterKoo AppInstagramWhatsapp and YouTube. Write us at GReport2018@gmail.com.

Author

  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins