...
Skip to content

मध्यप्रदेश के निवाड़ी में ओलावृष्टि के बाद खराब हुई फसल पशुओं को खिला रहे किसान

मध्यप्रदेश के निवाड़ी में ओलावृष्टि के बाद खराब हुई फसल पशुओं को खिला रहे किसान
मध्यप्रदेश के निवाड़ी में ओलावृष्टि के बाद खराब हुई फसल पशुओं को खिला रहे किसान

REPORTED BY

Follow our coverage on Google News

मध्य प्रदेश के निवाड़ी ज़िले के वीरेंद्र कुशवाहा (52) ने बीते साल ही अपनी बेटी की शादी की है. इस शादी के लिए उन्होंने 3 लाख का क़र्ज़ लिया था. जिसमें से 1.5 लाख रूपए उन्होंने चुका भी दिए थे. इस साल रबी की फ़सल के रूप में उन्होंने गेहूं, चना और मटर की फ़सल बोई थी. उन्हें विश्वास था कि अबकी बार फ़सल अच्छी होगी. जिससे वह बकाया क़र्ज़ भी चुका देंगे. फ़रवरी के अंतिम दिन तक भी खेत में लह-लहाती फ़सल उन्हें अपने इस विश्वास पर संशय करने का कोई कारण नहीं देती है. 

मगर बीते 2-3 मार्च के दरमियान अचानक हुई बारिश और ओलावृष्टि ने फ़सल और उससे जुड़ी उम्मीदों को पूरी तरह धराशाही कर दिया. कुशवाहा हमसे बात करते हुए कहते हैं,

“अब खेत में केवल ठूंठ बचे हैं. पूरा खेत ख़त (भर) गया है. कुछ भी नहीं बचा.”

Hailstorm in Madhya Pradesh
ओलावृष्टि के चलते मटर, चना और गेहूँ की फ़सल पूरी तरह चौपट हो गई है. यह बुंदेलखंड के किसानों की मुख्य फ़सलें हैं.

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार बीते दिनों उत्तरी अफगानिस्तान और आस-पास के इलाकों में उपजे वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के चलते मध्यप्रदेश सहित देश के कई अन्य हिस्से अनियमित बारिश और ओलावृष्टि के शिकार हुए हैं.

इस दौरान हुई ओलावृष्टि और बारिश के चलते मध्यप्रदेश के 15 ज़िले बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. इनमें से बुंदेलखंड के एक हिस्से में चना और गेहूं की फ़सल को 20 से 30 प्रतिशत तक नुकसान हुआ है. वहीं चम्बल में सरसों की फ़सल बुरी तरह प्रभावित हुई है. 

कुशवाहा अपने परिवार का भरण-पोषण सब्ज़ी और आनाज उगाकर ही करते हैं. वह ओलावृष्टि के चलते हुए नुकसान के बारे में बताते हुए कहते हैं, 

“मेरे खेत में मिर्च की फ़सल पूरी खड़ी हुई थी. उससे क़रीब 1.5 से 2 क्विंटल मिर्ची निकलती. इसी तरह बैगन की फ़सल भी थी. मगर अब पूरी फ़सल लेट गई है. उसका बाज़ार में लागत के बराबर भी दाम नहीं मिलेगा.”

कुशवाहा ने बीते सीज़न का 2-3 क्विंटल गेहूं घरेलू उपयोग के लिए बचा रखा था. मगर उसके ख़राब हो जाने के डर से उन्होंने उसे भी बेच दिया. उन्हें उम्मीद थी कि नई फ़सल से निकलने वाले गेहूं का एक हिस्सा वह घर के उपयोग के लिए रख लेंगे. अब उन्हे रोज़ की रोटी का आटा भी मोल (खरीदकर) लेना पड़ रहा है.

Hailstorm in Madhya Pradesh farmers crops destroyed
आनाज के अलावा सब्ज़ी की फ़सल भी ओलावृष्टि ने चौपट कर दी है जिससे किसानों की दैनिक कमाई प्रभावित हुई है.

ओलावृष्टि की बढ़ती तीव्रता  

निवाड़ी ज़िले के एक अन्य गाँव महाराजपुरा के 63 वर्षीय किसान जयराम राजपूत कहते हैं कि उन्होंने अब तक के अपने जीवन में ऐसी ओलावृष्टि नहीं देखी है. 

“बीते 3-4 साल से मौसम का समझ नहीं आ रहा. यह कभी भी बिगड़ जा रहा है. अक्सर हमारी फ़सल बर्बाद हो जा रही है.”

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के लद्दाख केंद्र के प्रमुख सोनम लोटस बताते हैं कि ओलावृष्टि के लिए गर्म वातावरण ज़िम्मेदार होता है. 

“जलवायु परिवर्तन के चलते पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हुई है जिसके चलते ओलावृष्टि की तीव्रता (intensity) बढ़ी है.”

Farmers feeding crops to animals in Madhya Pradesh after hailstorm destroyed wheat crop
किसान प्रभावित फ़सल को अपने जानवरों को खिलाना ज़्यादा उचित मानते हैं.

ओले की तीव्रता को आम तौर पर ओले के आकार और गिरने वाले ओले की मात्रा से मापा जाता है. अनियंत्रित वातावरण के चलते लोकल हीटिंग यानि किसी स्थान विशेष के तापमान का बढ़ना, फ्रंट, और भौगोलिक परिस्थिति के चलते हवा (updrafts) ऊपर की ओर जाती है. यह हवा अपने साथ आद्रता के रूप में पानी को वातावरण में ऊपर ले जाती है. यहाँ चूँकि वातावरण ठंडा होता है अतः पानी की यह बूंदे सघन (condensed water) होकर बर्फ़ का रूप लेना शुरू कर देती हैं. 

बर्फ़ के इस गोले या कहें की ओलों का आकर तब तक बढ़ता रहता है जब तक अपड्राउट हवाएँ उसे और ऊपर ले जाने में कमज़ोर नहीं पड़ जातीं. अमेरिकी राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय प्रशासन के अनुसार 103 KM/H की अपड्राउट 42.7 मिमी व्यास के ओले बना सकती है. इसे अपनी कल्पना में समझना हो तो सोचिए कि बेसबॉल के आकार के ओले आसमान से गिर रहे हैं. 

“सालों बाद ऐसी आपदा देखी है”

ठीक एक साल पहले मार्च 2023 में भी अचानक हुई ओलावृष्टि के चलते मध्य प्रदेश के 20 ज़िले प्रभावित हुए थे. इस दौरान खरगोन ज़िले की झिरन्या तहसील में बर्फ़ (ओले) की एक मोटी परत जम गई थी. छतरपुर की राजनगर तहसील के नाद गाँव के लोगों 2-3 मार्च के दरमियाँ ऐसा ही नज़ारा देखा. यहाँ के किसान सरजूराम अहिरवार (64) उस दिन को याद करते हुए बताते हैं,        

“शाम को करीब 4:30 बजे ओले पड़ने शुरू हुए. शाम होते-होते तक हमारी तीनों फ़सल बर्बाद हो गई. अब टूटा अनाज बीन रहा है आदमी”

सरजूराम ने गेहूँ, मटर, चना, मसूर और जवा की फ़सल बोई थी. वह कहते हैं कि अगर मौसम साथ देता तो ‘1 लाख का चना, 15 बोरा राई, 4 क्विंटल मटर, 5 क्विंटल मटर और 2 क्विंटल धनिया निकलता.’ मगर फसलों के अलावा उनका कच्चा घर भी ओले के चलते छतिग्रस्त हो गया है. वह याद करते हुए कहते हैं कि ‘इससे पहले 2014 में ऐसे ओले गिरे थे.’ 

सरजू जिस घटना को याद कर रहे हैं. उस दौरान 26 फरवरी से लेकर 15 मार्च, 2014 तक कुछ दिनों के अंतराल में लगातार ओलावृष्टि हुई थी. इस दौरान देश भर में 10 से 15 हज़ार करोड़ का नुकसान दर्ज किया गया था. महाराष्ट्र में करीब 1.9 मिलियन हेक्टेयर की फ़सल और 35 प्रजातियों की क़रीब 62 हज़ार 250 पक्षी मारे गए थे.           

peacock and birds died due to hailstorm
ओलावृष्टि ने फसलों के अलावा पक्षियों को भी प्रभावित किया है. खेतों में पक्षियों के शव देखे जा सकते हैं.

बीते 2-3 मार्च के दौरान छतरपुर के नाद गाँव में भी 6 से अधिक मोर ओलावृष्टि के चलते मारे गए थे. हम जब यहाँ पहुँचे तब भी चिड़ियों के शव यहाँ पड़े हुए थे. इस बारे में स्थानीय किसान रघुनाथ सिंह यादव कहते हैं,

“ओलावृष्टि के अगले दिन सुबह जब हम खेत में गए तो पक्षी भी मरे हुए खेतों में पड़े थे. गाँव के 2 खेतों में मोर भी पड़े थे.”

इस बात से आप ओलों की तीव्रता का अंदाज़ा लगा सकते हैं, ऐसे में किसान की फसल इस ओलावृष्टि में कैसे टिकेगी?

क्या ओलों से कृषि को बचाने का कोई तरीका है?

ओलावृष्टि से खेती को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए तीन स्तर पर तैयारी की जा सकती है. इसमें ओलावृष्टि के पहले इसकी सूचना किसानों तक पहुँचना, हेल नेट जैसे उपायों का इस्तेमाल और ओलावृष्टि के बाद बीमा एवं मुआवज़ा की राशि का उचित भुगतान शामिल है.  

प्री-हेलस्ट्रोम प्रिवेंशन

ओलावृष्टि को रोकना लगभग न मुमकिन है. ऐसे में इसके पूर्वानुमान को और सटीक बनाकर इससे होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है. भारत में अभी 30 हज़ार ऑटोमैटिक वेदर डाटा कलेक्शन पॉइंट्स हैं. यह आने वाले दिनों में मौसम के बदलने की फोरकास्टिंग कर सकते हैं. गौरतलब है कि 2 मार्च को आईएमडी द्वारा ओलावृष्टि की फोरकास्टिंग की गई थी. मगर स्थानीय किसानों का कहना है कि ऐसी कोई भी सूचना उन तक नहीं पहुँची थी. 

वहीं नाद गाँव के आशाराम यादव कहते हैं, 

“अगर हमें पहले से पता चल भी जाएगा तो क्या हरी फसल काट देंगे?” 

वहीं कृषि विशेषज्ञ डॉ. प्रदीप नंदी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि डाटा के एकत्रीकरण के बाद भी उससे सम्बंधित सूचना का सही वितरण नहीं किया जा रहा है.

ओलावृष्टि के दौरान होने वाले बचाव

डॉ. नंदी कहते हैं कि ओलावृष्टि कृषि के लिए सबसे खतरनाक है. दरअसल इससे फसलों के अतिरिक्त जानवरों के घायल होने या मर जाने का भी ख़तरा है. इसके अलावा नर्सरी जैसी चीज़ें भी प्रभावित होती हैं. हिमांचल प्रदेश में सेब की खेती को बचाने के लिए एंटी-हेल नेट का इस्तेमाल बीते कुछ सालों से किया जा रहा है. मगर बागवानी के इतर ऐसा कोई प्रयास भारत की कृषि में देखने को नहीं मिलता. डॉ. नन्दी ऐसा कोई प्रयास भारतीय परिपेक्ष में कठिन मानते हैं. 

“खेतों में नेट लगवाने से फ़सल का कॉस्ट बढ़ जाएगा जिसे वहन कर पाना भारत के बड़ी जोत के किसान के लिए भी मुमकिन नहीं है.”

एंटी-हेल नेट फसलों को ओलावृष्टि, पक्षियों और अन्य हमलों से होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं. इन्हें फसलों, कैनोपी, ग्रीनहाउस बाड़ों पर स्थापित किया जा सकता है. कृषि के लिए आने वाली एंटी हेल नेट की कीमत बाज़ार में औसत 20 रुपए प्रति स्क्वायर मीटर होती है. इस हिसाब से एक एकड़ में नेट लगाने के लिए करीब 80 हज़ार रुपए खर्च होगा और इसके ऊपर इंस्टॉलेशन का खर्च अलग से।

crops destroyed due to hailstorm
खराब हो चुकी मटर की फ़सल

क्या मुआवज़ा और फ़सल बीमा काफी है?

क्या हमारे पास ओलावृष्टि से होने वाले नुकसानों से निपटने के लिए कोई प्लान है? छतरपुर के कृषि विभाग में पदस्थ एक अधिकारी इसका जवाब न में देते हैं. 

“किसानों को आम-तौर पर 2 तरह से ही राहत दी जाती है. पहला मुआवज़ा और दूसरा बीमा की राशि” 

निवाड़ी ज़िला के रेवेन्यु डिपार्टमेंट के एक अधिकारी नाम न छपने की शर्त पर बताते हैं कि रेवेन्यु बुक सर्कुलर के अनुसार किसान को न्यूनतम 5 हज़ार और अधिकतम 1 लाख 20 हज़ार तक का मुआवज़ा ही मिलता है. हालाँकि यहाँ के किसान इस बात से इनकार करते हैं. वीरेंद्र कुशवाहा कहते हैं-

“जब भी फ़सल नष्ट होती है हमें 1 से 2 हज़ार का चेक पकड़ा दिया जाता है.”

वही यहाँ के किसान बताते हैं कि बीमा की राशि कंपनी अधिकतर समय नहीं देती है. यदि देती भी है तो वह असल नुकसान का कुछ प्रतिशत ही होता है. 

डॉ. नंदी कहते हैं कि हमें किसानों को असल मुआवज़ा देने के लिए इमानदारी से फसलों की कॉस्ट के साथ नुकसान का आकलन करना चाहिए. उनका मानना है कि अभी सरकार मुआवज़ा के नाम पर ‘सांत्वना राशि’ देती है. साथ ही वह बीमा कंपनियों को मिली छूट की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि सरकार को बीमा कंपनियों पर लगाम लगाना पड़ेगा और खुद केंद्र से इसके लिए गाइडलाइन जारी करनी पड़ेगी.

कृषि से सम्बंधित विभिन्न योजनाओं के संचालन के बाद भी ओलावृष्टि को लेकर हमारे पास कोई ठोस योजना नहीं है. आपदा का पूर्वानुमान लगाना नई टेक्नोलॉजी के साथ संभव है. मगर सूचना का किसानों का सही समय पर न पहुँचना सबसे बड़ी चुनौती है. ऐसे में भारत में अभी केवल पोस्ट-हेलस्ट्रोम मैनेजमेंट पर प्राथमिकता के साथ काम किया जाना चाहिए. इसके लिए मुआवज़ा की सही राशि तय करने के लिए उचित तरह से कॉस्ट एनालिसिस किया जाना चाहिए. वहीं बीमा से सम्बंधित योजनाओं का विस्तार तो ज़रूरी है ही. इसके अलावा किसानों को उचित बीमा राशि मिले इस ओर सरकार को दखल देते हुए प्रयास करना होगा.

यह भी पढ़ें

पर्यावरण के लिहाज़ से कितनी सस्टेनेबल है स्मार्ट सिटी भोपाल?

क्या होती है स्मार्ट सिटी, भारत में अब तक कितने ऐसे शहर तैयार हुए हैं?

पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुकट्विटरइंस्टाग्रामयूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।

पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जटिल शब्दावली सरल भाषा में समझने के लिए पढ़िए हमारी क्लाईमेट ग्लॉसरी

Author

  • Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.

    View all posts

Related

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins