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क्या है बिलकिस बानो का पूरा मामला ? पढ़ें 2002 से 2022 तक का घटनाक्रम

क्या है बिलकिस बानो का पूरा मामला ? पढ़ें 2002 से 2022 तक का घटनाक्रम
क्या है बिलकिस बानो का पूरा मामला ? पढ़ें 2002 से 2022 तक का घटनाक्रम

Bilkis Bano case : बिलकिस बानो.. यह नाम एक बार फिर चर्चाओं में है। बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार और परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्र क़ैद की सज़ा काट रहे 11 दोषियों को जेल से रिहा कर दिया गया (Bilkis Bano gang rape)। इस फैसले के बाद बिलकिस बानो (Bilkis Bano) का मामला फिर चर्चा का हिस्सा बन गया। आइये आपको बताते हैं बिलकिल बानो की पूरी कहानी। 2002 से लेकर 2022 तक बिलकिस बानो (Bilkis Bano) का पूरा सफ़र।

Bilkis Bano case : बिलकिस बानो कौन हैं और उनके साथ क्या हुआ था ?

बिलकिस बानो (Bilkis Bano case) की कहानी को पूरी तरह से समझने के लिय हमें गुजरात दंगों (2002 Gujarat riots) की ओर लौटना होगा। भारत के इतिहास का वो काला समय जब साल 2002 में गुजरात भयानक सांप्रदायिक दंगों ( Communal riots in Gujarat) की आग में जल रहा था। 27 फ़रवरी 2002 को आयोध्या से गुजरात के साबरमती लौट रही कारसेवकों से भरी साबरमती एक्सप्रेस (Sabarmati Express) की कुछ बोगियों में गोधरा के पास लगी आग के बाद 59 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी।

कारसेवकों से भरी इस ट्रेन में आग लगने से 59 लोगों की मौत का ज़िम्मेदार कथिर तौर पर मुस्लिम समुदाए को बताते हुए कहा गया कि ट्रेन में आग मुस्लिमों ने लगाई थी। इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क उठे। मुस्लिम समुदाए का खुलेआम क़त्लेआम किया जाने लगा (Muslim massacre in Gujrat)। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि दो हज़ार लोगों की हत्याएं की गईं। जबकि असल संख्या इससे बहुत अधिक बताई जाती है।

गुजरात भयानक दंगे की चपेट में था। घरों में आग,लूटपाट,कत्ल और महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार घटनाएं अंजाम दी जा रही थीं। बिलकिस बानो (Bilkis Bano) गुजरात के दाहोद ज़िले के रंधिकपुर गांव की रहने वाली हैं। गुजरात में शुरू हुए दंगों के समय बिलकिस अपने पूरे परिवार के साथ गांव में मौजूद थीं। अपने गांव में दंगों की भयानक स्थिति को देखते हुए बिलकिस ने गांव से भागने का फैसला किया। बिलकिस दंगों की आग से बचने के लिय परिवार के साथ गांव निकल गईं।

Bilkis Bano case : बिलकिस बानो की ज़िन्दगी का सबसे बुरा दिन

जानकारी के मुताबिक, बिलकिस बानो परिवार के साथ छिपते-छिपाते 3 मार्च, 2002 के दिन छप्परवाड़ गांव पहुंची और दंगाइयों को देख परिवार के साथ जान बचाने के लिय खेतों में छिप गईं। भीड़ ने बिलकिस के परिवार को जैसे ही देखा तो सब टूट पड़े। इस घटना को लेकर दायर की गई चार्जशीट में बताया गया है कि लगभग 30 से 40 लोगों ने हथियार के साथ खेत में छिपी बिलकिस बानो और उसके परिवार पर हमला कर दिया।

दायर की गई चार्जशीट के मुताबिक दंगाइयों की भीड़ ने बिलकिस समेत 4 अन्य महिलाओं के साथ बलात्कार किया जिसमें बिलकिस की मां भी शामिल थीं। दंगाइयों ने 17 मुस्लिमों में से 7 का दर्दनाक तरीके से कत्ल कर दिया। मारे गए सभी लोग बिलकिस के परिवार के थे। मारे गए लोगों में बिलकिस बानो की बेटी भी थी। बिलकिस बानो इस घटना के बाद 3 घंटो तक बेहोश पड़ी रहीं। जब उनको होश आया तब उनके तन पर कपड़ा नहीं था। परिवार के लोगों के शव पड़े हुए थे।

बिलकिस को एक आदिवासी महिला ने कपड़े दिए और फिर बिलकिस एक होमगार्ड की मदद से इस मामले में शिकायत दर्ज करवाने के लिय लिमखेड़ा थाने गईं। शिकायत दर्ज कर ली गई। लेकिन बाद में आपराधियों को बचाने के आरोप में शिकायत दर्ज करने वाले कांस्टेबल सोमाभाई तीन साल की सज़ा सुनाई गई। बिलकिस बानो को गोधरा रिलीफ़ कैंप पहुंचा दिया गया। उनकी मेडिकल जांच कराई गई। फिर जब बिलकिस का मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहुंचा तब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई जांच का आदेश सुनाया।

सरकारी तंत्र अपराधियों को बचाता रहा

इस मामले में देश की सुप्रीम कोर्ट ने सख़्ती दिखाई। अदालत ने क्लोज़र रिपोर्ट खारिज कर सीबाआई को नय सिरे से जांच का आदेश दिया। फिर बाद में सीबीआई ने चार्जशीट में 18 लोगों को दोषी पाया जिनमें 5 पुलिसकर्मी समेत 2 डॉक्टर शामिल थे। इन लोगों पर अभियुक्तों को बचाने और सबूतों को मिटाने और छेड़छाड़ का आरोप लगा था।

सीबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टरों ने पोस्टपार्टम रिपोर्ट को इस ढंग से बनया था कि अभियुक्तों को बचाया जा सके। सीबीआई ने दोबारा से शवों को क़ब्रों से बाहर निकलवाकर पोस्टमार्टम करवाया। सीबीआई ने बताया कि मारे गए लोगों के सिर धड़ से अलग कर दिए गए थे ताकि उनकी पहचान की जा सके।

इंसाफ की क़ानूनी लड़ाई का दौर हुआ शुरू

देश और दुनियाभर की मीडिया में बिलकिस मामला चर्चा का विषय बन गया। बिलकिस ने क़ानूनी लड़ाई लड़ना शुरू ही किया था कि उनको जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं। इन धमकियों से परेशान बिलकिस को कम से कम 20 बार अपना घर बदलना पड़ा। इंसाफं में देरी और धमकियों से डर बिलकिस ने सुप्रीम कोर्ट में केस को गुजरात के बाहर करने की अपील की। बाद में केस आगे की सुनवाई के लिय मुंबई शिफ्ट कर दिया गया।

बिलकिस बानो केस में सबसे अहम मोड़ आया सन 2008 जब सीबीआई की विषेश अदालत ने गर्भवती महिला के रेप, हत्या के जिर्म में 11 लोगों दोषी क़रार दिया। 7 को सबूत के आभाव में रिहा कर गया जबकि एक आरोपी की सुनवाई के समय मौत हो गई थी।

सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि बिलकिस बानो के बलात्कार जसवंत नाई, गोविंद नाई और नरेश कुमार मोढ़डिया ने किया था। अन्य लोगों ने परिवार के सदस्यों की हत्या को अंजाम दिया। फिर मई 2017 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सामूहिक दुष्कर्म मामले में 11 लोगों की आजीवन कैद की सज़ा को बरकरार रखा था।

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो को 50 लाख रूपये,घर और एक सरकारी नौकरी मुआवज़े के रूप में दिए जाने का आदेश दिया था। गुजरात सरकार ने वकील ने कोर्ट में इसका विरोध कर इस मुआवज़े को बहुत अधिक बताते हुए ख़ारिज करने की मांग की थी। गुजरात सरकार ने बिलकिस को 5 लाख रूपये का मुआवज़ा दिया था।

उम्र कैद़ की सज़ा काट रहे दोषियों को क्यों छोड़ दिया ?

साल 2022, 15 अगस्त के रोज़ बिलकिस बानो मामला फिर चर्चा में आ गया। गुजरात की गोधरा जेल में उम्र क़ैद की सज़ा काट रहे दोषियों 11 दोषियों को इस दिन रिहा कर दिया गया। ये सभी अपराधी बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात लोगों की हत्या के मामले में उम्र क़ैद की सज़ा काट रहे थे। रिहाई के बाद अराराधियो का हर तरफ़ फूल-मालाओं से स्वागत किया गया। गोधरा जेल के बाद उनका माला डालकर सम्मान किया गया।

बिलकिस बानो मामले में उम्र क़ैद की सज़ा काट रहे 11 दोषियों में से एक दोषी राधेश्याम ने सुप्रीम कोर्ट में सज़ा माफ़ी के लिय याचिका डाली थी। जिसके बाद अदालत से गुजरात सरकार से इसपर फैसला लेने को कहा। सरकार ने इस मामले को देखने के लिय एक कमेटी गठित कर थी। कमेटी ने माफी याचिका स्वीकार कर ली। इसके बाद सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया।

संविधान ने राज्य सरकार को दिए ये अधिकार

संविधान ने राज्य सरकारों को भी कुछ ऐसे अधिकार दिए हैं जिसकी मदद से वे क़ैदियों को बाहर निकाल सकते हैं। राज्य सरकार के पास भी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 432 के तहत उनकी सज़ा माफ करने का अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 में राष्ट्रपति और राज्यपाल के पास कोर्ट से सज़ा पाए दोषियों की सज़ा को कम करने, माफ करने और निलंबित करने की शक्ति है।

हालांकि, राज्य सरकार पूरी तरह आज़ाद नहीं है। सीआरपीसी की धारा 433A में सरकार की कुछ शक्तियों पर पाबंदी भी लगी हैं।  जैसे फांसी या उम्रकैद की सज़ा काट रहे दोषी को तब तक रिहा नहीं किया जा सकता है जब तक उसने कम से कम चौदह साल की कैद की सज़ा नहीं काट ली हो। इसी के तहत बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों को रिहाई मिल सकी है। क्यों सभी ने जेल में 15 साल चार महीने की सज़ा काट ली थी।

Bilkis Bano case : सरकार के फैसले की हर ओर आलोचना

बिलकिल बानो में गुजरात सरकार द्वारा रिहा किए गए 11 दोषियों के बाद जमकर आलोचना हो रही है। न्याय व्यवस्था पर तरह-तरह के तीखे सवाल दागे जा रहे हैं। बिलकिस बानो ने सरकार की जमकर आलोचना करते हुए कहा- ‘इतना बड़ा और अन्यायपूर्ण फैसला’ लेने से पहले सरकार ने सोचा नहीं।

मेरे परिवार और मेरी जिन्दगी बर्बाद करने वाले, मुझसे मेरी तीन साल की बेटी को छीनने वाले 11 दोषियों को 15 अगस्त, 2022 को रिहा कर दिया गया है तो 20 साल पुराना भयावह अतीत मेरे सामने मुंह बाए खड़ा हो गया। किसी महिला के लिए न्याय ऐसे कैसे खत्म हो सकता है?

बिलकिस बानो मामले में जिन 11 आरोपियों को दोषी ठहराया गया था उनमें जसवंतभाई नाई, गोविंदभाई नाई, नरेश कुमार मोरधिया (मृतक), शैलेष भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप वोहानिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, नितेश भट्ट, रमेश चंदना और हेड कांस्टेबल सोमाभाई गोरी शामिल थे।

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