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Dr. BR Ambedkar : एक नई सामाजिक व्यवस्था के संघर्ष

Dr. BR Ambedkar : एक नई सामाजिक व्यवस्था के संघर्ष
Dr. BR Ambedkar : एक नई सामाजिक व्यवस्था के संघर्ष

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Dr. BR Ambedkar : सामाजिक विषमता के बंधनों से मुक्त होने के लिए हमेशा साहस की जरूरत होती है. उसके लिए यह विश्वास होना कि चीजें बदल सकती हैं, इसके लिए बहुत साहस और अपने विचारों के प्रति विश्वास और दृढ़ता चाहिए. इन असमानताओं से लड़ने और उसकी जगह एक नए सामाजिक व्यवस्था की स्थापना करने के लिए यह साहस, विश्वास और दृढ़ता डा. भीमराव आंबेडकर ने दिखाई और उसके लिए अनथक लड़ते हुए कई कुर्बानियां दीं. 

आज उसी साहसी नेता, स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री और भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार के 129वी जयंती पर हम उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक बातों पर गौर करेंगे जिन्हें दुनिया बाबा साहेब के नाम से जानती और याद कर रही है. 

जन्म और घर-परिवार
Dr. BR Ambedkar : बाबासाहब अंबेडकर का जन्‍म 14 अप्रैल 1891 को मध्‍य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था. हालांकि उनका परिवार मराठी था और महार समुदाय से आता था. लेकिन वे मूल रूप से महाराष्‍ट्र के रत्‍नागिरी जिले के आंबडवे गांव से आते थे. उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और मां भीमाबाई थीं. उनके पिता भारतीय सेना की महार रेजिमेंट के साथ सूबेदार मेजर थे. महार जाति को हिंदू धर्म में अछूत माना जाता था. उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने की वजह से उन्हें कई मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा था.

Dr. BR Ambedkar : अंबेडकर एक विद्वान, एक समाज सुधारक और एक नेता थे जिन्होंने भारत में सामाजिक असमानता को मिटाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. उन्होंने एक ऐसे देश की स्थापना की जिसने ऐतिहासिक रूप से वंचित लोगों को जरूरी अवसर प्रदान किए.

शिक्षा
बाबा साहेब सरकारी स्कूल में पढ़ते थे, जहाँ निम्न जातियों के बच्चों को अछूत माना जाता था, जिस कारण उन्हें सबसे अलग कर दिया जाता था और शिक्षकों द्वारा उन्हें कम ध्यान या सहायता दी जाती थी. उन्हें कक्षा के अंदर बैठने की अनुमति भी नहीं थी।

उनके शिक्षक महादेव अंबेडकर, एक ब्राह्मण थे. जो बाबा साहेब को बहुत मानते थे. उन्होंने स्कूल रिकॉर्ड में बाबा साहेब के उपनाम को ‘अंबावडेकर’ से बदलकर अपना उपनाम ‘अंबेडकर’ दर्ज कर दिया. 1894 में बाबासाहेब का परिवार महाराष्ट्र के सतारा चला गया. सतारा चले जाने के कुछ ही समय बाद उनकी माँ का निधन हो गया. 1897 में बाबासाहेब का परिवार बंबई चला गया. बाबा साहेब ने 15 साल की उम्र में 1906 में रमाबाई से शादी की तो उस समय रमाबाई सिर्फ नौ साल की थीं.

उन्होंने 1907 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया. ऐसा करने वाले वे दलित समुदाय के पहले व्यक्ति बने. 1912 में उन्होंने बंबई विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में अपनी डिग्री प्राप्त की. 1913 में संयुक्त राज्य अमेरिका में कोलंबिया विश्वविद्यालय से पोस्ट-ग्रेजुएशन किया.

उन्हें बड़ौदा के गायकवाड़ द्वारा स्थापित बड़ौदा स्टेट स्कॉलरशिप के माध्यम से प्रति माह £ 11.50(स्टर्लिंग) तीन साल के लिए दिया गया. उन्होंने जून 1915 में अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और नृविज्ञान के अलावा पढ़ाई के अन्य विषयों के साथ कुल 64 विषयों में मास्टर किया. वे हिन्दी, पाली, संस्कृत,अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, मराठी, पर्शियन और गुजराती जैसे 9 भाषाओँ के जानकार थे. उन्होंने एक थीसिस ‘प्राचीन भारतीय वाणिज्य’ प्रस्तुत की. 1916 में उन्होंने एक और एमए थीसिस की पेशकश की, ‘नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया – ए हिस्टोरिक एंड एनालिटिकल स्टडी’.

अक्टूबर 1916  में बाबासाहेब ने लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में दाखिला लिया जहां उन्होंने 8 वर्ष में समाप्त होनेवाली पढाई को केवल 2 वर्ष 3 महीने में पूरा किया. इसके लिए उन्होंने प्रतिदिन 21-21 घंटे पढ़ाई की थी. वहां उन्होंने डॉक्टरेट की थीसिस पर काम शुरू किया. जून 1917 में उन्हें भारत वापस जाने के लिए बाध्य होना पड़ा क्योंकि बड़ौदा से उनकी छात्रवृत्ति की अवधि समाप्त हो गई थी. हालांकि उन्हें चार साल के भीतर अपनी थीसिस वापस करने और जमा करने की अनुमति दी गई थी. उन्हें बड़ौदा के गायकवाडों के लिए सैन्य सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था.

गवर्नर लॉर्ड लिनलिथगो और महात्मा गांधी का मानना था कि बाबासाहेब 500 स्नातकों तथा हजारों विद्वानों से भी अधिक बुद्धिमान हैं| 1918 में वे बॉम्बे के सिडेनहैम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर बने लेकिन अपने छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय होने के कारण उन्हें अपने सहयोगियों से भेदभाव का सामना करना पड़ा.

इस बीच, बाबासाहेब ने राजनीति में अधिक रुचि लेना शुरू कर दिया क्योंकि उन्हें साउथबोरो समिति के समक्ष गवाही देने के लिए आमंत्रित किया गया था, जो भारत सरकार अधिनियम 1919 तैयार कर रही थी। इस सुनवाई के दौरान उन्होंने अछूतों और अन्य धार्मिकों समुदायों के लिए अलग निर्वाचक मंडल और आरक्षण बनाने का तर्क दिया.

1920 में उन्होंने कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहू महाराज की मदद से मुंबई में साप्ताहिक “मूकनायक” का प्रकाशन शुरू किया। एक समाज सुधारक महाराजा ने सभी जातियों के लोगों को शिक्षा और रोजगार खोलने में अग्रणी भूमिका निभाई. बाबासाहेब ने वर्षों तक अछूतों के लिए न्याय की लड़ाई जारी रखी, उसके बाद एक वकील और एक समाज सुधारक के रूप में काम किया.

राजनीतिक जीवन
डा. आंबेडकर का राजनीतिक कैरियर 1926 में शुरू हुआ और 1956 तक वो राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न पदों पर रहे. 1925 में साइमन कमीशन के साथ काम करने के लिए उन्हें बॉम्बे प्रेसीडेंसी कमेटी में नियुक्त किया गया था. जबकि आयोग को पूरे भारत में विरोध का सामना करना पड़ा था और इसकी रिपोर्ट को काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया गया था. बाबासाहेब ने खुद भविष्य के लिए संवैधानिक सिफारिशों का एक अलग सेट लिखा था.

दिसंबर 1926 में बॉम्बे के गवर्नर ने उन्हें बॉम्बे विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया. उन्होंने अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लिया. वे 1936 तक बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य थे. 1927 तक उन्होंने सार्वजनिक पेयजल संसाधनों तक पहुंच के लिए सक्रिय आंदोलन शुरू करने और हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार का फैसला किया. उन्होंने महाड में एक सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जो शहर के मुख्य पानी के टैंक से पानी खींचने के लिए दलित समुदाय के अधिकार के लिए ऐतिहासिक लड़ाई थी. 
1932 में लंदन में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए बाबासाहेब को आमंत्रित किया गया था, लेकिन महात्मा गांधी अछूतों के लिए एक अलग निर्वाचक मंडल का विरोध कर रहे थे क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे राष्ट्र का विभाजन हो जाएगा. जिस कारण कहा जाता है कि बाबा साहेब और गांधी के संबंध काफी कटु हो गए थे.

1932 में अंग्रेजों ने एक अलग निर्वाचक मंडल की घोषणा की, जिसका गांधी जी ने पूना की यरवदा सेंट्रल जेल में कैद रहते हुए उपवास करके विरोध किया जिसके बाद बाबा साहेब ने एक अलग निर्वाचक मंडल की अपनी मांग को छोड़ दिया. इसके बाद गांधी जी ने अपना अनशन समाप्त कर दिया. उसके बाद अलग निर्वाचक मंडल की जगह एक निश्चित संख्या में सीटें विशेष रूप से ‘डिप्रेस्ड क्लास’ के लिए आरक्षित की गई.

1935 में, बाबासाहेब को मुंबई में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज का प्रिंसिपल नियुक्त किया गया और दो साल तक वे इस पद पर बने रहे. उन्होंने यहाँ एक तीन मंजिला बडे़ घर ‘राजगृह’ का निर्माण कराया जिसमें उनके निजी पुस्तकालय में 50,000 से अधिक पुस्तकें थीं. तब यह दुनिया का सबसे बड़ा निजी पुस्तकालय था. इस बीच उनकी पत्नी रमाबाई का लंबी बीमारी के बाद 1935  में निधन हो गया जिसके बाद बाबासाहेब के जीवन में एक महत्वपूर्ण अध्याय की शुरुआत हुई.

उसी वर्ष 13 अक्टूबर को उन्होंने एक अलग धर्म में परिवर्तित होने के अपने इरादे की घोषणा की और अपने 8,50,000 समर्थको के साथ बौद्ध धर्म में दीक्षा ले ली. यह विश्व में ऐतिहासिक था क्योंकि यह विश्व का सबसे बडा धर्मांतरण था. बौद्ध धर्म की दीक्षा देनेवाले महान बौद्ध भिक्षु महंत वीर चंद्रमणी ने उन्हें “इस युग का आधुनिक बुद्ध” कहा था.

1936 में, बाबासाहेब अम्बेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जो 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों मे 13 सीटें जीती. आम्बेडकर को बॉम्बे विधान सभा के विधायक के रूप में चुना गया था. उन्होंने रक्षा सलाहकार समिति और वायसराय की कार्यकारी परिषद में इस अवधि के दौरान श्रम मंत्री के रूप में कार्य किया. वह 1942 तक विधानसभा के सदस्य रहे और इस दौरान उन्होंने बॉम्बे विधान सभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी कार्य किया. यह वह दौर भी था जब बाबासाहेब ने दलितों की स्थिति और हिंदू समाज में जाति व्यवस्था पर विस्तार से लिखा था. इस अवधि के दौरान बाबासाहेब ने अपनी पार्टी का नाम अनुसूचित जाति संघ के रूप में बदल दिया जो बाद में भारतीय रिपब्लिकन पार्टी के रूप में विकसित हुआ.

वह शुरू में बंगाल से संविधान सभा के लिए चुने गए थे लेकिन उनकी सीट भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान चली गई। बाद में उन्हें श्री जीवी मावलंकर से आगे एक वरिष्ठ न्यायविद जयकर के स्थान पर बॉम्बे प्रेसीडेंसी से चुना गया था. 15 अगस्त, 1947 को भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बना और बाबासाहेब अम्बेडकर को केंद्रीय कानून मंत्री और संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया जिसे भारत के नए संविधान को लिखने की जिम्मेदारी दी गई.

बाबासाहेब अंबेडकर के नेतृत्व में संविधान सभा ने देश के सभी नागरिकों के लिए नागरिक स्वतंत्रता की एक विस्तृत श्रृंखला को संवैधानिक गारंटी और सुरक्षा प्रदान की जिसमें धर्म की स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का उन्मूलन और सभी प्रकार के भेदभावों को ख़त्म करना शामिल था. ग्रानविले ऑस्टिन ने भारतीय संविधान को ‘पहला और एक सामाजिक दस्तावेज’ बताया.

उन्होंने समानता के लिए तर्क दिया और सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिए नौकरियों के आरक्षण की एक प्रणाली शुरू करने के लिए व्यापक समर्थन भी जीता. इसका उद्देश्य उन लोगों को आवाज प्रदान करना था, जिन्होंने सदियों से गंभीर अन्याय का सामना किया था.
संविधान सभा ने औपचारिक रूप से 26 नवंबर

1949 को संविधान के प्रारूप को मंजूरी दे दी और बाबासाहेब का सबसे बड़ा काम भारतीय संविधान, 26 जनवरी 1950 को हमारे जीवन का हिस्सा बन गया. 1951 में संसद में अपने हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने के बाद डा. अम्बेडकर ने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी.

डा. अम्बेडकर ने 1952 में लोकसभा का चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ा पर वे हार गये. मार्च 1952 में उन्हें संसद के ऊपरी सदन यानि राज्य सभा के लिए मनोनित किया गया. अपनी मृत्यु तक वो उच्च सदन के सदस्य रहे. 6 दिसम्बर 1956 को डा. अम्बेडकर की नींद में ही मृत्यु दिल्ली स्थित उनके घर में हो गई. 7 दिसम्बर को बम्बई में चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली में उनका अंतिम संस्कार किया गया जिसमें हजारों समर्थकों, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों ने भाग लिया. बाबासाहेब अम्बेडकर को 1990 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया.

संघर्ष बाबासाहेब के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा था क्योंकि उन्हें अपनी हर चीज के लिए कड़ी मेहनत और लड़ाई लड़नी पड़ी थी. भारत में एक नए सामाजिक व्यवस्था की स्थापना के लिए उनके अथक धर्मयुद्ध को हमेशा याद किया जाता रहेगा. भारतीय राष्ट्र हमेशा एक मुकम्मल और प्रगतिशील संविधान देने के लिए उनका ऋणी रहेगा जो एक राष्ट्र के रूप में हमारे मूल मूल्यों को परिभाषित करता है. 

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  • He is a journalist from Bhopal, Madhya Pradesh, and a passionate advocate for marginalized communities. With a PG diploma in Hindi Journalism from IIMC Delhi, he has reported for Zee Media and Lokmat Media. Komal belongs to a Dalit community, he amplifies the voices of the underrepresented in his reports. Currently, Badodekar serves as a Multimedia Lead at the Observer Research Foundation, New Delhi.

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