...
Skip to content

बेजुबान पक्षियों को बचाने की मुहिम

बेजुबान पक्षियों को बचाने की मुहिम
बेजुबान पक्षियों को बचाने की मुहिम

संतोष सारंग, मुजफ्फरपुर, बिहार | वन्य प्राणी, पशु-पक्षी, जीव-जंतु आदि हमारे सहचर हैं. पर्यावरण संतुलन एवं भोजन चक्र को बनाए रखने के लिए भी ये बेजुबान प्राणी हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं. इस लिहाज से इनका संरक्षण करना बेहद जरूरी है. लेकिन चिंता की बात है कि मनुष्य की सुविधाभोगी जीवन शैली, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन एवं वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण हमारा पर्यावरण बीमार होता चला जा रहा है. पारिस्थितिकी-तंत्र में बेहिसाब बदलाव हुए हैं जिससे हमारी धरती गर्म हो रही है. इसका नतीजा यह हुआ कि बेजुबान प्राणियों की जिंदगी खतरे में आ गयी है. दुनिया के नक्शे पर जलवायु परिवर्तन का असर साफ़ तौर पर देखा जा रहा है. भारत भी इस वैश्विक समस्या से अछूता नहीं है. देश के लगभग सभी राज्यों में पक्षियों के लिए संरक्षित विहारों में इसका प्रभाव साफ़ तौर पर देखने को मिल रहा है.

बिहार के वेटलैंड्स भी कभी प्रवासी पक्षियों से गुलजार रहा करते थे, लेकिन पर्यावरण के बदलते मिजाज के कारण राज्य के प्रमुख पक्षी अभयारण्य में मेहमान पक्षियों का आगमन कम हो गया है. दरभंगा जिले का ‘कुशेश्वरस्थान पक्षी अभ्यारण्य’, बेगूसराय का ‘कावरझील पक्षी अभ्यारण्य’, वैशाली जिले के जन्दाहा स्थित ‘बरैला झील’ समेत सूबे के अन्य वेटलैंड्स में अब रंग-बिरंगे पक्षियों का कलरव कम सुनाई पड़ता है. प्रवासी ही नहीं, बल्कि स्थानीय पक्षी जैसे गिद्ध, गौरैया, कोयल, कौए, बगेरी, बटेर, तोता, कठफोड़वा समेत अन्य प्रजातियों के पक्षी भी विलुप्त हो रहे हैं. सवाल इन पक्षियों के आश्रय का भी है. पेड़ों की अंधाधुंध कटाई का असर भी इन बेजुबान पक्षियों के जीवन पर पड़ा है. हालांकि वन्यजीव संरक्षण की दिशा में कुछेक सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर प्रयास भी किये जा रहे हैं, लेकिन ये नाकाफी हैं.

बिहार में विलुप्त होने वाले पक्षियों एवं जैव विविधता के संरक्षण के लिए सरकारी मुहिम शुरू हुई है. सूबे के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग एक बार फिर आगामी फरवरी से पक्षियों की गणना शुरू करने वाला है, जिसका परिणाम मई तक आ जाने की संभावना है. गणना में करीब 100 वेटलैंड्स को शामिल किया जाएगा. इस काम के लिए विभाग बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के वैज्ञानिकों का सहयोग ले रहा है. विभागीय सूत्रों के मुताबिक गणना में विदेशी पक्षियों को भी शामिल किया जाना है, जिसके बारे में जानकारी एकत्रित कर उसे सुरक्षित रखा जाएगा. बिहार में पक्षियों की गणना की शुरुआत पिछले वर्ष से शुरू हुई थी. जिसमें सूबे के करीब 68 चौरों (वेटलैंड) को शामिल किया गया था. इसमें कुल 45,173 पक्षी चिन्हित किये गये थे, जिनमें 39,937 जलीय पक्षी पाये गये थे, जिनकी 80 प्रजातियां मिलीं थी.

इस बार की गणना में सहरसा का बोरा चौर, पूर्वी चंपारण का सरोतर लेक, भागलपुर का जगतपुर लेक व गंगाप्रसाद लेक, औरंगाबाद का इंद्रपुरी बराज वाला हिस्सा, वैशाली जिले का बरैला झील, मुजफ्फरपुर का सिकंदरपुर, दरभंगा का कुशेश्वरस्थान पक्षी अभ्यारण्य, पश्चिम चंपारण के उदयपुर का सरैयामन व गौतम बुद्ध पक्षी अभ्यारण्य विहार, बेगूसराय का कांवर झील, राजगीर का पुष्करणी तालाब व ऑर्डिनेंस फैक्टरी, सुपौल के कोसी का दियारा इलाका, कटिहार का गोगाबिल लेक, जमुई का गढ़ी डैम व नागा-नकटी डैम और बांका का ओढ़नी डैम शामिल है. इस संबंध में वन एवं पर्यावरण विभाग के मुख्य वन्यप्राणी प्रतिपालक प्रभात कुमार गुप्ता (आइएफएस) बताते हैं कि सरकार ने पिछले तीन सालों से पक्षी संरक्षण की दिशा में काफी काम किया है. वैश्विक स्तर पर होने वाले एशियन पक्षी गणना के तहत बिहार ने भी पक्षियों की गणना शुरू की है. इस दौरान कई दुर्लभ प्रजाति के पक्षी पाए गये हैं. राज्य में विलुप्त हो रहे पक्षियों के सवाल पर उन्होंने बताया कि क्लाइमेट चेंज की वजह से एवं मौसम के अनुकूल नहीं रहने के कारण पक्षी दूसरे वेटलैंड्स की ओर चले जाते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि पक्षियों की प्रजाति विलुप्त हो रही है. अब भी यहा के वेटलैंड्स में पक्षी आ रहे हैं.

हालांकि दरभंगा के एक स्थानीय पत्रकार नवेंदु पाठक का कहना है कि करीब एक दशक पहले दरभंगा शहर के मशहूर तालाब जैसे- हराही और दिग्गी आदि तालाबों के आसपास पक्षियों के झुंड पक्षी देखे जाते थे. सुबह की नींद पक्षियों की चहचहाहट से ही खुलती थी, लेकिन साल दर साल यह गायब होते चले गये. यही स्थिति कुशेश्वरस्थान पक्षी अभ्यारण्य की भी है. यहां तो साइबेरिया, चाइना, ताइवान आदि देशों से प्रवासी पक्षी आते थे, लेकिन आज यह चौर भी वीरान है. कुछ विशेषज्ञ पक्षियों के विलुप्त होने के पीछे बदलते पर्यावरण के साथ साथ मोबाइल टावरों के जाल का बिछ जाना, बड़े-बड़े भवनों का बेतरतीब निर्माण होना और इन पक्षियों पर शिकारियों की कुदृष्टि का पड़ना भी प्रमुख कारण मानते हैं.

पक्षी संरक्षण की दिशा में सरकारी प्रयासों के साथ साथ निजी तौर पर भी कुछ पक्षी प्रेमी सराहनीय काम कर रहे हैं. बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के सुशील कुमार गौरैया को बचाने की मुहिम में जुटे हैं. इस मुहिम का नाम उन्होंने ‘गौरैया संरक्षण अभियान’ दिया है. सुशील ने अब तक करीब 9000 घोंसलों का वितरण कर आम लोगों को जागरूक कर गौरैया के संरक्षण का संदेश दिया है. यह वही सुशील कुमार हैं, जिन्होंने केबीसी का पांच करोड़ रुपए जीत कर इतिहास रच दिया था. ‘चंपा से चंपारण’ मुहिम के तहत चंपा का पौधा लगाने की मुहिम में मिली सफलता से उत्साहित सुशील पिछले चार सालों से गौरैया के संरक्षण की दिशा में प्रयासरत हैं. वे स्कूलों में जाकर छात्र-छात्राओं को पक्षी के संरक्षण का संदेश देते हैं. सुशील के इस काम को अब बड़ी संख्या में समाज का सहयोग मिलने लगा है. उनकी मुहिम का नजीता है कि अब क्षेत्र में गौरैया समेत अन्य पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी है. राज्य का पर्यावरण विभाग भी लगातार उनके कामों को अपने ट्विटर हैंडल पर शेयर कर रहा है.

सुशील की तरह असम की वन्यजीव वैज्ञानिक डाॅ. पूर्णिमा देवी बर्मन ने भी अपनी पूरी जिंदगी पक्षियों को बचाने के लिए समर्पित कर दिया है. लुप्तप्राय हरगीला के संरक्षण के लिए पूर्णिमा देवी ने करीबन दस हजार महिलाओं को एक साथ लाकर ‘हरगिला सेना’ बनायी है. जो उनका घोंसला बनाने एवं शिकार करने वाली जगहों की रक्षा करती है. जख्मी हरगीला का पुनर्वास करती है एवं नवजात चूजों के आगमन पर जश्न मनाने के लिए ‘गोद भराई’ की रस्म अदायगी भी करती है. पूर्णिमा के इन्हीं प्रयासों का ही नतीजा है कि आज कामरूप जिले के पचरिया, सिंगिमारी आदि के दर्जनों गांवों में उनके घोंसलों की संख्या 28 से बढ़कर 250 से ज्यादा हो गयी है. उनके इस अतुल्नीय कार्य के लिए उन्हें संयुक्त राष्ट्र के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार ‘चैंपियंस ऑफ़ द अर्थ’ से सम्मानित किया गया है.

वास्तव में, पक्षी मानव जीवन का एक अहम हिस्सा है, जिसकी जिंदगी बचा कर ही मनुष्य खुशहाल रह सकता है. खेत-खलिहानों एवं पेड़-पौधों पर पक्षियों का कलरव सुनाई दे, इसके लिए सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर लगातार प्रयास करते रहने की जरूरत है. जैव विविधता को संतुलित रखने की दिशा में विभागीय प्रयासों के अलावा जन जागरूकता काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इस विषय को किताबों तक समेट कर सिलेबस का हिस्सा नहीं बनाना है बल्कि इसे जीवन का हिस्सा बनाना ज़रूरी है. (चरखा फीचर)

Read More

Follow Ground Report for Climate Change and Under-Reported issues in India. Connect with us on FacebookTwitterKoo AppInstagramWhatsapp and YouTube. Write us at GReport2018@gmail.com

Author

  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins